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हिन्दी- लघुकथा के विकास में कृष्णानन्द कृष्ण का योगदान-

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हिन्दी-लघुकथा के विकास में जिन कतिपय पांक्तेय लेखकों ने अपनी पूरी निष्ठा से योगदान दिया है उनमें एक नाम कृष्णानन्द कृष्ण का भी है| उनका जन्म २ जुलाई, १९४७ को भोजपुर, बिहार के आरा नामक नगर के नरहीं चाँदी ग्राम में हुआ था| आपने असैनिक अभियन्त्रण में उपाधि प्राप्त की और बिहार सरकार के पी.एच.डी.विभाग में कनीय अभियन्ता पद से सेवा आरंभ की और ३० जून, २००७ को सहायक अभियन्ता पद से प्रतिष्ठा सहित अवकाश ग्रहण किया और उसके पश्चात् हिन्दी एवं भोजपुरी साहित्य में स्वतंत्र रूप से ३० अप्रैल, २०२० तक यानी अन्त समय तक यथा-संभव अपना योगदान देते रहे|

आपका सृजन हिन्दी-कहानी लेखन  सातवें दशक से आरम्भ हुआ, बाद में अपनी मात्रु-भाषा भोजपुरी भाषा साहित्य में अन्त-अन्त तक सक्रिय रहे| हालाँकि जीवन के  अन्तिम दशक में अस्वस्थ रहने के कारण साहित्य-लेखन में पूर्व की भाँति उतना सक्रिय तो नहीं रहे किन्तु फिर भी कुछ –न-कुछ लेखन-पठन करते रहे|

स्मरणीय है अस्वस्थ रहते हुए भी उन्होंने मधुदीप के आग्रह पर पड़ाव और पड़ताल के १४ वें खण्ड में राजकुमार निजात की प्रस्तुत ११ ग्यारह लघुकथाओं पर एक श्रेष्ठ आलेख भी लिखा या जिसमें उल्लेखित उनकी तटस्थ आलोचना की भूरी-भूरी प्रशंसा हुई|

यों तो आप सातवें दशक से हिन्दी-कहानी के अतिरिक्त भोजपुरी भाषा में भी कहानी, कविता, ग़ज़ल, समीक्षा, आलोचनात्मक लेख, शोध एवं अन्यान्य प्रकार के आलेख लिखते रहे किन्तु आठवें दशक के अन्त आते-आते आप लघुकथा-विकास में पूरी निष्ठा एवं समर्पण भाव से लग गये और जीवन के अन्तिम वर्षों तक उनका यह प्रयास जारी रहा |

आठवें दशक के अन्त से आपने  अनियमित पत्रिका ‘पुनः’ का सम्पादन आरंभ किया था और उसमें प्रायः सभी विधाओं को समान दर्जा देते थे किन्तु आठवें दशक के अन्त आते-आते इस  पत्रिका  का एक स्थान लघुकथा के विकास में हो गया | और नवें दशक के मध्य यानी सन् १९८४-८५ के आस-पास उन्होंने ‘पुनः’ का एक लघुकथा विशेषांक प्रकाशित किया और उसे ‘लघुकथा: सृजना एवं मूल्यांकन’ नाम से पुस्तकाकार भी दिया | यह कार्य उन्होंने डाल्टनगंज रहते हुए किया था |

उन्होंने लघुकथा का सृजन भी किया किन्तु धीमी-गति से| अन्त-अन्त तक उनकी लघुकथाओं की संख्या ६०-६५ तक ही सीमित रही,वह सोचते और योजना बनाते रहे किन्तु वह उनका एक संग्रह प्रकाशित नहीं कर-करा सके |

यों तो उनकी लघुकथाएँ ‘सारिका’, ‘तारिका’, ‘शुभ तरिका’ से लेकर लघुकथा को समर्पित पत्रिकाओं , ‘मिनीयुग’, ‘दिशा’, ‘लकीरें’, ‘काशें’, ‘साहित्यकार’, ‘विकल्प’, ‘संरचना’, ‘ललकार’, ‘युद्ध’, ‘आघात’, ‘लघुआघात’, ‘क्षितिज’, इत्यादि लघुकथा को समर्पित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं | इनके अतिरिक्त लघुकथा डॉट कॉम के ‘संचयन’ में उनकी लघुकथाएँ और ‘दस्तावेज’ में  लेख प्रकाशित हुए।|

