

हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन, सिरसा द्वारा संचालित हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच की ओर से दिनांक 30.10.2022 को स्थानीय श्री युवक साहित्य सदन में लोकार्पण, सम्मान, लघुकथा विमर्श तथा लघुकथा पाठ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों यथा मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब दिल्ली व हरियाणा के विभिन्न जिलों से लघुकथाकार, आलोचक व समीक्षक उपस्थित हुए। चार सत्रों में विभाजित इस कार्यक्रम में बाहर से पधारे सभी लघुकथाकार अध्यक्ष मंडल में सम्मिलित हुए।
इस संस्था के सरंक्षक एवं मुख्य संयोजक प्रो. रूप देवगुण ने आए हुए अतिथियों का स्वागत किया। लघुकथा मंच की संयोजक डॉ. शील कौशिक ने वर्ष 2020, 2021 व 2022 की लघुकथा मंचों की गतिविधियों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
इस कार्यक्रम में प्रो. रूप देवगुण की मेरी पचास लघुकथा नाटिकाएँ तथा लघुकथा के तत्व तथा अन्य प्रश्न, डॉ. शील कौशिक की ‘डॉ. रामनिवास मानव की लघुकथाओं का अंतर्पाठ’, ‘हिंदी लघुकथा विश्लेषण में खुलते विविध आयाम’ तथा ‘अनिल शूर ‘आज़ाद’ की लघुकथाओं का विवेचनात्मक अध्ययन’, डॉ. रामकुमार घोटड़ की ‘मेरी बीसवीं सदी की लघुकथाएं’, डॉ. मेजर शक्तिराज की ‘साँझ का दर्द’, सविता स्याल की ‘ताश का घर’, ज्ञान प्रकाश पीयूष की ‘स्वावलम्बन के गुलाब’, जगदीशराय कुलरियां की अनुवादित पुस्तक ‘रूप देवगुण दीआं चोणवीआं मिन्नी कहाणीआं’ , दिव्या शर्मा की ‘कैलेंडर पर लटकी तारीखें’ , अंजली सिफ़र की ‘Hello ज़िंदगी’ , सुभाष सलूजा की ‘आवाज तो दी होती’, स्नेह गोस्वामी की ‘कथा चलती रहे’ तथा उर्मि कृष्ण व विजयकुमार द्वारा संपादित ‘शुभ तारिका’ के अक्टूबर अंक का लोकार्पण हुआ।
इस अवसर पर अंबाला से प्रकाशित ‘शुभतारिका’ पत्रिका का भी लोकार्पण हुआ।
लघुकथा विमर्श के अंतर्गत डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने ‘लघुकथा सृजन में आयाम की खोज और भाषिक सर्जनात्मकता’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि लघुकथाकार, संपादक समीक्षक को अन्वेषी होकर लघुकथा के विभिन्न आयामों की खोज करनी होगी। जिस समाज में लेखक सांस ले रहा है, उस समाज की नब्ज़ को पकड़ना होगा अन्वेषी लघुकथाकार ही समीक्षक को जन्म देता है और चुनौती देता है। आयाम की तलाश करना लेखक की जिम्मेदारी है। उसे यह साहस पैदा करना होगा कि वह अन्वेषी होकर आयामों की तलाश करें, तभी वह लघुकथा को नया स्वरूप दे पाएंगे। भाषा की सृजनात्मकता के विषय में उन्होंने कहा कि विषय और परिवेश के साथ भाषा आती है। अपने परिवेश की लुप्त, गुप्त और सुप्त बातों को सामने लाना होगा ताकि वो इतिहास बन सकें।
इस कार्यक्रम में संतोष सुपेकर, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, डॉ. रामनिवास मानव, अनिल शूर ‘आज़ाद’, डॉ. सत्यवीर ‘मानव’ तथा योगराज प्रभाकर को ‘स्मृति लघुकथा सम्मान’ प्रदान किए गए व डॉ. नैबसिंह मंडेर को ‘लघुकथा समीक्षक’ व जगदीशराय कुलरियाँ को ‘लघुकथा अनुवादक’ सम्मान से नवाजा गया। कार्यक्रम में डॉ. मेजर शक्तिराज, ज्ञानप्रकाश ‘पीयूष’, जनकराज शर्मा, अर्चना कोचर, आशमा कौल, वसुधा गाडगिल, सुभाष सलूजा, सविता स्याल, अंतरा करवड़े, सविता मिश्रा ‘अक्षजा’, विजय कुमार, दिव्या शर्मा, अंजलि सिफ़र को ‘लघुकथा सेवी सम्मान’ प्रदान किए गए।
इस कार्यक्रम में 30 लघुकथाकारों ने अपनी एक-एक लघुकथा का पाठ किया, जिनकी समीक्षा डॉ. नैब सिंह मंडेर तथा योगराज प्रभाकर ने की। योगराज प्रभाकर ने कहां कि लघुकथा के विकास हेतु प्रयोग करने का रिस्क लेना पड़ेगा और कल्पना को लघुकथा में स्थान देना पड़ेगा। किंतु लघुकथा की स्वाभाविकता व विश्वसनीयता नहीं खोनी चाहिए।
डॉ. नैबसिंह मंडेर ने समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा कि रचना समाज के अंदर के घटित होने वाली घटना तो होती है परंतु उसे ऐसे ही प्रस्तुत करना लघुकथा नहीं है। उसमें कलात्मक पक्ष, भाषा शैली व रचना के उद्देश्य होना चाहिए। लघुकथा में एक शब्द भी फालतू होना रचना को भारी बनाता है। शीर्षक लघुकथा के केंद्र के अंदर बैठा होना चाहिए। लघुकथाओं में समाज के बारे चिंतन बोध होना चाहिए।
सफल मंच संचालन लघुकथा मंच की संयोजक डॉ. शील कौशिक, सह संयोजक हरीश सेठी ‘झिलमिल’ तथा उप संयोजक डॉ. आरती बांसल ने संयुक्त रूप से किया। अंत में डॉ. शील कौशिक ने दूर-दराज से पधारे हुए अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
संयोजक
डॉ. शील कौशिक
हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच, सिरसाSHEEL KAUSHIK <sheelshakti80@gmail.com>