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शंकर पुणतांबेकर की लघुकथाएँ

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1-और यह वही था

तस्कर ने जब सौगंध खाई कि अब मैं यह धंधा नहीं करूँगा तो इधर उसने उस पर तमंचा दाग दिया। तमंचा सिर्फ आवाज करके रह गया। तस्कर जिन्दा का जिन्दा।
यह देख उसने तमंचा देनेवाले की गर्दन पकड़ी।
उस गरीब ने बताया, ” मेरी क्या गलती है! यह तो मैंने खासी भरोसे की जगह सरकारी आर्डनेंस फैक्टरी से चुराया था।”
उसने जाकर आर्डनेंस फैक्टरी के बड़े अफसर की गर्दन पकड़ी।
उसे अफसर ने बताया, “मेरा क्या दोष ! ऊपर आप अपने पिताजी की ही गर्दन पकड़िए।”
और उसने जाकर सचमुच अपने पिता की भी गर्दन पकड़ी। बोला, “आपकी वजह से देश की फैक्टरियों में ऐसे गलत तमंचे बन रहे हैं।”
इस पर पिता ने कहा, “तुमसे क्या छिपाऊँ बेटे! इसमें दोष मेरा है, पर पूरी तरह से मेरा ही नहीं, माल जुटानेवाले ठेकेदार का भी है। पर ठेकेदार की गर्दन न पकड़ना। हम कहीं के नहीं रहे जाएँगे।”
और पिता से जब उसने ठेकेदार का नाम पूछा,तो ज्ञात हुआ वह और कोई नहीं, वही तस्कर था, जिस पर उसने तमंचा दागा था।
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2-आम आदमी

नाव चली जा रही थी।
मझदार में नाविक ने कहा, “नाव में बोझ ज्यादा है, कोई एक आदमी कम हो जाए तो अच्छा, नहीं तो नाव डूब जाएगी।”
अब कम हो जए तो कौन कम हो जाए? कई लोग तो तैरना नहीं जानते थे: जो जानते थे उनके लिए भी परले चार जाना खेल नहीं था।
नाव में सभी प्रकार के लोग थे-डाक्टर,अफसर,वकील,व्यापारी, उद्योगपति,पुजारी,नेता के अलावा आम आदमी भी। डाक्टर,वकील,व्यापारी ये सभी चाहते थे कि आम आदमी पानी में कूद जाए। वह तैरकर पार जा सकता है, हम नहीं।
उन्होंने आम आदमी से कूद जाने को कहा, तो उसने मना कर दिया। बोला, “मैं जब डूबने को हो जाता हूँ तो आप में से कौन मेरी मदद को दौड़ता है, जो मैं आपकी बात मानूँ?”
जब आम आदमी काफी मनाने के बाद भी नहीं माना, तो ये लोग नेता के पास गए, जो इन सबसे अलग एक तरफ बैठा हुआ था। इन्होंने सब-कुछ नेता को सुनाने के बाद कहा, “आम आदमी हमारी बात नहीं मानेगा, तो हम उसे पकड़कर नदी में फेंक देंगे।”
नेता ने कहा, “नहीं-नहीं ऐसा करना भूल होगी। आम आदमी के साथ अन्याय होगा। मैं देखता हूँ उसे। मैं भाषण देता हूँ। तुम लोग भी उसके साथ सुनो।”
नेता ने जोशीला भाषण आरम्भ किया जिसमें राष्ट्र,देश, इतिहास,परम्परा की गाथा गाते हुए, देश के लिए बलि चढ़ जाने के आह्वान में हाथ ऊँचा कर कहा, “हम मर मिटेंगे, लेकिन अपनी नैया नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे…नहीं डूबने देंगे”….!
सुनकर आम आदमी इतना जोश में आया कि वह नदी में कूद पड़ा।
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3-रोटी

भगवान ने हमसे कहा, “हमारा यह मंदिर खोद डालो। यह मंदिर नहीं, साक्षात् भ्रष्टाचार खड़ा हुआ है।”
हमने कहा, “हमारे पास सिर्फ कलम है। इससे जल्दी नहीं खोद पाएँगे। जिनके पास सही हथियार हैं, आप उनसे क्यों नहीं कहते? ”
इस पर हमने कहा, “आप उन्हें रोटी देकर ताकत क्यों नहीं देते? ”
भगवान बोले, “मैं उन्हें रोटी दे तो दूँ, पर वह उनके अधिकार की नहीं, भीख की चीज होगी। भीख की रोटी आदमी को काहिल बना देती है और काहिल लोग जड़ नहीं खोद सकते।”
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4-और वह मर गई

सत्य ने मां, नीति के पास आकर कहा,”आज मैंने एक बहुत बड़ा प्राणी देखा।”
“कितना बड़ा…?” नीति ने पेट फुलाकर दिखाया।
“नहीं, इससे बड़ा ।”
नीति ने फिर पेट फुलाया ।
“नहीं, इससे भी बड़ा माँ ! ” सत्य ने कहा।
नीति पेट फुलाती गई और सत्य कहता गया-इससे भी बड़ा।
सत्य ने जिस प्राणी को देखा था, भ्रष्टाचार था। नीति उसके दसवें हिस्से जितना पेट नहीं फुला पाई कि वह फूट गया।
नीति बेचारी मर गई।
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5.अध्यक्ष और चोर

एक रात की बात है, अधिक देर काम करते रहने के कारण अध्यक्ष महोदय दफ़्तर में ही सो गये। पिछले दरवाजे़ से एक चोर घुस आया। उसने तिजोरी खोली।
अध्यक्ष महोदय ने उसे आते देख लिया था। चोर ने जब तिजोरी खोली तो वे उससे बोले, ‘‘अरे, तुम पिछले दरवाज़े से क्यों आये? यहाँ तो अगले दरवाजे़ से ही स्वागत किया जाता है।’’
चोर पहले तो सहमा फिर अध्यक्ष की ओर देखता रह गया।
अध्यक्ष ने आगे कहा, ‘‘कितना अच्छा है तुम तिजोरियाँ भी खोल लेते हो! तुम जैसे लोगों का तो हमारे यहाँ विशेष स्वागत है। बस, तुम हम लोगों में चले आओ।
चोर ने कहा, ‘‘मैं तुम लोगों में आ तो जाऊँ, पर मेरी कुछ शते हैं।’’
अध्यक्ष ने कहा, ‘‘तुम्हारी जो भी शर्तें हों, हमें मंजूर हैं। तुम्हें एक बात बताऊँ! मैं भी कभी तुम्हारी ही तरह चोर था और तुम्हारी ही तरह एक रात यहाँ आया था।’’
चोर भला अब क्या बोलता!
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