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Channel: लघुकथा
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संभ्रांत लोग

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पूरा मोहल्ला गुलजार हो उठा था। खाली पड़े सारे मकान धीरे-धीरे लोगों से भर गए थे। सब खाते-पीते घरों केसंभ्रांत लोग थे। सबके पास अपनी-अपनी कारें थीं। कॉलोनी में जहां-तहां से कई कुत्ते भी आकर बस गए थे । खाने के लिए वे दिन-रातदरवाज़ों के चक्कर काटते,अपनी पूंछें हिलाते रहते। लेकिन कहीं कोई इनकी सुध नहीं लेता था। उल्टा उन्हें मारने दौड़ते। फिर भी कॉलोनी की रखवाली करने के अपने काम में वे मुस्तैद रहते थे।धीरे-धीरे खाना न मिलने की वजह से सारे कुत्ते मरियलऔर बीमार होने लगे।

इस कॉलोनी के सामने ही एक नई कॉलोनी निर्माणाधीन थी। मकान बनाने के काम में बहुत सारे आदिवासी मजदूर लगे थे। वे सब वही झोंपड़ी बनाकर अपने परिवार के साथ रहते थे। सबकी स्थिति फटेहाल थी। वहाँ भी कई कुत्ते रहने आ गए थे। आदिवासी मजदूर उन सबको रोज कुछ-न-कुछ खिलाया करते। उनके बच्चे कुत्तों के सबसे अच्छे दोस्त थे। वे अपना खाना भी उनको खिला देते थे। वहाँ के कुत्ते हृष्ट-पुष्ट और तगड़े होते जा रहे थे।

ई-मेल: drsunilsuman.jnu@gmail.com मोबाइल- 09552733202

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