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Channel: लघुकथा
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विसंगतियों से साक्षात्कार

‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल) के अनुसार हिन्दी गद्य साहित्य की शुरूआत उन्नीसवीं सदी के पांचवे दशक में हुई और हिन्दी कथा साहित्य की शुरूआत भारतेन्दु युग से मानी जाती हैं। इस युग...

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बाबू जी का श्राद्ध

श्राद्ध पक्ष चल रहे थे । घर में बाबूजी का ग्यारस का श्राद्ध निकालना था । दो चार दिन पहिले से ही पंडित जी को न्योता दे दिया था । उस दिन सुबह जब याद दिलाने के लिये पंडित जी को फ़ोन किया तो वे कहने लगे ”...

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मेंढकों के बीच

वर्षो पहले मैंने अपने बेटे को एक कहानी सुनाई थी, जो कुछ इस तरह थीः एक बार की बात है, रात के अँधेरे में एक गाय फिसलकर नाले में जा गिरी। सुबह उसके इर्द-गिर्द बहुत से मेंढक जमा हो गए। ‘‘आखिर गाय नाले में...

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सरपरस्ती (उर्दू)

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दुर्भाग्य एवं संघर्ष का पर्याय : डॉ अब्ज

अमरनाथ चौधरी ‘अब्ज’ लघुकथा–जगत् का एक ऐसा नाम है, जिसका प्रवेश लघुकथा में नवें दशक के तीसरे वर्ष में हुआ । यों उसने अपने ढंग के एकांकी, कविताएँ, कहानियाँ एवं लघुकथाएँ लिखीं, किन्तु इसकी पहचान लघुकथा...

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जोगिन्दर पाल की लघुकथाएँ

लघुकथा न्यूनतम शब्दों में किसी एक कथा–बिम्ब को अभियक्त करने की विधा है। आज की लघुकथा की प्रकृति भौतिक है, जो सीधे यथार्थ जीवन और जगत से जुड़ा है। लघुकथा सामाजिक विसंगतियों पर कुठाराघात करनेवाली विधा...

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छोटी सी आशा ( लघुकथा-संग्रह): रेणु चन्द्रा

छोटी सी आशा ( लघुकथा-संग्रह): रेणु चन्द्रा; पृष्ठ:106 सजिल्द; मूल्य:160 रुपये,संस्करण:2015; प्रकाशक:दिव्य भारती पब्लिशिंग एजेंसी, 926-बी , ग्रीन हाउस, चौड़ा रास्ता, जयपुर-302003

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पृथ्वीराज अरोड़ा की लघुकथाएँ

1-बेटी तो बेटी होती है तेज धूप में पसीने की बूंदें उसके चेहरे पर चुचुआ आतीं, जिन्हें वह बार–बार पोंछ लेता था। उसके कपड़े उसके शरीर के साथ चिपक गए थे। सांय–सांय करती सडक पर दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दे...

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बूँद-बूँद सागर

बूँद-बूँद सागर:सम्पादक-डॉ जितेन्द्र जीतू और डॉ नीरज सुधांशु ;प्रकाशक: वनिका पब्लिकेशस, एन ए-168,गली नं-6,विष्णु गार्डन, नई दिल्ली-110018 पृष्ठ:184 सजिल्द, मूल्य:250 रुपये, संस्करण : 2016

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राजदंड

(अनुवाद : सुकेश साहनी) राजा ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘वास्तव में तुम रानी बनने लायक नहीं हो, तुम इस कदर अशिष्ट और भद्दी हो कि तुम्हें अपनी रानी कहते हुए शर्म आती है।’’ पत्नी ने कहा, ‘‘तुम राजा बने फिरते...

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पंजाबी लघुकथाएँ-विक्रम सोनी -पृथ्वीराज अरोड़ा

अन्तहीन सिलसिला-विक्रम सोनी ਅੰਤਹੀਨ ਸਿਲਸਿਲਾ-ਵਿਕਰਮ ਸੋਨੀ अनुवाद-ਸ਼ਿਆਮ ਸੁੰਦਰ ਅਗਰਵਾਲ ਦਸਾਂ ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਨੇਤਰਾਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੀ ਅਰਥੀ ਨੂੰ ਮੋਢਾ ਦਿੱਤਾ, ਤਦੇ ਉਹ ਭੁੱਬਾਂ ਮਾਰ-ਮਾਰ ਰੋ ਪਿਆ। ਜਿਹੜੇ ਲੋਕ ਅਜੇ ਤਕ ਉਸਨੂੰ ਪੱਥਰ ਦੇ...

