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Channel: लघुकथा
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मन के रोगी

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    एक ठीक-ठाक आदमी सड़क किनारे बैठकर भीख माँग रहा था। कोई राहगीर आता दिखता तो वह झट अपने लंबे-लंबे हाथ आगे बढ़ा देता। एकाध लोग कुछ पैसे डाल देते, बाकी मुँह घुमाकर निकल जाते।

   तभी कर्मठ सा दिखने वाला एक राहगीर उस भिखारी के नजदीक गया। उसने कहा, ‘‘मैं तुम्हें पर्याप्त भीख दूंगा। बस, मेरा कुछ कहा मानना होगा।’’

    उस निराश भिखारी में उम्मीद की ज्योति जल गई। उसने कहा, ‘‘कहिए, क्या करना होगा ?’’

    उस आदमी ने कहा, ‘‘तेजी से उठकर खड़े हो जाओ।’’

    भिखारी ने तुरन्त आज्ञा का पालन किया। वह पूरी मुस्तैदी से उठ खड़ा हुआ। राहगीर ने फिर कहा, ‘‘सामने चौराहे तक की दौड़ लगाओ और जितनी जल्दी हो सके लौट कर आओ।’’

   सुनते ही भिखारी दौड़ पड़ा और पलक छपकते ही वापस आ गया।

   अब राहगीर ने एक बड़ा पत्थर दिखाते हुए कहा, ‘‘इसे आसमान की तरफ उठाकर दिखाओ।’’

   भिखारी ने यह कार्य तुरन्त कर दिखाया।

   यह देख उस राहगीर की आंखें लाल हो गईं। वह भिखारी पर गरजा, ‘‘बेशर्म, गाली देते हो ?’’

   भिखारी चकराया। उसने पत्थर नीचे गिराते हुए पूछा, ‘‘मैंने कब गाली दी ?’’

   राहगीर ने दाँत पीसते हुए कहा, ‘‘तुम अपने निकम्मेपन से अपने सामर्थ्यवान शरीर को गाली देते रहते हो, क्या यह तुम्हें सुनाई नहीं देता ?’’


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