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Channel: लघुकथा
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मेंढक

(अनुवाद :सुकेश साहनी) गर्मी के दिन थे। एक मेंढ़क ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘जब हम रात में गाते हैं तो उस किनारे मकान में रहने वालों को जरूर तकलीफ होती होगी।’’ मेंढ़की ने कहा, ‘‘इससे क्या? वे लोग भी तो...

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भावनाओं, वैज्ञानिकता, संदेशों और व्यंग्य से परिपूर्ण लघुकथाएँ

जो मुकम्मल हो जाए वही प्यार है, नहीं तो सब कोशिशें भर हैं। ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है लघुकथा के बारे में। मैंने जब पहली लघुकथा लिखी और जो उस समय नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुई थी, तब मुझे पता भी नहीं...

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अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का सिरसा (हरियाणा) में हुआ आयोजन

हरियाणा प्रादेशिक हिंदी साहित्य सम्मेलन, सिरसा द्वारा संचालित हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच की ओर से दिनांक 30.10.2022 को स्थानीय श्री युवक साहित्य सदन में लोकार्पण, सम्मान, लघुकथा विमर्श तथा लघुकथा...

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लघुकथाएँ

1-चिंता क्या करें, क्या न करें की उधेड़बुन  में उलझा हुआ वह लड़का आखिरकार दुकान तक पहुँच  ही गया और साहूकार के सामने सीना तानकर खड़ा हो गया। साहूकार इस वक्त भी ग्राहकों को जल्दी-जल्दी सामान देने और पैसे...

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मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी की पत्रिका ‘साक्षात्कार’ का लघुकथा विशेषांक

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पंजाबी अनुवाद

श्री सुकेश साहनी व डॉ. अशोक भाटिया हिंदी-लघुकथा के दो अत्यंत महत्त्वपूर्ण व अग्रिम पंक्ति के हस्ताक्षर हैं। ये दोनों मेरे पसंदीदा लघुकथाकार हैं। मैंने इन दोनों से बहुत कुछ सीखा है। उनकी लघुकथाओंने...

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गुरु- कृपा –भवन

     मुख्य द्वार की घंटी बजी। ‘‘देखो कौन है?’’ साहब ने नौकर को आदेशित किया। नौकर गेट की ओर दौड़ा।-‘‘आइए! आइए!…. आप की ही चर्चा, साहब जी, कर रहे थे।’’- गेट खोलते हुए नौकर ने, उससे कहा। वह दबे-दबे पैरों...

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ईर्ष्या

प्रोफेसर शरदकान्त रिटायरमेन्ट के बाद शहर की एक पॉश कॉलोनी में मकान बनाकर रहने लगे थे। कालोनी में सभी सम्पन्न लोग रहते थे। कोई डॉक्टर था तो कोई इंजीनियर, कोई ठेकेदार था तो कोई व्यवसायी। सबके घरों में...

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गोर्वधन

“दादा! इस बार फसल के लिए डर लग रहा है।” सुखिया ने अपनी चिंता गाँव के प्रधान के सामने रखी।हर बार की बाढ़ आधी फसल को निगल जाती और पीछे रह जाती किसान की मेहनत रोते बिलखते। “कोशिश तो कर रहा हूँ बाँध के...

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पुराने ख़्याल

बबलू ने दादी से पूछा, “दादी, इस कदर मुँह लटकाकर क्यों बैठी हो..? सभीरिश्तेदार आये थे तब तो तुम बहुत खुश थी.”दादी ने समझाया, “बेटा, जब रिश्तेदार आते हैं तो ख़ुशी बहुत होती है. मगर उनकेजाने पर दुःख भी...

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कमी

‘‘……अच्छा! रमा की माँ अब चलती हूँ। बच्चों के आने का वक्त हो गया है।’’ राधा की माँ ने सोफे से उठते हुए कहा था। ‘‘बैठी रह ना बहन। मेरा मन लगा रहेगा। वैसे भी तुझे घर पर कौन-सा काम करना है।’’-रमा की माँ...

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Awakening

MADHUDEEP Translated from the Original Hindi by Kanwar Dinesh Singh The  evening  fog  had  turned  into  the  stillness  of  night.  There  was  darkness  in every street, every intersection of the...

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The Network

MAHESH SHARMA Translated from the Original Hindi by Kanwar Dinesh Singh There  were  neither  many  likes  nor  comments  on  the  social  network  for  quite  a few days. Every post was falling face...

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दोपहरखिली

दोपहरखिली लघुकथा को सुनने के लिए निम्नलिखित लिंक को क्लिक कीजिए- दोपहरखिली

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कलाकृति

गढ़वाली अनुवादः  डॉ. कविता भट्ट रेलवे स्टेशन क विश्रामघर क भैर बण्याँ चबूतरा माँ वु नी दिखे, त वु डरि गे। अबि ब्याळि त त वु इक्खि छौ! पिछला कै मैंनों बिटि वु ये दरवेश भिकारी तैं दिखणू छौ। वु पैली...

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विष/ বিষ

बांग्ला अनुवाद्ः बेबी सिंह कोरफारमा সইদের তো নিজের রিকশা ছিল না যে সারাদিনের মজুরী নিজের ঘরে রেখে দেবে! ঠিকাদার জাফর খানকে রোজ ভাড়া দিতে হয়। সারাদিন ছোট বাচ্চাটার জ্বর। ওষুধ নিতে হবে। সইদ আজকের রোজগার...

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जुग सांग्निक ( बांग्ला) के पूजा विशेषांक में अनूदित लघुकथाएँ

जुग सांग्निक ( बांग्ला) के पूजा विशेषांक में रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ , सुकेश साहनी और कमला निखुर्पा की लघुकथाएँ प्रकाशित हुई हैं, जिनका अनुवाद बेबी सिंह कारफारमा ने किया है।

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समानता का अधिकार

छब्बीस जनवरी आई तो मालती काम से आते समय शाम को नैना के लिए एक झंडा लेती आई। कपड़े उसने पहले से ही साफ कर दिये थे। सुबह उसे जगाना नहीं पड़ा। बल्कि हुआ यूँ कि नैना ने ही उसे जगाया। बात यह था कि मैडम ने...

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पीली चिड़िया

खिड़की से आती संघ्या की अंतिम किरण प्रभा को उदास कर रही थी। उसने कविता की किताब उठाकर अपनी पसंदीदा कविता ‘आज की स्त्री’ पढ़नी चाही। “स्त्री कूटती आई है/ ख़ुशी के धान /अँधेरे की ओखली में…!” एक पंक्ति...

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লাঠি / लाठी-অর্চনা রায়/

ভাষান্তর: বেবী কারফরমা/ ( अनुवाद: बेबी कारफरमा) अर्चना राय “শুনছ, আজকে ছেলে বউকে বলছিল শহরে যে নতুন বাড়িটা তৈরি হচ্ছে সেটাতে ওরা খুব শীঘ্রই চলে যাবে।” “কি আর করা যাবে?” একটা দীর্ঘশ্বাস ফেলে বৃদ্ধ...

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