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Channel: लघुकथा
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केवल मैं

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वह उसे बरसों के बाद मिला था । हमेशा की तरह आज भी वह अपनी शान बघारने से चूका नहीं था। अगर यही शान उसने न बघारी होती तो आज वह उसकी पत्नी होती। हालांकि उनका बरसों प्रेम चला था फिर भी उसकी इस लत ने उस प्रेम को दाम्पत्य में बदलने से जबरन रोक दिया था।

निर्देश निधि

उसने आर्ट्स में पी-एच . डी . किया था, जबकि वह एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियर बनकर निकला था। वह विज्ञान विषय को ही संसार का सत्य समझता था जैसे मानवीय संवेदना और अन्य भावनाओं का उसके मस्तिष्क में कोई स्थान ही न था । हर बात पर एक ताना था, हाँ तुम करोगी ही इस तरह की तर्कहीन बात; क्योंकि तुमने साइंस तो पढ़ी ही नहीं । आखिर तुम रहीं पढ़- लिखकर भी अनपढ़ ही । प्रेम में साइंस या साहित्य का विचार होता ही कहाँ है, जो वह उसे गंभीरता से लेती । आरंभ में तो वह मज़ाक समझती रही थी । प्रेम के आधिक्य में ध्यान ही नहीं गया कि वह इस कदर बड़बोला है, परंतु धीरे – धीरे सब समझ में आने लगा । पहले पिता से ज़िद कर रही थी वह उसके साथ ही घर बसाने की फिर खुद उसने ही मना कर दिया ।

बरस अपनी बीतने की पुरानी लत लिये न जाने कितनी बार बीते । उन दोनों के रास्ते कहाँ से मुड़कर कहाँ पहुँचे, दोनों में से किसी ने मुड़कर नहीं देखा । वह अपनी शान बघारने के लिए विदेश चला गया था, देश में उसके स्तर का कोई संस्थान था ही नहीं । इस बीच वह भी जानी – मानी लेखक, शिक्षाविद् और भारत सरकार की शिक्षा सलाहकार बन गई थी । इज्जत सम्मान उसके इर्द – गिर्द घूमते थे ।

इस बरस कॉलेज के शताब्दी वर्ष पर सभी पुराने छात्र-छात्राओं को बुलाया गया था वह तो आई ही थी, वह भी विदेश से आया था । इस बार एक – दूसरे से बिलकुल नया परिचय हो रहा था । वह अपनी वही शान बघार रहा था ।वह चुपचाप सुन रही थी, कि विदेश में उसने क्या – क्या असेट बनाए, वह कहाँ – कहाँ पूजा गया किस – किस ने कब – कब उसका लोहा माना । वह यह सब बता रहा था, यही सोचकर कि वह तो अभी भी उसी कुएँ में घूम रही होगी मेंढकी की तरह गोल–गोल या इस दीवार से उस दीवार तक । जो वह सोच रहा था वही शब्दों में कहने के लिए उतावला हुआ जा रहा था । इसी धुन में उसने थोड़ा ज़्यादा ही हिल – डुल कर पूछा था कि और तुम कहो अपनी, किसकी गृहस्थी सँभाल रही हो, किसके बच्चे पाल रही हो ? इस बेहूदे प्रश्न का उत्तर देने का मन नहीं हुआ था उसका । साथ खड़े सहपाठी ने बताया था उसका वर्तमान परिचय । एक पल को वह खिसियाया हुआ चुप ही रह गया था । पर वह तो जैसे चुप रह जाने के लिए बना नहीं था, बहुत शान से बोला था कि, मैं आश्वस्त हुआ कि मैंने किसी साधारण लड़की से प्रेम नहीं किया था…

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