डॉ. बलराम अग्रवाल लघुकथा के उन शीर्षथ हस्ताक्षरों में से हैं, जिन्होंने लघुकथा में सृजन और समीक्षा-समालोचना के साथ लघुकथा का रूप-स्वरूप तय करने का काम भी किया है और उत्कृष्ट व संभावनाओं की तलाश करने वाले संपादन के माध्यम से भी लघुकथा को विभिन्न कोणों से समृद्ध किया है। दूसरी बात उन्होंने अपने एकल संग्रहों की संख्या बढ़ाने की ओर ध्यान देने की बजाय लघुकथा विषयक ऐसे कामों को पुस्तकाकार रूप में लाने का प्रयास किया, जो लघुकथा पर शोध और संभावनाओं की तलाश के लिए जरूरी थे। शायद यही कारण रहा है कि लघुकथा जगत ‘सरसों के फूल’ के बाद उनकी लघुकथाओं के पुस्तकाकार रूप की प्रतीक्षा ही करता रहा। उनकी एक के बाद एक अनेक उत्कृष्ट लघुकथाएँ विभिन्न माध्यमों से सामने आती रहीं लेकिन संग्रह के शीर्षक की तलाश अब जाकर ‘पीले पंखों वाली तितलियाँ’ के रूप में पूरी हुई है।
लम्बी प्रतीक्षा के दृष्टिगत इस संग्रह में आने से पूर्व ही उनकी अनेक लघुकथाएँ बेहद चर्चित और लोकप्रिय हो चुकी हैं। मसलन कुंडली, बिना नाल का घोड़ा, बीती सदी के चोंचले, कंधे पर बेताल, लगाव आदि-आदि। डॉ. बलराम अग्रवाल जी ने किसी विषय विशेष को अपना प्रिय नहीं बनाया, अपितु मानवीय जीवन के तमाम पहलुओं को अपने सृजन में उजागर करने की कोशिश की है। उन्होंने अपने सृजन में संवेदना के नए-नए रूप तलाशने की कोशिश की है। ‘बिंधे परिन्दे’, ‘प्यासा पानी’, ‘आधे घंटे की कीमत’ जैसी लघुकथाओं को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। यथार्थ की प्रस्तुति में तर्कसंगत विश्लेषण और अभिव्यक्ति की कलात्मकता का संयोजन अनेक लघुकथाओं में मिलेगा। यह संयोजन जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी साधारण चीजों में रचनात्मकता को तलाशनेे के लिए जरूरी होता है। खनक, सियाही, गरीब का गाल, तिरंगे का पाँचवां रंग. आहत आदमी जैसी अनेक उत्कृष्ट लघुकथाएँ मानो क्रिकेट के मैदान पर गेंद को दो फील्डरों के बीच मामूली से गैप से निकालकर मारे गए चौके हैं। ‘वे दो’, ‘संकल्प’, ‘रमेश की मौत’, ‘बब्बन की बीवी’, ‘सलीम, मेरे दोस्त’ आदि लघुकथाएँ शिल्प के स्तर पर लघुकथा में आ रहे बदलावों का उदाहरण हैं। शीर्षक लघुकथा ‘पीले पंखों वाली तितलियाँ’ लघुकथा में बाल मनोविज्ञान की रचनात्मक प्रस्तुति का तो उत्कृष्ट उदाहरण है ही, कलात्मक प्रस्तुति का भी सुन्दर नमूना है। इस संग्रह को विषयगत विविधिता के साथ रचनात्मक व कलात्मक विविधिता को समझने के लिए पढ़ना तो रुचिकर होगा ही, लघुकथा में आ रहे बदलावों की दृष्टि से भी प्रभावशाली माना जायेगा।
पीले पंखों वाली तितलियाँ: लघुकथा संग्रह: डॉ.बलराम अग्रवाल। प्रकाशक: राही प्रकाशन, एल-45, गली-5, करतारनगर, दिल्ली। मूल्य: रु.300/-मात्र। पृष्ठ: 152। सं.: 2015।
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