गंगावन अपना काम निबट कर आज कुछ जल्दी घर लौट आया था। उसने स्कूल का बस्ता घर में पड़ा देखा तो उसकी भौंहें चढ़ गई
‘‘पूर्ति, आज सगुना को जल्दी छुट्टी हो गयी क्या?’’ उसने पत्नी से पूछा।
‘‘नहीं…लो पानी पीओ, फिर बतलाती हूं।’’
गंगावन ने पानी पीकर गिलास एक ओर रख दिया और पत्नी की ओर देखकर बोला, ‘‘हां तो…!’’
‘‘आज तीन दिन हो गए, वो स्कूल नहीं जा रहा है…।’’
‘‘क्यों…और तुमने मुझसे छिपाकर रक्खा?’’ गंगावन की क्रोधाग्नि भड़क उठी।
‘‘आप एकदम से मारने -पीटने लगते हैं, इसलिए नहीं बतलाया। …मैं समझा रही हूं, पर वह मान नहीं रहा है। दो दिन घर से बस्ता लेकर गया और दिन भर पार्क में टाइम-पास करके स्कूल छूटने के समय पर लौटता रहा। आज उसके स्कूल से चपरासी ने आकर बतलाया तब पता चला। मैंने पूछा तो कहता है, ‘स्कूल नहीं जाऊंगा, बस।’
इसी बीच बाहर से सगुना आ गया।
‘‘क्यों रे, तू स्कूल क्यों नहीं गया?’’
‘‘हां, नहीं गया।’’
‘‘इधर आ… मैं पूछ रहा हूं, क्यों नहीं गया…।’’ गंगावन सगुना का कान पकड़कर ऐंठने लगा था। पूर्ति कांपने लगी। वह गंगावन के क्रोध से परिचित है।
‘‘पढ़ाई करके भी वही काम करना है जो आप बिना पढ़े करते हैं। फिर स्कूल जाने से क्या फायदा?’’
‘‘क्या मतलब…? तुमसे किसने कहा कि वही काम करना है? क्यों करोगे तुम वही काम? ’’
‘‘टीचर तो मुझसे वही काम करवाते हैं…स्कूल में ….।’’
‘‘क्या कहा, टीचर तुमसे करवाते हैं…?’’ गंगावन का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
‘‘हां, कुछ दिनों से…।’’
‘‘तुमने मुझे बताया क्यों नहीं …। क्या काम करवाते हैं तुमसे …बोलो…बताओ मुझे…मैं तो उनकी ऐसी-तैसी करके रख दूंगा।’’
‘‘एक हफ्ता हो गया…कोई टॉयलेट चोक हो गया कि टीचर मुझसे साफ करवाते हैं…।’’
‘‘आओ मेरे साथ … चलो…स्सालों की चमड़ी न उधेड दी तो मेरा नाम गंगावन नहीं।… मैं अपने बच्चे को स्कूल भेजता हूं, पढ़ने के लिए ताकि वो बड़ा आदमी बनें और वे ‘वो’ काम करवाते हैं…। चलो…।’’
‘‘सुनों… जरा शांति से काम लो…मार-पीट न करना…वो सगुना को स्कूल से निकाल देंगे…।’’ पूर्ति कहती रही पर गंगावन कहां माननेवाला था? वह दनदनाते हुए स्कूल पहुंच गया।
‘‘हेड मास्टर सा’ब , ये मेरा बेटा सगुना… चौथी किलास में है…मैं गरीब आदमी अपनी ऐसी -तैसी करके इसे पढ़ा रहा हूं कि ये पढ़-लिख कर आपकी तरह बड़ा आदमी बनें। और आप इससे स्कूल के टॉयलेट साफ करवाते हैं? शर्म नहीं आती आप लोगों को इससे वो काम करवाते हुए…? मैं अभी पुलिस में जाकर रपट लिखवाता हूं, आप लोगों के खिलाफ…। आप लोगों ने समझ क्या रखा है अपने आप को …। अपने लोगों को लाकर आग लगवा दूंगा स्कूल में…!’’
‘‘आप बैठिये… मैं स्कूल की ओर से माफी मांगता हूं इसके लिए । आप मेरी बात सुनिये…।’’
‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना है…आप उस आदमी को बुलाइए जिसने मेरे बेटे से यह काम करवाया । मैं उसकी तो…।’’
‘‘आप सुनिये तो…। हमारे यहां माहवारी स्वीपर था। पिछले दिनों उसका दुर्घटना में निधन हो गया। तबसे हम लोग स्कूल के लिए किसी रेग्युलर स्वीपर की तलाश कर रहे हैं। अखबार में विज्ञापन भी दिया। पर कोई नहीं मिला। नियमित सफाई न होने के कारण टॉयलेट चोक हो जाते हैं। ऐसे में किसी ने बतलाया कि सगुना उसी समाज का है, जो यह काम करते हैं… ।’’
‘‘तो क्या आप मेरे बेटे से वह काम करवाएंगे? शर्म नहीं आयी आप लोगों को…?’’
‘‘मैंने कहा न, गलती हो गयी…मैं पूरी स्कूल की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूं आपसे …। पर मुझे यह बताओ गंगावन कि यह समस्या सुलझेगी कैसे? किससे करवाया जाये यह काम ? आप ही हमारी मदद करो…कोई हो तो लेकर आओ। हम लोग पहलेवाले को दो हजार रुपया महीना देते थे। वह स्कूल के समय के बाद आकर सफाई कर जाता था। पर अब क्या करें…? कोई उपाय नहीं सूझ रहा है…? तीन हजार तक देने की तैयारी है हमारी…।’’
‘‘मैं लाकर दूंगा स्वीपर स्कूल के लिए पर खबरदार जो आप लोगोंने मेरे बेटे से वह काम करवाया…।’’ कहते हुए गंगावन बाहर आ गया।
दो दिन बाद शनिवार था। दोपहर को स्कूल छूट चुकी थी। गंगावन ने भीतर प्रवेश किया तो मुख्याध्यापक को बड़ी खुशी हुई।
‘‘आओ…आओ गंगावन । क्या किसी स्वीपर को लेकर आये हो?’’
‘‘नहीं …हां …मैं खुद ही सफाई कर दिया करूंगा स्कूल- टेम के बाद। काम करके चाबी चौकीदार के पास छोड़ जाया करूंगा। बस, शर्त यही है कि मेरे बेटे को पता न चले…।’’ ❐
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