अवकाश प्राप्ति के बाद वे अक्सर पुस्तकालय जाकर समय बिताया करते थे। एक दिन पुस्तकालय से लौटते वक्त ऑटोरिक्शा में बैठे ही थे कि अत्याधुनिक कपड़े पहने एक युवती उनके बिल्कुल पास आकर बैठ गई।
वे असहज हो उठे। पहले तो उन्होंने मन-ही-मन जमाने और उसके माता-पिता को कोसा ,जो इस तरह के कपड़े पहनने की इजाजत देते हैं, फिर मन-ही-मन प्रार्थना-स्तुति करने लगे, ताकि अपना ध्यान वहाँ से हटा सके. बावजूद इसके वे असहज ही बने रहे। तभी सामने वाली सीट पर एक युवक आकर बैठा और अपना बैग टटोलने लगा। कुछ परेशान-सा दिखा, फिर उसने युवती से पूछा “क्या आपके पास ईयरफोन है?”
“दरअसल इस वक्त एफ.एम. पर एक कार्यक्रम आता है, जिसे मैं कभी मिस नहीं करता, लेकिन आज मैं अपना ईयरफोन दफ्तर में ही भूल गया, घर पहुँचते-पहुँचते तो कार्यक्रम समाप्त भी हो जाएगा। क्या आप अपना ईयरफोन कुछ देर के लिए देंगी?”
“ओह! श्योर! लीजिए न!”
युवती ने अपने हैंडबैग से ईयरफोन निकालकर दे दिया।
“मेरी बहन काव्या बहुत अच्छी आर, जे, है आप भी सुनिए न!” युवक ने आग्रह किया।
“ओह! रियली? तब तो मैं ज़रूर सुनना चाहूँगी।”
युवती ने युवक के बिल्कुल पास बैठकर अपने एक कान में ईयरपीस लगा लिया। बड़े ही सहज भाव से दोनों रेडियो सुन रहे थे और वे बस उजबक से दोनों को देखते रह गए!
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