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Channel: लघुकथा
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शुक्रिया माँ

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एक लंबी दर्द भरी चीख के साथ ही मैं अपनी नरम, आरामदेह दुनिया से बाहर खींच ली गई। मैं डरकर रोने लगी।
किसी ने दरवाज़ा खोलकर ज़ोर से कहा,”बेटी हुई है। जच्चा- बच्चा दोनों सुरक्षित हैं।”
बाहर कुछ हलचल हुई। मैं घबराई; घबड़ाकर चुप हो गई। मेरी अपनी दुनिया कहीं पीछे छूट चुकी थी। मुझे लगा, मेरी नाभि से कुछ कटा, मेरी पुरानी दुनिया से जुड़ा तार?? मैं उन हादसों के बारे में सोचने लगी जो मुझे अपनी दुनिया में उन तारों की वजह से सुनाई देते थे—गर्भ में ही लड़की भ्रूण को मार डालने के हादसे! जन्म के बाद नमक चटाकर मार डालने की घटना!! नवजात को कचरे में फेंक देने की ख़बर!! और अनगिनत अमानवीय हादसों की ख़बर!! ओह! मैं भीतर तक सिहर उठी।

मैं गुनगुने पानी से धुली गई, किसी नरम चीज़ में लपेटी गई- रूई के बंडल -सा और किसी सामान की तरह कहीं ले जाई गई। मैं अब भी डर रही थी। तभी नरम-नरम हाथ ने सहलाया। यह मेरी दुनिया तो नहीं थी, मगर मेरा डर जाता रहा। एक उँगली मेरी बंद मुट्ठी में अटकी, माथे पर नरम- नरम स्पर्श हुआ। उसने चूमा था मुझे, फिर हौले -से सीने से लगाया था। फिर चूमा तो मैंने धीरे से आँखें खोली। सामने एक प्यारा-सा भाव-भरा चेहरा था। उसके होंठ खुशी से थरथरा रहे थे और आँखों में बूँदें अटकी थीं। मेरी आँखें खुली देखकर उसने मुझे फिर से सीने से लगा लिया। बाहर कुछ स्वर गूँज रहे थे।

मैं सीने से चिपकी अमृतधार से भीग रही हूँ। सुरक्षित होने का एहसास हो रहा है।उसने मुझे नरम हाथों से थाम रखा है।…. मैं अब निश्चिंत हूँ और खुश भी। यहाँ मुझे कोई ख़तरा नहीं। मैं उस दुनिया बनानेवाले को धन्यवाद देती हूँ कि ‘मेरी यह दुनिया भी सुंदर है’ और सबसे सुंदर है वह…..
मैं अमृत पी रही हूँ। दिल से आवाज़ आती है ‘शुक्रिया माँ’


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