छोटू ने थोक मंडी से सब्ज़ियाँ ख़रीद कर रेहड़ी अपने रोज़ वाले स्थान पर लाकर खड़ी की ही थी कि सामने से वर्दीधारी पुलिस वाला हाथ मेंथैला लिए आता दिखा। वह मन-ही-मन सोचने लगा, आज तो बोहनी भी नहीं हुई और बेगार लेने वाला आ पहुँचा। लेकिन वह कर भी तो कुछ नहीं सकता था।
पुलिसवाले ने आते ही कहा -‘अबे ओए छोरे, थैले में अच्छे-अच्छे दो किलो प्याज़, एक किलो आलू, एक किलो टमाटर, आधा किलो घीया, थोड़ी-सी हरी मिर्चें और थोड़ा- सा धनिया डाल दे।’
अब तो छोटू सोचने लगा, आज की आधी दिहाड़ी तो गई मुफ़्त में।उसने बेमन से सारी सब्ज़ियाँ छाँट-तोलकर थैले में डालकर पुलिसवालेको पकड़ाते हुए कहा – ‘लो सॉब, आपके हुक्म के अनुसार सब्ज़ियाँ छाँटकर डाल दी हैं।’
‘कितने पैसे हुए रे?’
‘सॉब, रहने दो। मुझपे ठंडी नज़र रखना बस।’
‘क्यूँ रे, सब्ज़ियाँ क्या तू मुफ़्त में लाया है जो पैसे लेने से मना कर रहाहै?’
छोटू के लिए यह नई बात थी। उसने सहमते हुए कहा – ‘सब्ज़ियाँ तो पैसे देकर ही लाया हूँ सॉब, लेकिन….!’
‘लेकिन क्या…?’
‘सॉब जी, जिस लहजे में आपने सब्ज़ियाँ थैले में डालने के लिए कहाथा, मैं समझा कि आप मुफ़्त में लेना चाहते हैं।’
पुलिसवाला मन-ही-मन शर्मिंदा हुआ। सोचने लगा, नीयत साफ़ होने केसाथ ज़ुबान भी साफ़ होनी चाहिए।
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