वह घर पहुँचा तो पत्नी मुँह लटकाए हुए बर्तन साफ कर रही थी-‘ आज कामवाली नहीं आई ?’
‘अब आएगी भी नहीं।’
‘अब क्या हो गया ? पहले तो कामवाली हमारी जात पता लगने पर भाग जाती थी —पर यह नई कामवाली तो अपनी जात की है — यह क्यों भाग गई ?’
‘हमारी जात की है ,तो क्या हमारे सर पर चढ़ कर बैठेगी ? हमारे स्टेटस की हो जाएगी ? —–अब तक तो चाहे जब कुर्सी पर बैठ जाती थी —-मुझे बुरा तो लगता था पर यह सोचकर चुप हो जाती थी कि बहुत परेशानी के बाद तो इसे पा सकी हूँ कहीं यह भी न भाग जाए —-पर आज तो वह टी वी देखने के लिए सोफ़े पर बैठ गई —पारुल ने कहा – ‘सोफे पर नहीं ,कारपेट पर बैठ जाओ। ‘ तो बस तुनककर बोली —‘अब तक जब ऊँची जात के लोग हमें अपने से नीचा समझते थे ,तो बहुत गुस्सा आता था ,लेकिन पारुल हम – तुम तो एक ही जात के हैं ,तुम हम से अछूतों का -सा व्यवहार क्यों कर रही हो ? —-तुम चार अक्षर पढ़ गए ,तो हम से ऊँची जात के तो नहीं हो गए ? –नहीं करना तुम्हारा काम।’ कह कर वह पैर पटकती हुई बाहर चली गई ।
–0-पवित्रा अग्रवाल, घरोंदा , 4-7-126 ग्राउंड फ्लोर , इसामियाँ बाजार, हैदराबाद-500027