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Channel: लघुकथा
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दुम

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दस हजार जेब में डालते ही गिरवर को ठर्रे की दो बोतलों का नशा चढ़ गया। दस हजार सिर्फ़ एडवांस के थे। हड़ताल न हुई तो बीस हजार और मिलेंगे। वाह रे गिरवर! शहर आकर तू सचमुच समझदार हो गया है। वह स्वयं पर खुश हो रहा था। न हींग लगी थी न फिटकरी।
वह क्या करेगा, बस बस्ती जाकर वासदेव,शिवपूजन,रामजी और रक्खाराम को बुलाएगा। व्हिस्की की चार बोतलें मेज पसर रख देगा। चार मुर्गे रख देगा। बोतलों को देखकर ही चारों को नशा हो जाएगा। साले ठर्रे के लिए तरसते हैं। व्हिस्की अन्दर जाते ही कुत्तों की तरहदुम हिलाने लगेंगे। हजार रुपया भी उन पर खर्च दूँगा तो भी नौ हजार बच जाएँगे। और ज्यादा चूँ–चपड़ करेंगे तो बाकी के बीस हजार मिलेंगे उनमें से दो–दो हजार इनके मत्थे और मार दूँगा। तब भी कुल मिलाकर बीस–बाइस हजार तो बच ही जाएँगे।
उसने चारों के पास खबर भेजी। मेज पर प्लेट में मुर्गे सजा दिए। व्हिस्की की बोतलें और गिलास सजा दिए। वह उनके आने की प्रतीक्षा करने लगा।
‘‘जा! से जा! उनमें से कोई नहीं आएगा। पूरी बस्ती को खबर हो गई है कि मालिक ने मुझे खरीद लिया है। हड़ताल तुड़वाने के लिए पूरे दस हजार दिए हैं। तू क्या समझता है, सब तेरी तरह कुत्ते हैं, जो हड्डी पकड़कर मुह बन्द कर लेंगे? अकेले बैठ के अंगरेजी दारू पी और जाके मालिक के सामने दुम हिला। तू मेरा मरद न होता तो तेरी शक्ल न देखती। तूने पूरी बस्ती में मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा।’’ पति को फटकराते–फटकरारते गुलाबों का गला भर आया।
गिरवर की आँखों के आगे कड़कड़ाते नोट, शराब की बोतलें, मुर्गे घूमने लगे और तेजी से चूमने लगा गुलाबों का चेहरा। उसे लगा वह सचमुच मुँह में हड्डी दबाए दुम हिलाता हुआ कुत्ता बन चुका है।
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