‘‘कहाँ हैं साहब?’’ उस ने कार्यालय में घुसते ही बाबू से पूछा।
‘‘अरे भाई ! क्या हुआ? बैठो-बैठो। बताता हूँ।’’ कह कर बाबू ने चपरासी को आवाज दी, ‘‘रतन! पानी लाना।’’
मगर, उसने बोलना जारी रखा, ‘‘अरे बाबूजी! साहब ने मुझे बेवकूफ समझ रखा है। हर बार चलाते रहते हैं।’’
‘‘अरे भाई! ऐसा क्या हुआ? बताओ तो।’’
‘‘उन्होंने यह नोटिस दिया है।’’
‘‘तो क्या हुआ? नोटिस तो मिलते रहते हैं। जवाब दे देना।’’ बाबूजी ने कहा तो वह भड़क उठा, ‘‘बाबूजी! इस बार वेतनवृद्धि काटने का नोटिस मिला है।’’
‘‘क्या?’’
‘‘हाँ…..’’ उसने बताया, ‘‘पहली बार मेरी कोई गलती नहीं थी। मुझे सूचना नहीं मिली थी। इस कारण बैठक में नहीं गया था। तब पहला नोटिस मिला था।’’
‘‘तब आपने उसमें अपनी गलती स्वीकार कर के जवाब दिया था। सही है ना?’’
‘‘हाँ,सही है। साहब का कहना था कि गलती मान लो। कोई कार्रवाई नहीं होगी। उस वक्त चाय-पानी में मामला निपट गया था।’’
‘‘फिर?’’
‘‘दूसरी बार डाक समय से नहीं पहुँचने के लिए नोटिस मिला। तब भी मेरी कोई गलती नहीं थी। डाक आपके ऑफिस में दे गया था। किसी ने बताई नहीं। वह मामला पार्टी दे कर रफादफा किया था।’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘हाँ, अब यह तीसरा नोटिस मिला है। इसमें लिखा है कि आप पहले भी दो बार गलतियाँ कर चुके हैं। यह आपकी तीसरी गलती है, क्यों न आप की वेतनवृद्धि काट ली जाए।’’
‘‘तो क्या हुआ? दे देना जवाब।’’
‘‘वह तो दे दूँगा। मगर, इस बार भी मेरी गलती नहीं है। मैंने इस बार साहब से फोन लगा कर पूछा था। उनका कहना था जो पाँचवी व आठवीं पढ़ा रहा है, वह उत्तरपुस्तिका जाँचेगा। इसलिए आप को नहीं आना है। फिर ये नोटिस क्यों दिया?’’
‘‘यह तो साहब ही बता सकते हैं।’’ बाबूजी ने कहा तो वह बोला, ‘‘वे मोबाइल उठायंेगे तब बतायेंगे ना? लेकिन वे मेरा मोबाइल नहीं उठा रहे हैं?’’
‘‘कोई बात नहीं। आप लैंडलाइन से बात कर लीजिए।’’ कहते हुए बाबूजी ने फोन लगा कर उसे दे दिया और वह साहब से बात करने लगा।
फोन पर बहुत देर तक बहस और नोंकझोंक चलती रही। अंत में वह फोन रखकर माथा पकड़ कर बैठ गया। तब बाबूजी ने पूछा,‘‘क्या हुआ, सरजी?’’
साहब कह रहे हैं कि ‘‘चिंता क्यों करते हो, नोटिस मिलता है तो मिलने दो। हर बार की तरह इस बार भी कोई-न-कोई रास्ता निकाल लेंगे।’’