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Channel: लघुकथा
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तिरंगे का सौदा

सर्द रात में कोहरे को चीरती हुईं कई गाड़ियाँ, आपस में बतियाती हुईं शहरों की झुग्गियों में कुछ ढूँढ रहीं थी तभी अचानक ! “अबे गाड़ी रोक, बॉस का फ़ोन आ रहा है I” ड्राइवर ने कस कर ब्रेक दबा दिया और धमाके के...

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ज़िन्दगी की छलाँग

ज़िन्दगी की छलाँग- कपिल शास्त्री;पृष्ठ-144; मूल्य-330रुपये;प्रथम  संस्करण-2017, प्रकाशक-वनिका पब्लिकेशंस,एन ए-168,गली नं-6, विष्णु गार्ड्न, नई दिल्ली-110018

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लघुकथाएँ

1-रोज़मर्रा सुरेश नहाते हुए गुनगुना रहा था और सोच रहा था, ‘ये सुचेता है न रोज़ ही कुछ-न-कुछ कमी निकाल देती है। कभी शर्ट ठीक नहीं लग रही, तो कभी मौज़े ढीले हैं, कभी मूँछ छोटी-बड़ी है, तो जूतों पर पॉलिश...

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मुखौटे- चरित्रहीन

मूल हिंदी लघुकथा : मुखौटे  , मराठी अनुवाद : चरित्रहीन मूल लेखिका      : :डॉ. भावना कुँअर              अनुवादक :डॉ.रश्मि नायर आज घरमालकाच्या घरी पुजा होती. सालाबादप्रमाणे भाडेकरु मालतीला वाटलं की काकी...

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अपने दस दिन–

“आंटी आप लोग कहाँ जा रहे हैं”- मैंने अपनी बगल में बैठी अपनी सहयात्री से पूछा।ट्रेन अपनी गति से दौड़ रही थी और मैं आलस में सो सोचा थोड़ी गपशप ही की जाए। “हम…दिल्ली…” “अच्छा आपकी फैमिली भी है क्या आपके...

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बचत

सहेजने की आदत उसने  माँ से सीखी थी। माँ हमेशा कहतीं कि थोड़़ी-थोड़ी बचत जब आड़़े वक्त पर काम आती है तब इसकी अहमियत पता चलती है। और सबसे बड़ी बात किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता। यही अच्छी गृहिणी की निशानी...

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रस्म (एकच शब्द)

मूल कथा : रस्म                          अनुवाद : एकच शब्द मूल लेखिका : अनिता ललित                  अनुवादक :डॉ.रश्मि नायर        भांड पडल्याच्या आवाजाने शिखाची झोप उडाली. तीने घड्याळाकडे पाहिलं आठ...

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लुका–छिपी

[अनुवाद-सुकेश साहनी ] आओ, हम लुका–छिपी खेलते हैं। यदि तुम मेरे दिल में छिप जाओगे, तो तुम्हें ढूँढना मुश्किल नहीं होगा ;किन्तु यदि तुम अपने ही मुखौटे के पीछे छुप जाओगे  ,तो किसी भी तुम्हें खोजना निरर्थक...

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हिन्दी-लघुकथा: संरचना और मूल्यांकन

हिन्दी-लघुकथा को यदि ‘कथा’ का नया, आधुनिक एवं विकसित स्वरूप मान लिया जाए तो लघुकथा की संरचना को भी मुख्यतः दो तत्त्वों में विभाजित करके उसकी तह तक पहुँचा जा सकता है। यथा 1- कथानक (कथा-वस्तु) एवं 2-...

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कुरुक्षेत्र में लघुकथा गोष्ठी आयेजित

राधेश्याम भारतीय प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य पर हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच करनाल के तत्वावधान में डा.ॅ ओमप्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान कुरूक्षेत्र में एक लघुकथा गोष्ठी का आयेजन किया गया। कार्यक्रम की...