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विक्रम सोनी की लघुकथाएँ

1-कारण चमचमाती, झंडीदार अंबेसडर कार बड़े फौजी साज–सामान बनानेवाली फैक्टरी के मुख्य द्वार से भीतर समा गई। नियत स्थान पर वे उतरे। अफसरान सब पानी जैसे होकर उनके चरणों को पखारने लगे। कुछ गण्यमान्य कहे...

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विक्रम सोनी की लघुकथाएँ

आठवें दशक की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि डॉ. सतीश दुबे के सम्पादन में 1979 में प्रकाशित ‘आठवे दशक की लघुकथाएँ’ है,हालाँकि उसी समय सशक्त हस्ताक्षरों के बीच विक्रम सोनी को इस संकलन में न लेना आश्चर्य की बात...

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सर्वकालिक लघुकथाएँ

कहीं बैठे बैठे दृष्टि घूमी…. बादल का एक टुकड़ा सामने से गुज़रा, सड़क पर जाता कोई बालक दिखा, एक चेहरे पर कौंधी खुशी, कोने में पड़ी कोई वस्तु, कोई दर्द, कोई आवाज़, कोई लम्हा अंतस् में जा टकराया और जब...

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लघुकथा अनवरत

विश्व पुस्तक मेला अपनी सम्पूर्ण भव्यता को समेटकर संपन्न हुआ। इस बार दिखे पाठकों के उत्साह ने सिद्ध कर दिया कि पुस्तक का कोई विकल्प नहीं है। अयन प्रकाशन द्वारा इस अवसर पर 40 पुस्तकों का प्रकाशन किया...

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हिन्दी लघुकथा लेखन में बहुत-सी संभावनाएँ

सुकेश साहनी और रामेश्वर काम्बोज‘हिमांशु’जी के संपादन में अयन प्रकाशन से प्रकाशित 64 रचनाकारों की लघुकथाओं का संकलन ‘लघुकथा अनवरत’ निःसंदेह एक प्रशंसनीय और सराहनीय प्रयास है। इन्हें फेसबुक मित्रों की...

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ਆਮ ਆਦਮੀ/आम आदमी

( पंजाबी) अनुवाद( श्याम सुन्दर अग्रवाल) ਕਿਸ਼ਤੀ ਚਲੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ। ਦਰਿਆ ਵਿਚਕਾਰ ਜਾ ਕੇ ਮੱਲਾਹ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਕਿਸ਼ਤੀ ਵਿਚ ਵਜ਼ਨ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੈ। ਜੇਕਰ ਇਕ ਆਦਮੀ ਘੱਟ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਕਿਸ਼ਤੀ ਡੁੱਬ ਜਾਵੇਗੀ।” ਹੁਣ ਘੱਟ ਹੋ...

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सामाजिक विसंगतियों पर चोट

भूमंडलीकरण व ग्लैमर का दौर जिस द्रुत गति से चला है, सामाजिक विसंगतियों के चेहरे भी उसी गति से परिवर्तित हो रहे हैं। नित नई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। पाश्चात्य संस्कृति की चकाचौंध में आंखे चुंधिया...

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निद्राजीवी

(अनुवाद-सुकेश साहनी) मेरे गाँव में एक औरत और उसकी बेटी रहते थे, जिनको नींद में चलने की बीमारी थी। एक शांत रात में, जब बाग में घना कोहरा छाया हुआ था, नींद में चलते हुए माँ बेटी का आमना–सामना हो गया। माँ...

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शंकर पुणतांबेकर की लघुकथाएँ

1-और यह वही था तस्कर ने जब सौगंध खाई कि अब मैं यह धंधा नहीं करूँगा तो इधर उसने उस पर तमंचा दाग दिया। तमंचा सिर्फ आवाज करके रह गया। तस्कर जिन्दा का जिन्दा। यह देख उसने तमंचा देनेवाले की गर्दन पकड़ी। उस...

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