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लघुकथाएँ

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1. लुटेरे

इतिहास के दो छात्र भारत पर हुए आक्रमण एवं लुटेरों के विषय पर अत्यंत हीं तार्किक ढ़ंग से बात कर रहे थे-“अति प्राचीन काल से अनेक आक्रमणकारी यहाँ आए। कुछ भारत विजय की इच्छा लेकर आए तो कुछ लूट-पाट की नीयत से। अनेक बहादुरी की डींग मारते आए और रोते-पीटते वापस गए। भारत की वैभव की कहानियाँ उन्हें भारत आने के लिए आकर्षित करती रहीं। शक, हूण, मंगोल तो यहीं रच-बस गए।” – पहले छात्र ने बात को प्रारंभ किया।
“किन्तु भारत पर सबसे पहला आक्रमण कोई पुरुष न होकर महिला थी – मिस्र की महारानी सैरेमिस।” – दूसरे छात्र ने प्रथम आक्रमणकारी का खुलासा करते कहा।
“उसके बाद नाम आता है – यूनान के बच्छूस एवं डायनोसियस का। यूनान के बाद इरान के डेरियस प्रथम।” पहले छात्र ने आक्रमणकारियों का क्रम देते हुए कहा – इसके बाद आते हैं – कासिम, गजनवी, गोरी, चंगेज खां, कुतबद्दीन, तैमूर लंग, सिकंदर लोदी, इब्राहीम लोदी, बाबर, अंग्रेज……. रुक क्यों गए? ये लोग बाहर से आए और भारत की धन सम्पदा को लूटकर अपने देश ले गए; किन्तु आज अपना देश विपरीत परिस्थिति के लुटेरों को झेल रहा है। ये लोग यहीं के हैं और यहाँ के धन सम्पति को लूटकर बाहर के देशों में जमा करते हैं। जानते हो ये लुटेरे कौन हैं?”
“बड़ा हीं विषम सवाल खड़ा कर दिया भाई। इस पर तो हमारी संसद भी मौन है।”
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2-लंच बाक्स
बिट्टू के पिताजी के विद्यालय जाने के समय हीं किसी कार्यवश उनकी पड़ोसन आ गई।
“आज बिट्टू के पापा अवकाश पर हैं क्या? “- पड़ोसन ने बिट्टू की माँ से सवाल किया।
” नहीं तो। विद्यालय जाने के लिए हीं निकले हैं।”-बिट्टू की माता ने कहा।
“आज खाली हाथ जा रहे हैं? लंच बाक्स नहीं लिए हैं? “- पड़ोसन ने एक साथ दो सवाल दाग दिये।
“जब से विद्यालय में सरकार ने छात्रों के लिए दोपहर में भोजन की शुरूआत की है ,उन्होंने लंच बाक्स ले जाना बंद कर दिया है।” – पड़ोसन को आश्वस्त करती बिट्टू की माँ ने कहा।
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3-सुहाग की निशानी

