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Channel: लघुकथा
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ख़ुदा का घर

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वह मस्जिद गाँव के बाहर स्थित थी, उस मस्जिद का दरवाजा बन्द था। लोग रात आठ बजे की नमाज अदा करके कब के अपने-अपने घरों को जा चुके थे। बाहर तूफान और बारिश जोरों पर थी। तभी किसी ने मस्जिद का दरवाजा खटखटाया।

‘‘कौन है वहाँ?’’ हाथ में लालटेन पकड़े मौलवी ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।

‘‘क्या एक रात के लिए यहाँ आश्रय मिलेगा?’’ बाहर सिर से पाँव तक भीगी एक बुरकाधारी महिला ने उम्मीद भरे स्वर में बहुत ही विनम्रता से पूछा।

‘‘नहीं! यह इबादतखाना है, कोई सराय नहीं है। वैसे भी यहाँ कोई जनाना नहीं रह सकती।’’ मौलवी ने बहुत ही रूखे स्वर में उत्तर दिया।

‘‘लेकिन इस तूफान और बारिश में मैं कहाँ जाऊँ बाबा?’’ महिला गिड़गिड़ाई।

उसकी बात अनसुनी कर मौलवी पीठ मोड़कर मस्जिद का दरवाजा बन्द करने के लिए पलटा ,तो महिला की मायूसी और बढ़ गई।

‘‘बीबीजी! वे सामने कब्रिस्तान है, वहाँ छप्पर के नीचे रात काट लो।’’ पास ही बारिश से बचने के लिए पेड़ के नीचे खड़े एक बुजुर्ग की आवाज सुनकर जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। जलती हुई आँखों से मौलवी को घूरते हुए वह महिला बुदबुदाई, ‘‘लगता है, खुदा ने अपना घर बदल लिया है!’’

मौलवी ने हिकारत से मस्जिद का दरवाजा खटाक  से बन्द कर दिया था।

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