कुछ लघुकथाकार होते हैं जिनकी लघुकथाएँ पाठकों के समक्ष आग्रही होकर उपस्थित हुई मिलती हैं। आग्रही इस अर्थ में कि उनकी लघुकथाओं में व्याप्त अन्तर्वस्तु की पड़ताल अन्वेषणात्मक दृष्टि के बिना कर पाना सम्भव नहीं है। प्रत्युत लघुकथाएँ पढ़ने का आनन्द भी इसी प्रयोजन से हासिल होता है कि एक गहन वैचारिक तन्मयता लेकर, बुद्धि पक्ष को सबल बनाते हुए पाठक ऐसी लघुकथाओं में उतरें और स्वयं की आलोचनात्मक दृष्टि के साथ उतरें ताकि वह ऐसी लघुकथाओं में निहित गुप्त और सुप्त विचारों से तादात्म्य स्थापित करते हुए रससिक्त हो सके।
समकालीन लघुकथाकार जसबीर चावला सहज में हाथ आने वाले लघुकथाकार नहीं है? उनकी लघुकथाओं में जिन कथ्यों का समावेशन उभरकर आता हैं उन कथ्यों में तत्कालीन समय की धड़कनें सुनाई देती है अर्थात् जो पाठक अपने समय से भलीभाँति परिचित हैं ऐसे पाठक जसबीर चावला की लघुकथाओं में उन कारकों का शब्द देखा हाल पढ़ सकते हैं मसलन सामाजिक विसंगतियाँ, नैतिक अवमूल्यन, वस्त्ुस्थिति से पलायन, पराभूत होता सत्य, भ्रष्टाचार का अन्धड़, अस्तित्व से खारिज होते लोग, अर्थ खोते विधान, और भी कई ऐसे रूप-कुरूप जो समकालीन जीवन के इर्द-गिर्द मुँह बाये खड़े हुए हैं।
लघुकथाकार जसबीर चावला की लघुकथाओं के साथ मैं मेरा समीक्षकीय व्यवहार स्थापित करने में पहले तो खुद से बहुत सकुचाया कि महज जसबीर की लघुकथाएँ एकाध बार पढ़ लेने भर से क्या मेरा उनकी लघुकथाओं पर ईमानदारी के साथ समीक्षा लिखने का मन्तव्य पूर्ण हो सकेगा? हरगिज नहीं, यह जवाब मुझको खुद से मिला। लिहाजा जसबीर की जिन-जिन लघुकथाओं पर मैं समीक्षकीय टिप्पणी देना चाहता था, उनको मैंनं पुरजोर तरीके से बार-बार पढ़ा और इसलिए भी पढ़ा कि जब मैं जसबीर की लघुकथाओं के पाठकों से उनकी लघुकथाओं का निकष समझने में उन लघुकथाओं को बार-बार पढ़ने की बात करता हूँ, तो फिर अपना आलोचकीय धर्म निभाने में मुझको भी इसी राह से गुजराना चाहिए….., गुजरा भी हूँ।
लघुकथाकार जसबीर चावला का हाल ही में प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘मेरी चुनिन्दा लघुकथाएँ’ सामने आया है जिसे उन्होंने उनके उन समस्त लघुकथा पाठकों को इस आशय से समर्पित किया है कि जो उनकी लघुकथाओं को पसन्द करते रहे हैं। यानी जसबीर की लघुकथाओं के समस्त पाठकों ने ही जसबीर चावला को अग्रिम पंक्ति का लघुकथाकार बनाने में पाठकीय धर्म का निर्वहन किया है। लेखक और पाठक का यही पारस्परिक आदान प्रदान का अप्रतिम रिश्ता है।
जिस प्रकार मानव शरीर की शिराओं में बहने वाला रक्त पहचान का वैविध्य नहीं रखता है वैसे ही लघुकथाकार की दृष्टि में उसकी सभी लघुकथा एक जैसी महत्व की है। ताहम भी मुझको सर्वप्रथम जसबीर की लघुकथा ‘अपने पैर’ ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। यह लघुकथा ‘भिखारिन’ की वंश परम्परा को जिलाने वाली अति सम्वेदनशील लघुकथा है जो इस पक्ष को लेकर चित्रित होती है कि पहले माँ अपनी उपस्थिति में अपनी बेटी को भीख माँगने का प्रशिक्षण देती है और एक दिन बेटी को इसा दिशा में आत्मनिर्भर होने के अर्थ में उसके पैरों पर उसे खड़ा कर देती है। संग्रह की लघुकथा ‘नंगा राज’ समाज में व्याप्त घूस, गबन, बलात्कार, कमीशनखोरी जैसे अपराधेां के उन्मूलन में लोक कोप को आधार बनाकर सामने आई है जिसमें एक बालक भ्रष्ट शासक के अनीतिपूर्ण नेतृत्व पर लोक कोप की भावना से प्रहार करता है। जिससे प्रताड़ित होकर नेतृत्व समाज का कुत्सित चेहरा बदलने में समर्थ सिद्ध होता है। लघुकथा ‘औजार’ चौराहे की लालबत्ती के अचानक जल उठने के कारण कारों के रूके काफिले से घिरी सुंदर नाक-नक्श वाली भिखारिन लड़की, लालबत्ती से हरी बत्ती हो जाने के उन्हीं चन्द