ग्रेगरी गोरिन (अनु–अचला जैन)
मैंने टैक्सीवाले को आवाज दी और टैक्सी रुक गई।
“क्या तुम मुझे सेमोकान्या स्क्वेयर ले चलोगे? वह जगह यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है, लेकिन मुझे जल्दी है ।”
“जरूर! जहाँ कहीं भी आप चाहें ।”
पाँच मिनट बाद हम रुके मीटर उनचास कोपेक बता रहा था। मैंने एक रूबल निकाला।
“मेरे पास रेजगारी नहीं है” ड्राइवर ने कहा। मैंने अपनी जेबें टटोली पचास कोपेक का एक सिक्का निकाला।
“अफसोस हे कि मेरे पास एक कोपेक भी नहीं है।”
“कोई बात नहीं ।”
“क्यों नहीं!’’ ड्राइवर ने विरोध प्रगट किया, ‘‘हम ऐसा नहीं कर सकते। आप जानते हैं कि सवारियों से मीटर से अधिक पैसा नहीं लिया जा सकता। मैं इनाम भी नहीं लेता!’’
“बहुत अच्छा, लेकिन हम करें क्या?’’
“बाएँ कोने पर एक तंबाकू वाले की दुकान है, वह रेजगारी दे देगा।”
पाँच मिनट के बाद हम उस दुकान पर पहुँचे, लेकिन तब तक दोपहर के खाने की छुट्टी हो चुकी थी।
मीटर अब सत्तानबे कोपेक बता रहा था। ‘‘कोई बात नहीं।”ड्राइवर ने मेरे साथ सहानुभूति जताई, ‘‘कीव स्टेशन के पास एक बैंक है, उसमें काम करने वाली एक लड़की को मैं जानता हूँ, वह आपको रोजगारी दे देगी।”
हम कीव स्टेशन की ओर बढ़े, लेकिन बैंक बंद था। मीटर पूरे तीन रूबल बता रहा था।
मैंने ड्राइवर को तीन रूबल दिए पैसे जेब में रखकर ड्राइवर ने मीटर बंद कर दिया।
“मुझे बहुत दुख है”, उसने कहा, ‘‘मैं सवारियाँ से मीटर से ज्यादा पैसे नहीं लेता।”
“बहुत आभारी हूँ, लेकिन मैं सोमेकन्या स्क्वेयर कैसे पहुँचूँगा?’’
“मैं आपको वहाँ ले चलूँगा।” ड्राइवर ने कहा टैक्सी में बैठते ही उसने फिर मीटर चालू कर दिया। पाँच मिनट बाद हम पहुँचे गए। मीटर फिर उनचास कोपेक बता रहा था। मैंने छोटा–सा चाकू निकालकर ड्राइवर के गले के पास लगा दिया और ड्राइवर के हाथ में जबरदस्ती पचास कोपेक का सिक्का रखकर टैक्सी के कूदकर भागा। बाद में एक लंबे अरसे तक, जो नैतिक भ्रष्टाचार मैंने उस ईमानदार आदमी के साथ किया था, मुझे ग्लानि महसूस होती रही।