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Channel: लघुकथा
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अम्मा की छड़ी

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उम्रदराज़ लोगों की अक्सर आदतें पक्की हो जाती हैं। आखिर बुजुर्ग चाहते क्या हैं– दवा, दारू और सेवा। तो जनाब अगर कोई सरकारी नौकर या उसकी पत्नी अथवा विधवा है ,तो दवा सरकार मुफ्त में दे ही देती है। दारू ऐच्छिक विशय है और सेवा शब्द तो आधुनिक युग में काफी पुराना प्रतीत होता है। खैर! लड़कियों की मज़बूरी माँ बाप से दूर चले जाना सामाजिक प्रक्रिया के अन्तर्निहित है। ऐसे में अम्मा के 76वें जन्मदिन पर रोशनी की बड़ी बहन तारा बोली–‘‘रोशनी! अम्मा को तोहफे में अगर छड़ी दें तो कैसा रहेगा? बेचारी चलते समय डगमगातीं हैं।’’
रोशनी–‘‘नहीं जीजी! ्शायद अम्मा छड़ी पसन्द न करें ।उन्हें तो वैसे ही सहारा लेने की आदत नहीं है।’’
तारा–‘‘अरे! देख ऐसा है न, औलाद और छड़ी दोनों सहारा देने का काम करती हैं। तो क्यों न हम उन्हें छड़ी उपहार में दें।’’
दोनों बहनों में बहस थम चुकी थी। आखिरकार दोनों बहनें छड़ी ले आईं। छह माह के अन्तर के दौरान जब तारा वापस मायके आई ,तो देखा छड़ी अभी भी ज्यों की त्यों पन्नी में लिपटी कोने में खड़ी है।
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रचना गौड़ ‘भारती’
304, रिद्धि सिद्धि नगर प्रथम,बूँदी रोड, कोटा–राजस्थान


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