1-लघुकथा के समर्पित व्यक्तित्व का चले जाना!
रवि प्रभाकर, योगराज प्रभाकर के अनुज, लघुकथा कलश के सह सम्पादक लघुकथा के लिए पूर्णतया समर्पित, लघुकथा-कलश के माध्यम से विश्व भर के लोगों से जुड़ाव, विनम्रता की प्रतिमूर्त्ति, अध्ययनशील , निरन्तर चिन्तनशील , लघुकथा कलश के सौन्दर्य , गुणात्मक विषयवस्तु को सँजोने में अहर्निश कार्यरत , नित्य कुछ न कुछ नया सोचने वाले , सबके प्रिय, 22 मई की शाम को को कोरोना के कारण हम सबसे बिछुड़ गए। लघुकथा-जगत् की इतनी बड़ी क्षति सभी को हतप्रभ कर देने वाली है। कुछ ही दिन लघुकथा कलश का जनवरी-जून–2021 का आलेख विशेषांक-2 मिला था। हर पन्ने पर उनके संयोजन का श्रम कह रहा है कि मैं कहीं नहीं गया, यहीं हूँ सबके बीच । सबकी ओर से विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !!
2-प्रथम शोधार्थी शकुन्तला किरण नहीं रहीं!
सुबह ही सुबह ज्योत्स्ना प्रदीप का सन्देश आया कि लघुकथा की प्रथम शोधार्थी डॉ शकुन्तला किरण नहीं रहीं। मित्तल हाॅस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, पुष्कर रोड, अजमेर में रविवार को करीब 5 बजे हृदयाघात उन्होंने अंतिम सांस ली । यह विभूति भी बिछुड़ गई। स्वभाव से सीधी -सरल । इनके शोध-कार्य से कुछ अन्य लेखकों ने भी लाभ उठाया। शकुन्तला किरण जी शूगर, कैंसर, पेट रोग आदि से पीड़ित थीं। काव्य के क्षेत्र में और राजस्थान की कथाओं को गीतबद्ध करने का बड़ा काम भी किया। लघुकथा -जगत् की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !!!!