साढे बारह बजे युवाओं की भीड़ का हुजूम परीक्षा हॉल से बाहर निकला, तभी मास्टरी की सरकारी नौकरी हेतु परीक्षा हॉल से निकले दो प्रतियोगियों के बीच बातचीत चल पड़ी।
“कितने बने?”
“अठासी, और आपके?”
“अठासी ही! पास होने के लिए पचहत्तर ही चाहिए डेढ़ सौ मे,”
“बधाई हो, हमें तो नब्बे चाहिए?”
दोनों के बीच निराशा और चुप्पी का सनाका खिंच गया।
“कोई बात नहीं, इस बार न सही अगली बार!”
“आपको सरकारी मास्टरी मुबारक हो।”
और “मुर्झाया हुए अठासी अंक वाला”, “मुस्कुराते हुए अठासी अंक वाले” को अलविदा कहकर आगे बढ़ गया।
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