
मिनी जब दस वर्ष की थी तब उसके पिताजी ने नया मकान खरीदा। उसके पिछवाड़े में, काफी कच्ची धरती थी। मेहनत करके माँ ।ने उस स्थान पर केले, अमरूद व आम के वृक्ष लगा दिये जो कुछ वर्षों में खूब फल देने लगे।
कच्चे केले के बड़े- बड़े गुच्छों से लदे- फदे वृक्ष मनोहारी थे। कच्चे केलों की सब्जी व चिप्स बनते अक्सर अब। मिनी की माँ सामने रहने वालीं वृद्ध मद्रासी महिला से ,केले के फूल तक की ,स्वादिष्ट सब्जी बनाना सीख आईं थीं।
इधर अमरूद के पेड़ पर गुलाबी मीठे अमरूदों की भरपूर उपज आई थी। शायद उस स्थल की उपजाऊ मिट्टी का चमत्कार था, पर सबसे शानदार निकला आम का वृक्ष। वह इतना बढ़ गया कि उसकी शाखाएँ पड़ोस के गुप्ताजी की बाउन्ड्री वॉल पार करके उनके आँगन में कच्ची कैरियों के साथ सूखे पत्तों का ढेर कचरा भी करने लगीं।
गुप्ताजी ठहरे गर्म दिमाग के व्यक्ति। उन्होंने पहले तो बड़ी कैंची से अपनी तरफ निस्संकोच झूमने वाली शाखाओं को कतरा। फिर अपनी बाउन्ड्री वॉल को बीस फीट ऊँचा करवा लिया।
इसी बीच मिनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु दूसरे शहर चली गई।
बीच में जब वो घर आई, तो प्रकृति का चमत्कार देख दंग रह गई।
आम का वृक्ष गुप्ताजी की दीवार को टक्कर देता हुआ उस से भी कुछ फीट ऊँचा चला गया था।शायद हवा व धूप की तलाश में, आसमान से बातें कर रहा हो मानो।
समय ने करवट बदली। मिनी का ब्याह हुआ व माँ- पिता स्वर्ग सिधारे गए कुछ वर्षों में। मिनी उन दुख के दिनों में चुपचाप पीछे जा आम के वृक्ष के तने से लिपट खूब रोई थी।
छोटे भाई का ब्याह हुआ इसके बाद।
कुछ वर्षों तक मिनी का कुछ कारणों से मायका आना ना हुआ। फिर उस शहर में एक सेमिनार के सिलसिले में मिनी का आगमन हुआ। मायके के घर में आते ही वह पिछवाड़े जा पहुँची तो भौंचक्की रह गई। सारे वृक्ष गायब थे। पक्का फर्श बना दिया गया था कच्ची धरा के स्थान पर।
मिनी को ऐसा लगा मानो एक बार फिर उससे माता- पिता की स्नेहिल छाँव छिन गई हो। उसे पता ही नहीं चला कब उसकी आँखों से अविरल अश्रुधार बह निकली।
फिर उससे उस घर में रुका ना गया।
उसका मायका अब वहाँ कहाँ बचा था?