सुबह का समय था. डाइनिंग टेबल पर बैठकर बेटा सुबह का नाश्ता कर रहा था। उसने दो पराठे खाने के बाद ही अपने हाथ उठा लिये थे। माँ उससे एक और पराठा लेने के लिए जिद कर रही थी। मगर बेटा लेने के लिए कतई तैयार नहीं हो रहा था।
मां ने समझाया, ‘‘बेटा, तेरी उम्र बढ़ रही है। तुझे अब कम-से-कम तीन पराठे नाश्ते में लेने चाहिए। इससे तेरी शरीर में ताकत आएगी।‘‘
मगर माँ के इतना समझाने के बावजूद बेटा और पराठे लेने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हो रहा था। वही नीचे फर्श पर बैठकर कामवाली की छोटी बेटी रात की दो बासी रोटियाँ खाने के बाद अतिरिक्त रोटी के लिए उम्मीद भरी निगाहों से मालकिन की तरफ देख रही थी। मालकिन ने उसकी आँखों की भाषा पढ़ ली और उस पर झल्ला उठी, ‘‘तेरा कितना बड़ा पेट है ? दो रोटियों से नहीं भरता क्या ? और बासी रोटियाँ नहीं है। अब तू उठ जा..!‘‘
बेटा यह सब देख रहा था। उसके मन में कामवाली की बेटी के प्रति दया और सहानुभूति उमड़ रही थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कामवाली की बेटी की मदद कैसे करे।
तभी बेटे ने मां से कहा, ‘‘माँ, तीसरा पराठा डाल दे। मगर तुझे स्टोर रूम से गुड़ की डली लानी पड़ेगी। मैं यह पराठा गुड़ के साथ ही खाऊंगा।‘‘
माँ स्टोर रूम में गुड लाने चली गई। तभी बेटे ने अपने थाली का तीसरा पराठा उठाकर कामवाली की बेटी की थाली में डाल दिया। उसने कहा, ‘‘इससे पहले कि माँ आ जाए, तू जल्दी से इसे खा ले.‘‘
कामवाली की बेटी वह पराठा धड़ाधड़ जीम गई।
तभी माँ गुड़ की डली लेकर आ गई। बेटे की थाली में पराठा ना देखने उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, ‘‘क्या तुमने पराठा बिना गुड़ के खा लिया..? क्या तुझे मीठे की जरूरत नहीं थी…?‘‘
बेटे ने बड़े इत्मीनान होकर कहा, ‘‘माँ, मेरा मन ऐसे ही बहुत मीठा हो गया है। अब मुझे गुड़ की जरूरत नहीं है।‘’
माँ आश्चर्य से अपने बेटे को देखने लगी। उधर बेटा और कामवाली की बेटी दोनों मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।
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