वे चारों एक विवाहोत्सव में पहली बार मिल रही थीं। यूँ एक दूसरे के बारे में काफी कुछ जानती थीं क्योंकि उन सबके पति एक बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करते थे।
आज उसी कम्पनी में कार्यरत एक अन्य कर्मचारी का विवाह था। मुस्कुराहटों के आदान प्रदान के पश्चात औपचारिक परिचय आरम्भ हुआ।
शर्मा जी आरम्भ करते हुए बोले- “यह श्रीमती शर्मा”। सभी ने अभिवादन किया।
अरोड़ा जी ने परिचय दिया- “श्रीमती अरोड़ा”
दत्त साहब ने अपने चिर-परिचित मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “और यह हैं हमारी श्रीमती जी जिनके हाथों में हमारी नकेल रहती है”। सब दाँत चिराय के हँस दिए।
बस एक वही था जिसने कहा “यह प्रभा हैं, मेरी जीवनसंगिनी।” इस संक्षिप्त से परिचय से भी प्रभा को लगा मानो वह सबसे ऊँची हो गई है।
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