””माँ! मैं बैंक की परीक्षा में पास हो गई हूं।”” ””बहुत खुशी की बात है बेटे! तुम्हारी पढ़ाई पर किया गया खर्च सार्थक हो गया। गांव में कॉलेज रहने का यही तो लाभ है। लड़कियाँ बी०ए० तक पढ़ जाती हैं – मां खुशी का इजहार करती हुई बोली।
”” इंटरव्यू लगभग तीन माह बाद होगा। बैंक की शर्त के अनुसार कम्प्यूटर कोर्स करना आवश्यक है।””
””तो कर लो।””
””शहर जाकर करना होगा उसमें पांच हजार के करीब खर्च है”” – उदास होती हुई बेटी बोली।
””कोई बात नहीं”” – मां अपने चेहरे पर आई चिंता की रेखाओं को हटाती हुईं बोली – ””मैं व्यवस्था कर दूँगी।””
””कैसे करोगी मां?”” – बेटी विधवा माँ की विवशता को समझती थी। ””अभी मंगलसूत्र है न? किस दिन काम आएगा उसको बेचकर…””
””नहीं माँ! वह तो तुम्हारे सुहाग यानी पिताजी की निशानी है तुम उसे हमारे लिए..””
””तुम भी तो उसी सुहाग की निशानी हो, उसी पिता की निशानी हो। इस सजीव निशानी को बनाने के लिए उस निर्जीव निशानी को गँवाना भी पड़े तो कोई गम नहीं”” – कहती हुई मां के कदम आलमारी में रखे मंगलसूत्र की ओर बढ़ गए।
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4-बदलता ज़माना
वर्णवाल दम्पती को पहले से पुत्र था। दूसरी संतान पुत्री हुई। पति-पत्नी दूसरी संतान के रूप में पुत्री को पाकर खुश थे। वे पुत्र-पुत्री में कोई अन्तर नहीं मानते थे। पुत्र के जन्म पर उनके दरवाजे पर किन्नर आकर सोहर गा गये थे।
“पुत्री होने के कारण इस बार किन्नर आकर तंग नहीं करेंगे।” – पति ने कहा।
“अरे मंगलमुखी! बगल में तो आएँगे हीं। बत्तरा जी के यहाँ पुत्र हुआ है। कहीं किसी ने यहाँ के लिए इशारा कर दिया तो? ”
” उनका भी उसूल है कि पुत्री के जन्म लेने पर नहीं आते हैं।” तभी किसी ने दरवाजे पर जोर-जोर से दस्तक दी।
“आप बैठिए, मैं देखती हूँ।” – कहकर पत्नी दरवाजे की ओर बढ़ गई। दरवाजा खुलते हीं किन्नर नज़र आए।
“यहाँ क्यों? बत्तरा जी का घर बगल में है उनके यहाँ लड़का हुआ है।”
“वहाँ तो जाएँगे हीं, आपके यहाँ भी तो पुत्री – रत्न आई है।” – एक किन्नर ने कहा।
“पुत्री रत्न पर आप लोगों की क्या जरूरत है? ”
” अब समय बदल गया है। पुत्र और पुत्री में कोई अन्तर नहीं रह गया है। हमलोग केवल लड़कों वालों पर हीं आश्रित क्यों रहें। अब हम लड़कियों की शान में नाचते-गाते हैं।”-दूसरे किन्नर ने कहा।
किन्नर का उत्तर सुन वर्णवाल दम्पती चुप हो गये और किन्नरों ने गीत गाना शुरू कर दिया।
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5-रिटायरमेन्ट

सीमा के रिटायर पति पैसठ के हो गये हैं। सीमा भी साठ की हो गई है। उनकी बेटी और दोनों बेटे अपने-अपने पति पत्नी के साथ ठीक से जीवन निर्वहन कर रहे हैं। पति देव रिटायरमेन्ट के बाद प्रातः टहलने जाते हैं। उनके रिटायरमेन्ट के बाद सीमा का काम और बढ़ गया है। पतिदेव चाय की चुस्कियों के साथ अखबार का आनन्द टेलीविजन के साथ लेते हैं। इत्मीनान से स्नान और उसके बाद नास्ता। घर में किसी ना किसी का आना जाना और उनके लिए चाय बिस्कुट के साथ आवाभगत करना।
एक दिन पतिदेव के टहलकर आते हीं टेबुल पर चाय रखते सीमा ने कहा-
“एक बात पूछूँ!”
“हाँ पूछो!”- चाय और अखबार दोनों के अपने निकट लाते पतिदेव ने कहा।
“मैं भी अब साठ की हो गई। आप साठ के हुए थे तो आपको अपने काम से मुक्ति मिल गई थी। मुझे अपने काम से कब मुक्ति मिलेगी?”
“कौन से काम?”-पतिदेव अप्रत्याशित सवाल पर चौंक गये।
“यही घरेलू काम भोजन बनाना आदि।”
“ओह! मैंनें तो सोचा हीं नहीं था। ऐसा करते हैं भोजन बनाने के लिए एक आया रख ली जाए ; लेकिन इसके बाद पेंशन की माँग नहीं रखियेगा।”-पतिदेव ने समस्या का समाधान निकालते हुए कहा।
“किन्तु; इस उम्र में आया का बनाया हुआ भोजन? कैसा लगेगा? मुझे नहीं चाहिए रिटायरमेन्ट।” – सीमा पुनः अपनी ड्यूटी ज्वायन करते हुए बोली।
-0-सम्पर्क : डी०के० धर्मशाला मार्ग, बंगाली टोला, बक्सर(बिहार) 802101
atulmohanprasad@gmail.com


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