घड़ियों में कारों से कार तक हाथ फैलाकर कार-मालिकों से भीख चाहती है? प्रश्नों की गर्दनें उठती हैं? कौन है इस भिखारिन लड़की के माता-पिता….. लेकिन पानी के बुलबुले-सा आखिर यह प्रश्न कितनी देर का? बत्ती हटी कि काफिला बढ़ा? इसी सोच से आहत होकर एक कोई उस लड़की के हाथ में दो रूपया का सिक्का थमा देता है। यही सिक्का उस लड़की के लिए भीख माँगने का औजार बन जाता हे, जिससे वह भीख की याचना में कारों की खिड़कियों पर चढे़ शीशे को ठोंक-ठोंक कर दानदाताओं की चेतना जगाने का उपक्रम रचा करेगी? लघुकथा ‘फकीर’ सिर्फ दुआओं के बुते दान माँगने की कला से आगे बढ़ कर चेतना शक्ति के आधार से भी दान पाने का योजनाबद्ध क्रम सामने लाती है। लालच देकर दान के अर्थ में दाता से अधिक रकम पाने का उपक्रम एक चतुर फकीर को आता है, इसी मन्तव्य का सारत्व लघुकथा का कद बढ़ाता हुआ मिलता है।
पौराणिक कथा-सन्दर्भों का सहारा लेकर उससे आधुनिक समय के हिंसाग्रसित वातावरण का उल्लेख लघुकथा में बड़ी विलक्षणता के साथ चरितार्थ करना मानो जसबीर की लघुकथाओं का महत्वपूर्ण शगल है। उनकी लघुकथा ‘वरदान’ की कथावस्तु हथियारों की दौड़ में शामिल मानवीय भेष में जी रहे हिंसक दानवों के क्रूर-कर्कश रूप को उजागर करती है। आज हर कोई हिंसक हथियारों की खरीद-फरोख्त में शामिल होकर विजयी जंग लड़ने में आमादा प्रतीत हो रहा है। आज हर कोई क्रूर काल के हाथों से वरदान चाहने में संलग्न है कि वह जिसका स्पर्श करे वह हथियार में बदल जाये, ए.के. 47, ग्रेनेड, डायनामाइट जैसे घातक हथियार जो दूर से दूर मार करने में सफल हो। यानी कि बीवी को स्पर्श करे तो वह तोप में बदल जाए, बेटी को छुए तो वह मिराज में बदल जाए आदि-आदि। लघुकथा ‘‘सौदा’’ के अन्तर्गत जनतान्त्रिक प्रणाली में पक्ष में भारी मतों को जोड़ने का लोक-लुभावन उपक्रम रचा गया है, जनहित में कार्य की चाशनी घोली जाती है परन्तु परिणाम के बाद कैसे चाशनी को सूखी रेत में परिवर्तित कर दिया जाता है यही लघुकथा ‘सौदा’ का कथ्य हे यानी कि ठगाकर ठाकुर होने जैसी बात।
लघुकथा ‘मेहनत का बिजनेस’ कार्य के मूल्यांकन पर सवार हुई ऐसी लघुकथा है जो रेल की बोगियों में सफाई करने वाले मजबूर/मजदूर बालक के पेट के सवाल को पार्श्व में रखकर घटित हुई हैं वह दिन लद गए जब सफाई करने वाला पूरे कम्पार्टमैण्ट की सफाई करने के बाद किए काम की एवज में पैसा चाहने में हाथ फैलाता था अब तो वह उसी हिस्से में उतनी ही सफाई करता है जितना जहाँ के उसे मेहताना मिल सके। बरक्स इसके कम्पार्टमेण्ट में दान पाने की इच्छा से कीर्तन वाला बराबर एक जगह खड़े होकर गा रहा है, आगे नहीं बढ़ रहा है, उसे पैसे मिले तो वह आगे बढ़े। भावना का अवमूल्यन ओर कार्य का मूल्यांकन इन दोनों सन्दर्भों के मध्य पोषित होती लघुकथा विचार और अनुभूति के अर्थ को विकसित करती है।
लघुकथाकार जसबीर चाबला एक बड़े अध्येता वर्ग से भी आया हुआ नाम है, जो लघुकथा जगत को प्राप्त हुआ है। लघुकथा के सात संग्रह के प्रणेता जसबीर की लघुकथाओं में भगवासन बुद्ध का महायान, संत कबीर का गुरूयान और सरहपा के सहजयान का मधुमय रूप संचित हुआ मिलता है। यही कारण है कि जसबीर की लघुकथाओं में समष्टिगत और व्यक्तिगत जीवन को उदारमान से जीने के सोपान देखने को मिलते है। जातक कथाओं में प्रबंध शास्त्रीय तत्व पर शोधोपाधि प्राप्त जसबीर के पास कल्पनाप्रसूत घनात्मक भाषा नहीं है प्रत्युत वस्तुजन्य यथार्थ से आलोड़ित गुणात्मक भाषा है जिससे उनकी लघुकथाएँ प्राण-पण से जीवित और जीवंत हो उठीं है।
–0-पुस्तक – मेरी चुनिन्दा लघुकथाएँ,लेखक – जसबीर चावला,प्रकाशक – दिशा प्रकाशन, दिल्ली, मूल्य – 300/-
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