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बेटी व अन्य लघुकथाएँ

बेटी व अन्य लघुकथाएँ : डॉ पद्मजा शर्मा; पृष्ठ :144, मूल्य:200रुपये,प्रकाशक:मिनर्वा पब्लिकेशंस, सेक्टर-डी: प्लाट नं-2 एफ़,भगवती कॉलोनी, पी डब्ल्यू डी चौराहा,जोधपुर ; संस्करण:2016

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भूत

  जब सरपंच गाँव के रामफूल के घर पहुँचे तो देखा कि घर में अफरा- तफरी का माहौल था ।उसकी बहू के बाल बिखरे,तन के कपडे अस्त -व्यस्त,कभी ठहाका तो कभी जोर .जोर से रोना— न समझ आने वाली भाषा में बड़बड़ाना ।इकट्ठा...

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कथादेश में लघुकथा-प्रतियोगिता की पुरस्कृत रचनाओं का प्रकाशन

कथादेश में लघुकथा-प्रतियोगिता की पुरस्कृत रचनाओं का प्रकाशन कथादेश के अक्तुबर में

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सटीक और विश्वसनीय लघुकथाएँ

हिन्दी  लघुकथा लेखन का रकबा  बढ़ा है, इस बात पर कोई  शक  नहीं, लेकिन  लघुकथा की श्रेष्ठ फसल के  बरअक्स लघुकथा की खरपतवार  गुणात्मक ढंग से  उग रही है, फलस्वरूप आजकल अच्छी लघुकथाओं के  टोटे दिखाई दे रहे...

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किन्नर ही तो था

ठाकुर साहेब !! आपको हमारी कसम मत ले जाए इसे, मैंने नौ महीने कोख में पाला इस जीव को,आप कैसे किसी और को दे सकते। हाय री किस्मत ! ब्याह के 10 बरस बाद दिया तो वोह भी ठूँठ! मेरे लिए तो मेरी संतान, मैं कही...

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लघुकथाएँ

1-सेवाभाव गाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफार्म छोड़ रही थी और बाबू जी शीशे से हीक भर बेटे को निहार लेना चाहते थे। समय को कौन जाने? अस्सी पार कर चुके पहले भी छोटे के पास आया करते थे,दोनो लोग। परंतु कभी अकेले वापस न...

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मरहम

अभी बीते परसों से ही जब तीन दिन की छुट्टी हुई तो वह कई दिन से लटके पड़े रसोई की मरम्मत के काम के लिए छुट्टी के पहले दिन से ही एक राजमिस्त्री और एक मज़दूर ढूँढ लाया था। खाली समय था सो बैठकर सुधार कार्य...

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बैठेंगे

मरीज़ का रिश्तेदार , डॉक्टर के क्लिनिक पर फोन करते हुए-डॉक्टर साहब शहर में हैं? हाँ । किसी मीटिंग में तो नहीं? ना । बैठे हैं ? हाँ । मरीज़ देख रहे हैं? हाँ । मरीज़ का रिश्तेदार , डॉक्टर के चेम्बर के बाहर...

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भूमंडलीकरण के दौर में हमारी सांस्कृतिक चिन्ताएँ

भूमंडलीकरण के इस दौर में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ  एशिया  के सस्ते श्रम और विस्तृत बाजार को ललचाई नजरों से देख रही है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ  भारत में उत्पादन और व्यापार के लिए तो आ ही रही है साथ में...

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लघुकथा में लोक मांगलिक चेतना होना जरूरी है

 डॉक्टर रमेश चंद्र की लघुकथाएँ सादगी से भरी हुई है। जैसा उनका सहज जीवन है, वैसी ही उनकी लघुकथाएँ हैं ।उनका जीवन उनकी लघुकथाओं में प्रतिबिंबित होता है। उनकी लघुकथाएं जनपक्षधर हैं ,और लघुकथा में लोक...

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