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Channel: लघुकथा
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तिरंगे का सौदा

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सर्द रात में कोहरे को चीरती हुईं कई गाड़ियाँ, आपस में बतियाती हुईं शहरों की झुग्गियों में कुछ ढूँढ रहीं थी तभी अचानक !

HARIPRAKASHADUBEY_001“अबे गाड़ी रोक, बॉस का फ़ोन आ रहा है I”

ड्राइवर ने कस कर ब्रेक दबा दिया और धमाके के साथ “जी, साहब , कहते ही आदमी फ़ोन सहित

गाड़ी के बाहर I”

“अबे ! यह धमाका कैसा सुनाई दिया, जिन्दा हो या फ्री में खर्च हो गए ?”

“नहीं जनाब, सब ठीक है, लगभग सब काम हो गया है, सारे छुटभैये नेता खरीद लिये हैं!” “अल्लाह ने चाहा तो काफी भीड़ इकठ्ठी हो जाएगी!”

“और झंडे कितने इकट्ठे हुए?”

“साहब पाकिस्तान के हजार हो गए है !”

“और भारत के?” ……..इस सवाल पर गहरा सन्नाटा पसर गया, उधर से फ़ोन पर कड़कती आवाज आती है, अरे*****साँप सूंघ गया क्या?” साले जलाना तो उन्ही झण्डों को है, कुछ तो बोल !”

“जनाब “तिरंगे का सौदा’ नहीं हो पाया, अपने ही धर्म का है साला, मगर मान नहीं रहा है, कह रहा है-‘ चाहो तो गोली मार दो पूरे परिवार को मगर तिरंगे का सौदा नहीं करूंगा !”

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परिचय

हरि प्रकाश दुबे,जन्म तिथि : 20 जून 1973

जन्म स्थान : हरिद्वार , उत्तराखण्ड

शैक्षिक योग्यता: एम.बी.ए.{वाणिज्य प्रशासन में स्नातकोत्तर},फलित ज्योतिष में डिप्लोमा !

व्यवसाय :   वर्तमान में  महर्षि विद्या मंदिर स्कूल समूह के क्षेत्रीय कार्यालय हरिद्वार में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी” के रूप में कार्यरत !

संपर्क: hpdubey@rediffmail.com


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