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Channel: लघुकथा
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कड़वाहट

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“सुनो रोमा, कल बड़े भैया के साले आ रहे हैं । अपनी बेटी को लेकर। उनका अस्पताल में  अपॉइंनमेंट है।” मैंने पत्नी को बताया।

सुनते ही उसके चेहरे पर गुस्सा आ गया। करेले को ज़ोर से छीलते हुई वो बोली-“अब हमने शहर में रह कर कोई गुनाह किया है क्या? जो आए दिन कोई न कोई गाँव से आ जाता है।”

“अब बच्चे को बीमारी ही ऐसी है कि उसका इलाज गाँव में नहीं है फिर निभाना तो दोनों तरफ से होता है रोमा। माँ – बाबूजी और बड़े भैया कितना स्नेह देते हैं हमको।”

“अब हम  दौड़- दौड़ कर उनके काम करेंगे तो वो काम तो आयेंगे ही इसमें कौनसी बड़ी बात है।” उसकी नाराज़गी कम नहीं हुई।

“अब ये तो सोचने का फ़र्क है। मैं तुमको कैसे समझाऊँ?” हम बात कर ही रहे थे कि हमारी कामवाली बाई सरिता ने रोमा के पास आकर कहा-“भाभी जी मैं बताना भूल गई कल मैं काम पर नहीं आऊँगी।”

रोमा ने मेरी तरफ दुगुने गुस्से से देखा और बोली-“सुन लिया अब सारे दर्द मुझे ही उठाने होंगे।”

सरिता की तरफ देखते हुए मैंने कहा- ” कल छुट्टी मत लगा सरिता, कल थोड़ा काम ज्यादा होगा।तुझे क्या काम आ गया है।”

“इसके पास बहानों की कमी है क्या?” रोमा ने चिढ़ते हुए कहा।

“कोई बहाना नहीं है भाभी। कल मेरी बड़ी ननद की सास को देखने अस्पताल में जाना है।”

“अब तेरी ननद की सास को कल ही देखने जाना ज़रूरी है क्या?”

” हाँ, भाभी  मेरी ननद चल -फिर नहीं सकती है। कल उनकी बेटी परीक्षा देने जायेगी तो उनकी सास का सारा काम मुझे ही करना पड़ेगा।”

मेरी पत्नी ने ग़ुस्से से बोला-“उनके घर में कोई और नहीं है क्या ये सब करने के लिये?” करेले को नमक लगाते हुए वो बोली।

सरिता ने बड़ी सहजता से कहा-“भाभी मेरी ननद बड़ी है।  मैं उनसे इतने सवाल नहीं करती हूँ। वो जो कहती है मान लेती हूँ। परिवार के काम आने में सोचना कैसा?” सरिता तो जवाब देकर झाड़ू हाथ में लिये आगे बढ़ गई। मेरी पत्नी उसे रसोई में जाते हुए देख रही थी। अब करेले ज़हर छोड़ते दिख रहे थे।

-0-मेलseema.jain822@gmail.com


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