टप्पऽऽ …टप्पऽ …टप …टप-टप-टप…’ कार-शेड पर गिरी गेंद आंगन में दीवार से टकराकर लुढ़कते हुए कार के नीचे चली गयी।
‘‘क्या है रे…कितनी बार समझाया कि यहां मत खेलो…!’’ नरेश अबकी आपे से बाहर हो गये। वे लैप-टॉप छोड़कर आंगन में निकल आये। इस बीच पड़ोस का बंटी फाटक की कुंडी खोलकर भीतर आने ही वाला था कि नरेश ने हड़काया, ‘‘ऐ, खबरदार, जो भीतर आये। चल बाहर…। मैदान समझ रखा है क्या…? कितनी बार मना किया…? चार बजे नहीं कि हो गये शुरू…। चलो भागो यहां से…।’’
‘‘अंकल जी, गेंद दे दीजिए …अब नहीं खेलेंगे यहां…।’’
‘‘कुछ नहीं मिलेगी गेंद …एक घंटे से देख रहा हूं…फटा-फट …फटा-फट …। एक काम नहीं कर सकता कोई…। खिड़की के कांच फूटेंगे सोअलग…।’’
‘‘अंकल जी, उतने ऊपर नहीं जाती गेंद …।’’
‘‘कैसे नहीं जाती? कार- शेड पर जा सकती है तो खिड़की पर क्यों न जाएगी?’’
‘‘वो, मिताली दीदी ने मारा इस कारण चली गयी। मिताली दीदी भाईदूज के लिए आयी है। कल चली जाएगी। फिर हम लोग ही रहेंगे। हम लोग दूसरी ओर जाकर खेलेंगे …। दे दीजिये, प्लीज…!’’
‘‘एक बार कह दिया, नहीं मिलेगी तो ,नहीं मिलेगी …चलो भागो यहां से …।’’
‘‘पिताजी ने आज ही खरीद कर दी है… कितने दिनों बाद । अब दूसरी एक तारीख के बाद ही मिलेगी। और एक तारीख बहुत दूर है। …दे दीजिए, प्लीज।’’
‘‘तू भागता है कि दिखाऊं तुझे …? बड़ा आया एक तारीख वाला !’’कहते हुए नरेश ने दुड़की भरी तो बंटी भाग गया।
रात को भोजन करते-करते सब टी वी देख रहे थे, एक दादाजी को छोड़कर । उनका ध्यान पड़ोस से आ रही बंटी के पिता की जोर-जोर से डांटने की आवाज की ओर था। कुछ देर बाद डांटने की आवाज बालक के रोने की आवाज में तब्दील हो गयी थी।
भोजन करके सब अपने-अपने बिस्तर पर जाकर लेट गये। दादाजी भी। लेकिन उन्हें नींद नहीं आ रही थी। वे बार-बार करवटें बदलते जा रहेथे। उन्हें जैसे बिस्तर पर कुछ चुभ रहा था! आखिर वे उठे ।धीरे-धीरे चलकर बाहर की बत्ती जलायी। दरवाजा खोला। कार-शेड तक जाकर अपनी लठिया से कार के नीचे से गेंद निकाली। फिर कम्पाउन्ड- वॉल तक जाकर गेंद बंटी के आंगन में छोड़ दी और बिस्तर पर आकर लेट गये कि कुछ ही देर में ही गहरी नींद लग गयी।❐
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