लघुकथा-सृजन के अतिरिक्त उन्होंने लघुकथा-समीक्षा और आलोचना के क्षेत्र में भी पर्याप्त योगदान दिया है| उनके लेखों का एक संग्रह ‘लघुकथा: दिशा और स्वरुप’ १९९७ ई. में प्रकाशित हुआ जिसमें लघुकथा विषयक बीस आलेख संगृहीत हैं जिसकी भूमिका सभ्रांत लघुकथा-लेखक सुकेश साहनी ने ‘परिदृश्य’ शीर्षक से लिखी थी|

इन बीस लेखों में सबका अपने-अपने विषयानुसार विशेष महत्त्व है| ये सभी लेख प्रकाशन से पूर्व चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में स-सम्मान स्थान प्राप्त करते रहे हैं|

सन् २००१ में ‘पुनः’ का एक और लघुकथा विशेषांक प्रकाश में आया जिसमें बीसवीं सदी की प्रतिनिधि लघुकथाओं का चुनाव किया गया था | २००२ ई. में ‘बीसवीं सदी की १०१ प्रतिनिधि लघुकथाएँ’ नाम से पुस्तकाकार हुआ, यह कहने  की आवश्यकता नहीं है जो पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित अपनी समीक्षा के कारण पर्याप्त ख्याति अर्जित करने में सफल हुआ |

१९८७ ई. में इन पंक्तियों के लेखक डॉ.सतीशराज पुष्करणा की अध्यक्षता में आयोजित गोष्ठियों में अ.भा.प्रगतिशील मंच ’ का गठन किया गया और पुष्करणा जी को तंदर्थ अध्यक्ष , निशांतर को महासचिव बनाया गया, दो और सदस्य थे जिनमें एक कृष्णानन्द कृष्ण, डॉ. मिथिलेशकुमारी मिश्र एवं नरेन्द्र प्रसाद ‘नवीन’ इसके सदस्य नियुक्त किये गए | इन पाँचों सदस्यों को मिलाकर  प्रथम सम्मलेन २३-२४ अप्रैल, १९८८ को हुआ था| सम्मलेन के पश्चात् कार्यकारिणी का गठन किया गया जिसमें डॉ.भगवतीशरण मिश्र को अध्यक्ष बनाया गया | पुनः १९९३ से १९९४ तक की अध्यक्षता का भार प्रो. चन्द्रकिशोर पाण्डेय ‘निशांतकेतु’ को सौंपा गया और मंच द्वारा आयोजित रजत सम्मलेन २०१२ ई. तक उसका निर्वाह बहुत ही कुशलतापूर्वक निर्वाह किया |  उसके पश्चात् से मंच की अध्यक्षता का भार पुनः इन पंक्तियों के लेखक पर आ गया |

लगातार अट्ठारह वर्षों तक कृष्णानन्द कृष्ण ने अपने अध्यक्षीय दायित्व का निर्वाह बहुत ही कुशलता से किया | इसके अतिरिक्त इन अट्ठारह वर्षों में मंच द्वारा आयोजित जो भी गोष्ठी होती थी उसकी अध्यक्षता का दायित्त्व का निर्वाह कृष्णानन्द कृष्ण ही करते थे |

हिन्दी से भोजपुरी और भोजपुरी से हिन्दी की अनेक-अनेक चर्चित लघुकथाओं का अनुवाद कृष्णानन्द कृष्ण समय-समय पर करते रहे |

‘भोजपुरी सम्मलेन पत्रिका’ का एक लघुकथा विशेषांक इसका स्पष्ट उदाहरण है |

२०१२ ई. के पश्चात् वे अस्वस्थ रहने लगे तो फिर वह पूर्व की भाँति उतने सक्रिय नहीं रह पाए और अंततः ३० अप्रैल को वह इस जगत को छोड़कर विदा हो गये किन्तु लघुकथा के इतिहास में उनका नाम सदैव अमर रहेगा |

उनकी पवित्र आत्मा को शत्-शत् प्रणाम !

डॉ.सतीशराज पुष्करणा (अध्यक्ष)

अ.भा.प्रगतिशील.लघुकथा मंच, महेन्द्रू, पटना- ८००००६ (बिहार)

मो: 8298443663, 9006429311 

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