Quantcast
Channel: लघुकथा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

रुदन

$
0
0

तब उसकी उम्र यही कोई चार-पाँच साल के करीब रही होगी जब एक सुबह माँ की कूकें सुनकर उसकी नींद उचट गई थी। हतप्रभ-सा बिस्तर पर आँखें मलता बैठा रह गया था कि उसकी बुआ रोती-रोती अन्दर आई थी। बुआ ने उसे बताया…..’’चुन्नू!उठ! पागल सुक्को मर गई है।’’

          सुक्को उसकी छोटी-सी बहन थी। नौ महीने की होकर मर गई थी। माँ की कूकें उसने पहली बार सुनी थीं। माँ की हृदयविदारक कूकें सुनकर उसके भीतर कुछ जम-सा गया था।

          वह आठ-दस साल का रहा होगा जब एक दिन उसके नानके से एक आदमी आया था। उसे देखकर माँ के चेहरे पर एक उदास-सी मुस्कान उभर आई थी…‘‘आ भाई! तू कैसे रास्ता भूल गया आज?’’ माँ ने उसे पानी का गिलास थमाया था। उसने  घूँट पीकर बताया कि बड़ा मामा, रामप्रसाद पूरा हो गया है, ‘‘हैं…?’’ माँ के मुँह से एक चीख-सी निकली और माँ अपने पल्लू में मुँह दबाकर कूक पड़ी थी। यह वैसी ही कूक थी जो सुक्को के मरने पर उसने सुनी थी। वह बुरी तरह से डर गया था। ‘वह भागा-भागा पड़ोस से रुक्मणी ताई को बुला लाया था। सामने वाली बूढ़ी अम्मा भी आ गई थी। माँ बहुत देर तक कूकें मारकर रोती रही थी। माँ का प्रलाप उसके भीतर जाकर बैठ गया था।

          वह बड़ा हुआ तो दादा, नानी तथा पिता की मृत्यु पर भी उसने माँ का ऐसा ही रुदन सुना था। हर बार माँ का चीत्कार करता यह रुदन उसके भीतर…..कहीं गहरे में जाकर चिपक-सा जाता था। रात के सन्नाटे को चीरती हुई कोई  ट्रेन जब लम्बी सीटी बजाती हुई गुजरती तो उसे भ्रम हो जाता कि माँ कूक रही है। बाहर गली में कोई लम्बी चीखने की आवाज अथवा किसी बच्चे के रोने की आवाज पर भी उसे अकसर यही भ्रम हो जाता कि यह तो माँ का रुदन है। वह घबराकर भागता, माँ को ढ़ूँढ़ता और माँ के झुर्रियों भरे सपाट चेहरे को देखकर ही चैन पाता।

          एक दिन उसकी माँ मर गई थी। मरी हुई माँ का मुख देखकर उसे रोना नहीं आया। वह रोता था तो माँ को रोती हुई देखकर….रिश्तेदार औरतें स्यापा डाल रही हैं, जिन्हें देखकर भी उसका रोना नहीं फूटा था। अपने जीवन के सारे सुख-दुख, सारे अनुभव अपनी झुर्रियों में समेटकर माँ चुपचाप-सी सोई पड़ी थी।

          वह बूढ़ा हो गया। रोज की तरह वह बड़े बाजार में सग्गू सरिए वाले की दुकान पर बैठा अखबार बाँट रहा था। तभी फकीरिया वहाँ आया तथा उसे राम-राम कहकर बताने लगा, ‘‘चाचा,संघोई वाले रामस्वरूप का बड़ा बेटा रामपाल गुजर गया है। बाद दोपहर संस्कार होना है।’’ उसने चौंकते हुए पूछा था, ‘‘ये कैसे हुआ फकीरे?’’

          लौटते हुए उसे घर पकड़ना भारी हो गया। अपने मरे हुए दोस्त रामस्वरूप की याद हो आई उसे…..और रामपाल को तो उसने गोद में खिलाया था। जाने की उम्र तो मुझ बूढ़े की थी और जा रहे हैं हमारे बच्चे! सोचकर उसे झुरझुरी आ गई थी। लाठी टेकता, कराहता वह किसी तरह घर पहुँचा था। दहलीज पारकर वह बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया था। उसने किसी तरह पुकारा था…..‘‘नराती!’’

          नराती उसकी विधवा बहिन थी, जो आस-औलाद न होने की वजह से साथ ही रहती थी। नराती भाई की आवाज सुनकर बाहर आई, ‘‘हाँ भाई? क्या कहै था?’’

          वह गुम-सा हो गया था। चुप! बोल मानो कहीं उसके दिल में ही अटक-से गए थे। नराती का ध्यान उसके चेहरे पर चला गया था। नराती को उसके चेहरे के पीछे सैंकड़ों ज्वार दिखलाई पड़ गए थे। वह चौंककर बोली, ‘‘हाय-हाय! क्या हो गया भाई? तू इस तरह गुम-सा कैसे हो गया?’’

          लाठी छोड़ वह खड़ा हुआ और घुटनों पर दोहत्थड़ मारकर जमीन पर बैठ गया। वह कूकें मारकर रो पड़ा था। लम्बी-लम्बी कूकें….मुहँ उसने अपने कुरते के छोर में दबोचा हुआ था।

नराती भी वहीं बैठकर भाई का सिर छाती में दबोचकर रोने लगी, ‘‘हाय-हाय! भाई तू बोल तो सही आखिर हुआ क्या…..?’’

‘‘……राम…पाल…पूरा हो गया…..’’ रोते हुए किसी तरह वह बोला था….

‘‘हैं? कौन सा रामपाल?’’

‘‘संघोई वाले रामस्वरूप का छोकरा…..’’

‘‘हाँ नारती खुद भी जोर-जोर से रोने लगी थी। सारा परिवार घबराया-सा वहीं जमा हो गया था।

संस्कार से लौटकर वह चौबारे में लेटा हुआ था। नीचे बरामदे में उसके बेटे आपस में बातें कर रहे थे।

‘‘इसका मतलब है कि पिता जी के अन्दर कोई बहुत गहरा दु:ख जमा हुआ है….कैसे औरतों की तरह फूट-फूटकर रो पड़े थे रामपाल की मौत की खबर सुनकर?’’ बड़े भाई ने कहा तो छोटा चिढ़ते हुए बोला, ‘‘यार, दस-साल से ऊपर हो गए हैं रामसरूप को मरे हुए। तब से आना-जाना ही छूटा पड़ा है। माँ के मरे पर तो सोरे आए नहीं थे। जबकि चिट्ठी मैंने ख़ुद पोस्ट की थी….हमारी तो समझ से बाहर है कि जिस रामपाल ने अपने बच्चे छोड़ रखे थे, शराब के चक्कर में, उस रामपाल की मौत पर ऐसे कूकें मारकर पिताजी आखिर क्यों रो पड़े….?’’

-0-


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>