कालापानी
बारह बरस की आजी चौदह बरस के दद्दा,,’ढेर कुल गहना कपड़ा मिली’ ये रंग -बिरंगे सपने लिये आजी ससुराल आ गईं .समझने को कुछ नही बस जिसने जिस काम में लगा दिया वो कर दिया ।करीब हफ्ता दस दिन बीता ,दुआरे की...
View Articleकामवाली बाई
आज सुनीता बेहद ही प्रसन्न थी । मुख्यद्वार के सामने बैठी हँस–हँसकर फोन पर अपनी खुशी का इज़हार रिश्तेदारों और दोस्तों से कर रही थी । सभी लोग उसके बढ़े हुए वेतन पर बधाइयाँ दे रहे थे । इस बीच...
View Articleआजा़दी
मुहल्ले की कुतिया ने दो पिल्लों को जनम दिया। उन पिल्लांे की परवरिश माँ के दूध से होती या फिर मुहल्ले की गलियों में कुछ गिरे-बिखरे मिल जाते तो उनसे होती। पिल्ले खुश थे। वे हमेशा खुशी से कूदते-फाँदते...
View Articleमाहित नाही .
[मूल हिंदी,लघुकथा :”कॉक्रोच” मराठी अनुवाद : माहित नाही ;मूल लेखिका :भावना सक्सेना ; अनुवादक : डॉ.रश्मि नायर सरकारी कार्यालयात एक साहेब, … आपल्या सरकारी फोनवर काही आवश्यक विषयावर...
View Articleदृष्टि का राजनैतिक लघुकथा अंक
दृष्टि का राजनैतिक लघुकथा अंक-सम्पादक-अशोक जैन,पृष्ठ-126, मूल्य-वार्षिक सहयोग-200 रुपये,सम्पादकीय कार्यालय-908,, सैक्टर-7 एक्सटेंशन, अर्बन एस्टेट,गुरुग्राम-122006
View Articleब्रेकिंग न्यूज़
“साहब ये तो मर चुका है।बुरी तरह जल गई है बॉडी। और कार भी बिल्कुल कोयला हो गई है । आग तो भीषण ही लगी होगी।”कान्स्टेबल रामलाल अपने इंसपैक्टर साहब से हताश- सा बोला। बहुत भयानक बदबू फैली थी माँस जलने की।...
View Articleपंचिंग बैग
दिन की शुरुआत ही अटपटी हुई थी। ऑफिस के लिए निकल रहे थे कि बिल्ली ने रास्ता काट दिया।रुकना मुमकिन नहीं था। मन किसी अपशकुन की आशंका से खटक गया। बस में चढ़े तो एक खाली होती सीट को कब्जियाने के चक्कर में...
View Articleपूँजी
एक वृद्ध मजदूर , जो अपनी बूढ़़ी किन्तु चमकती आँखों में आज से नब्बे वर्ष तक का इतिहास समेटे हुए था। भोजनावकाश में एक पेड़ की छाँव के नीचे सत्तू सानकर आनंद के साथ खा रहा था। मैं उसे बड़े ध्यान से देख रहा...
View Articleखुरदुरेपन में रिश्तों को सहेजती लघुकथाएँ
‘अस्थायी चार दिवारी’ वाणी दवे का पहला लघुकथा संग्रह है। हिन्दी लघुकथा क्षेत्र में यह पहली दस्तक इसलिए आश्वस्त करती है कि इनके भीतर पारिवारिक रिश्तों की, संगत-असंगत परिदृश्यों की, आर्थिक-सामाजिक स्तरभेद...
View Article‘खिड़कियों से परे’–दीपक मशाल के लघुकथा- संग्रह पर चर्चा
1-प्रथम सेतु सम्मान समारोह का आयोजन रुझान प्रकाशन के सहयोग से उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, हज़रतगंज, लखनऊ में बुधवार 17 मई, 2017 को सायंकाल सम्पन्न हुई।कार्यक्रम दो सत्रों में विभाजित था।दूसरे सत्र में...
View Articleलघुकथा में शिल्प की भूमिका
शिल्प ही किसी रचना की ताकत है और रचनाकार की पहचान भी | शिल्प यानि गढ़न, अंदाजे -बयाँ, कहन पद्धति, रचना कौशल, रचनाकार द्वारा स्वयं को तलाशने की बेचैनी | लघुकथा के संदर्भ में बात करें तो हम कह सकते हैं...
View Articleबड़प्पन
बड़प्पन/ दीपक मशाल आज फिर घर पहुँचते ही कपिल ने पानी से पहले सहचरी से जवाब माँगा – कोई पार्सल आया क्या? – न… नहीं आया, मैंने व्हाट्सएप्प पर मैसेज भी भेजा उसे पर आपकी वज़ह से विधु मुझसे भी बात नहीं करती।...
View Articleवेल्यू
गोबर इकट्ठा करती माँ की नजर अजय पर पड़ी तो बोली – स्कूल तै आ गया? आज तै टैम का बेराई ना पाट्या? सारा काम पड्या है? चारा काटना है। आटा गूँथना है? मैं ऐकली सूँ न? तारी चाची की तै काम करन वाली हालत ना है!...
View Articleघाटे का सौदा
दो दोस्तों ने दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और 42 रुपए देकर उसे खरीद लिया। रात गुजारकर एक दोस्त ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भन्ना गया, ‘‘हमसे तो कहा गया था कि तुम...
View Articleमल्लिका के फूल/ थंडगार झळुक
मूल हिंदी लघुकथा : मल्लिका के फूल मराठी अनुवाद :थंडगार झुळुक मूल लेखिका : डॉ सुधा गुप्ता अनुवादक : डॉ.रश्मि नायर थंडगार झळुक उन्हाळ्याची सुट्टी दर वर्षीप्रमाणे भाची...
View Articleए. टी. एम.
आज रिया को लड़के वाले देखने आये थे । उसे देखने से पहले ही उन्होंने उस के पिताजी से पूछ-ताछ शुरू कर दी । और बात ही बात में पूछा “कितने का सालाना पैकेज है रिया का” ? उस के पिताजी ने झिझकते हुए कहा जी...
View Articleलघुकथाएँ
1-त्याग माँ की मृत्यु के बाद तीसरा दिन था। घर की परंपरा के अनुसार, मृतक के वंशज उनकी स्मृति में अपनी ???????????????????????????????????? प्रिय वस्तु का त्याग किया करते थे। “मैं आज के बाद बैंगनी रंग...
View Articleहिसाब
“दुई किलो आटा और सौ ग्राम दाल दै दो। “ ” हम तो देने के लिए बैठे हैं धनिया लेकिन बदले में हमें भी तो कुछ मिले । “ खूब समझती थी बनिये का मतलब लेकिन जब्त कर गई– “एमकी दशहरा पर सारा अगला पिछला चुकता कर...
View Articleसंरचना वार्षिकी-
संरचना वार्षिकी अंक 9-सम्पादक : कमल चोपड़ा; पृष्ठ 216, मूल्य-60 रुपये मात्र,प्रकाशक-संरचना,1600/114,त्रिनगर, दिल्ली-110035
View Articleलघुकथाएँ
1-शाब्दिक बलात्कार ‘‘ऊ! समाज कहां जा रहा है? रोज-रोज वही खबरें। 16 दिसंबर की हैवानियत के बाद बने कानून से लगा था कि अब———लेकिन नहीं——-’’ पाठक जी अपनी बेटियों के लिये चिंतित हैं। ‘‘आई-ए-एस- हो या...
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