बड़प्पन/ दीपक मशाल
आज फिर घर पहुँचते ही कपिल ने पानी से पहले सहचरी से जवाब माँगा
– कोई पार्सल आया क्या?
– न… नहीं आया, मैंने व्हाट्सएप्प पर मैसेज भी भेजा उसे पर आपकी वज़ह से विधु मुझसे भी बात नहीं करती।
– क्या.. क्या मेरी वज़ह से? तुम्हे भी लगता है कि सारी गलती मेरी है? अरे वो भी कोई दूध पीती बच्ची तो नहीं जो हालात न समझती हो, तुम्हें तो लगता है कि मैं ही दुश्मन हूँ सबका।
विफर पड़ा कपिल।
– मेरा वह मतलब नहीं, लेकिन आप बड़े हैं कम से कम पहल तो…
ऋचा ने समझाने की कोशिश की।
– हाँ, बुरा-भला भी मैं सुनूँ और पहल भी मैं ही करूँ, अच्छा दोहा हुआ कि ‘छिमा बड़ेन को चाहिए, छोटेन को उत्पात’ खूब फ़ायदा उठाते हैं लोग…
– विधु लोग नहीं है, तुम्हारी अपनी बहन है कपिल।
कहते हुए उसने देखा कि कपिल की नज़र दाएँ हाथ की कलाई पर टिकी है जो उसकी चालीस साल की उम्र में पहली बार कल सूनी रहने जा रही थी।
अगले दिन सुबह कपिल से रहा नहीं गया, उसने उठते ही मुम्बई से दिल्ली का एक वापसी का एयर टिकट बुक किया और छोटी अटैची में अपने कपड़े लगाने लगा, ऋचा मुस्कुराते हुए उसकी मदद कर रही थी। उसने पूछा
– कितने बजे की है फ्लाइट?
– अभी साढ़े दस की है, आठ बजे तक घर से निकलना होगा एयरपोर्ट के लिए। विधु को मैसेज करके बताना मत कि मैं आ रहा हूँ। कल शाम तक वापस लौट आऊँगा।
– ओके।
आठ बजे कपिल ने कर स्टार्ट ही की थी कि सामने से एक टैक्सी आकर रुकी, पल भर में विधु अपने पति और बच्चे के साथ उसके सामने खड़ी थी। भावुक भाई बहन को सीने से लगाते हुए सिर्फ इतना कह सका
– विद्दो, आख़िर मुझसे बड़ी हो गई तू।
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