मान सरोवर से चला एक हंस, मृत्युलोक में एक डेरी की चाहरदीवारी पर आ बैठा। पास बैठा एक कौआ, अपनी जाति-बिरादरी के गौरव, हंस को देख खुशी से फूला ना समाया। चहकता, खिलता बोला, ’’दादा, धन्य भाग्य हमारे, जो आप यहाँ पधारे।’’
हंस ने कौए के रंग और वाणी से नाक-भौंह सिकोडते हुए कहा, ‘‘ठीक है, ठीक है, काम की बात करो।’’ इस उपेक्षापूर्ण व्यवहार से कौए पर मानो, मनों घड़े पानी पड़ गया। परन्तु संभलता हुआ बोला, ‘‘दादा, समस्या यह है कि परसों आपकी भतीजी का विवाह है। बारातियों के स्वागत हेतु एक कैन दूध खरीदने आया था। आपके पास तो नीर-क्षीर विवेक है। बताइये तो, इस कैन में कितना दूध कितना पानी है।
हंस मुस्कुराया, नेत्र बंद कर मंत्र पढ़ा और दूध का दूध, पानी का पानी हो गया। कौए ने व्यंग्य भरी मुस्कुराहट से पूछा, ‘‘दादा, क्या बचा हुआ दूध, शुद्ध है, खालिस है। हंस आत्मविश्वास से मुस्कुराया, ‘‘हाँ…. हाँ बचा दूध सर्वथा शुद्ध है।’’
कौए की मुस्कुराहट गहरी हो गयी, ‘‘दादा आप हैं, सतयुगी हंस, और मैं कलियुगी कौआ। इस दूध में है, यूरिया, डिटरजेन्ट, सोड़ा, अरारोट और थोड़ा रिफाइन्ड आॅयल। यह है मानव निर्मित दूध।’’
हंस खिसिया कर इधर-उधर देखा, मुस्कुराया और वापस मान सरोवर लौट गया। कौआ पुकारता रह गया, ‘‘अरे दादा, परसों तक रूककर भतीजी को आर्शीवाद तो देते जाते।’’
-0-3/29 सी, लक्ष्मीबाई मार्ग, रामघाट रोड़, अलीगढ़