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Channel: लघुकथा
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मुस्कुराता आकाश

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“कल ही आपको मॉर्निंग में ये प्रेजेंटेशन देनी है…सब कल तैयार चाहिए…ओके?” वीडियो कॉन्फ्रेंस पर नयन के बॉस ने पूछा तो नयन ने भी तुरंत ही ओके कह दिया।

शाम के साढ़े चार बज रहे थे।

मीटिंग खत्म होते ही नयन ने लैपटॉप बंद किया…. थोड़ी देर रूम में ही टहलते हुए उसने सोचा कि यदि कल ही प्रेजेंटेशन देनी  है तो फिर आज रात काली करनी पड़ेगी।

अरे ये किसका फोन बज रहा है…..”मम्मी…मम्मी… कहाँ हो?” कहाँ गए सब!!…अरे सब तो छत पर हैं….ये मम्मी भी ना फोन यहीं छोड़ जाती हैं….

नयन को हारकर छत की ओर जाना पड़ा…सीढ़ियाँ  चढ़ते हुए ही उसके दिमाग में चार स्लाइड्स का खाका तैयार हो गया था…बस मम्मी को फोन पकड़ाकर जल्दी से जाकर पूरी तरह प्रेजेंटेशन बनाने में लग जाएगा….सोचते विचारते वह छत की आखिरी सीढ़ी लांघकर पहुँच गया छत पर…

छत पर क्या पहुंचा… उसे तो लगा जैसे वह किसी और ही दुनिया में पहुँच गया है….शाम की सुखद लालिमा… मंद- मंद सनसनाती हवा…और ये चहचहाता समां!! उसके भतीजे पकड़म पकड़ाई खेलते हुए कैसे खुशी से शोर मचा रहे थे….मम्मी और अम्मा एक ओर कुर्सी पर बैठी बातें कर रहीं थीं…और पापा  आज फिर हारमोनियम निकालकर उसकी बहन मीठी के साथ रियाज़ कर रहे थे…..

कैसे बचपन में पहुँच गया था नयन …..याद आया मीठी और जिवा भइया के साथ  हर शाम छत पर चोर पुलिस , आई स्पाइस खेलना, मम्मी का यों ही स्वेटर बुनते हुए पापा के साथ हारमोनियम पर गुनगुनाना…और उनका पड़ोस की छतों पर अपने दोस्तों से चिल्ला चिल्लाकर बातें करना ….

कितना बदल गया था छत का नज़ारा…कितने और नए छत उभर आए थे…बड़ी बड़ी इमारतों के बीच में  अपना अस्तित्व बचाते पुराने मोहल्लों के छोटे छत…

नयन स्तब्ध सा खड़ा सबकुछ जैसे अपने अंदर सोख रहा था…उसके रोंगटे खड़े हो गए थे… उसे आभास हुआ पिछले डेढ़ साल से वर्क फ्रॉम होम करते हुए उसका छत पर आज पहली बार आना हुआ और वह भी संयोगवश….

क्यों…. छत पर आखिरी बार कब आया था वह… उसकी तो स्मृति से ही लुप्त हो चुकी थी यह बात…सात साल से बाहर रहते हुए घर  आना हुआ बस त्योहारों पर और वह भी बस हफ्ते दस दिन के लिए …..

” ए नोनू, फोन बजे जा रहा….पकड़ा ना बेटा….किसका है?….दे ही नहीं रहा है…ये लड़का….” मम्मी ने चिल्लाकर उसे पुकारा तब जाकर उसकी तंद्रा भंग हुई ….. उसके हाथ में इतनी देर से बजते हुए फोन की बैटरी भी बहुत कम हो गई थी….उसने हकबका कर मम्मी को फोन पकड़ा दिया और मुंडेर की तरफ जाकर रेलिंग से हाथ टिकाकर खड़ा हो गया।


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