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Channel: लघुकथा
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सहमा हुआ सच

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” मौसम के आसार अच्छे नहीं लग रहे हैं। बहुत ज़ोर से बरसेगा आज।”

काली गहराती रात और काले होते आसमान को देखकर चूल्हे की आग को तेज करती पत्नी  बोली ।ठंड उसके  गर्म फिरन के अंदर आकर मानो जम गई थी।

” हूँ उ उ… पति उस  बासी अख़बार के पन्ने में नजरें गड़ाए बुदबुदाया जिसमें वह बाज़ार से सामान लाया था-

” क्या पढ़ रहे हो जी?” पत्नी ने चाय  हाथ में थमाई।

” लिखा है अगर सारे पत्थरबाज और आतंकवादी हथियार छोड़कर समाज की मुख्य धारा में आएंगे  तो उन्हें माफ़ कर दिया जाएगा। और सेना के एक मेजर पर हिंसक भीड़ पर ज्यादती करने के लिए एफ .आई आर . दर्ज़ होगी।”

” ये तो बड़ी अच्छी बात है जी आख़िर सभी हमारी आज़ादी के लिए ही लड़ रहे हैं। जाने ये सपना कब पूरा होगा?  अच्छा खुरसल से जो रिश्ता आया है बिटिया के लिए ,क्या सोचा उसके बारे में?”

” सोचना क्या ? जितनी जल्दी हो तय कर देनी है। क्यों रे दद्दू ?”

लाड़ से मुँह लगे हट्टे-कट्टे बकरे की पीठ पर हाथ फिराते हुए पति बोला। पास ही बैठे दद्दू ने भी सिर हिलाकर अपनी मौन सहमति दी हो जैसे।

” थप ..थप…थप… की दरवाज़े पर पड़ती थाप से दोनों का कलेजा मुँह में आ गया।गॉंव के बाहर बने घर पर इस वक़्त कौन?

बेसब्री में लिपटी आवाज़ दुबारा आई।

” या अल्लाह सब खैर करे”   पति बुदबुदाया और काँपते हाथों से दरवाज़ा खोलते ही वहीं सर्द हो जम गया। मुँह लपेटे और हाथ में बन्दूक लिए एक ने बेदर्दी से उसे परे धकेला और वे पाँचों बिन बुलाए मेहमान से अंदर घुस आए।

बाहर मूसलाधार बारिश शुरू हो चुकी थी। इसके बाद घर के अंदर का दृश्य बड़ी तेज़ी से घटा। घर का लाड़ला बकरा दद्दू चूल्हे पर चढ़ी देग में और जवान बेटी अंदर कमरे में खदकने लगी ।

छोटे बेटे को छाती से लगाए ,आँसुओं से तर, हाथ जोड़े माँ-बाप की मिमियाती आवाज़ को जलती आँखों से भस्म करता एक बोला-

”  हम तुम्हारी आज़ादी के लिए अपनी ज़ान की बाज़ी लगा रहे हैं और तुम  लोगों से इतना भी नहीं होता कि हमारे सुख का भी कुछ खयाल रखो?”

” क्या बेटी -बेटी लगा रखी है ? क्या अपने धर्म की लगा रखी है? हव्वा की कोई जात नहीं होती मियाँ… ।”

दूसरे की वीभत्स हँसी और माँ -बाप की बेबसी  से बाहर मौसम और अंदर पूरा घर खदकने लगा।


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