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लघुकथा को पूर्णरूपेण समर्पित प्रतिभासम्पन्न व्यक्तिव : रवि प्रभाकर

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कभी सपने में भी नहीं सोचा नहीं था कि आपके जाने के बाद आपके व्यक्तित्व पर कुछ  लिखूंगी। क्योंकि आपका व्यक्तित्व लिखने के लिए नहीं जीवन में उतारने के लिए था।ऐसी विनम्रता,विधा के लिए पूर्ण समर्पण और छोटे बड़े प्रत्येक व्यक्ति को न सिर्फ इज्जत देना अपितु प्रत्येक व्यक्ति से कुछ न कुछ सीखने की बात कहना,ये सब मैंने सिर्फ आपमें देखा। आपका असमय जाना लघुकथा विधा के लिए बहुत बड़ा नुकसान है क्योंकि आप सिर्फ अपने लिए नहीं थे। आप सभी के लिए थे हर समय हर पल।

लिखने बैठी हूँ तो आपकी कितनी  ही बातें सिलसिलेवार याद आती जा रही हैं। क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?आपका लघुकथा विधा के लिए वो समर्पण, व्यक्तिगत तौर पर सबकी लघुकथा पर राय देने को प्रत्येक पल तत्पर रहना। आसान नहीं होता अपना समय किसी और के लिए देना। लेकिन आप ऐसे ही हैं।मैं आपके लिए थे शब्द  लिख ही नहीं सकती। आप कहीं गये ही नहीं, यहीं हैं हमारे बीच, देख रहे हैं लघुकथा के उन्ययन के लिए प्रयत्नशील अपने साथियों को, अपने वरिष्ठों को।

बात लघुकथा की हो और आपका जिक्र न आये ये सम्भव ही नहीं।हाँलांकि ईश्वर ने आपको बहुत कम समय दिया।आप विधा के लिए कितना कुछ करना चाहते थे परन्तु ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि कितना कुछ आपके साथ ही चला गया। आपकी अप्रकाशित लधुकथायें, अधूरे आलेख,आपके पचास के लगभग कच्चे- पक्के कथानक और चार पाँच रचना प्रक्रिया से गुजर चुके परिपक्व कथानक जिन्हें सिर्फ कागज पर उतरना था। ऐसे तो लघुकथा के विभिन्न समूहों में मैंने आपकी टिप्पणियाँ पढ़ी ही थीं। हर टिप्पणी से कुछ न कुछ सीख अवश्य ही मिली है । लेकिन आपकी गहन समीक्ष्य दृष्टि का साक्षात्कार मुझे पहली बार राजेश कुमारी की गुल्लक लघुकथा संग्रह पर हुआ था।आपने समीक्षा मुझे भेजी। मैं भी आपकी लिखी समीक्षा हो, कथा हो या आलेख सब काम छोड़ सबसे पहले पढ़ती थी। मुझे आपके लेखन में एक चुम्बकीय आकर्षण लगता था और सीखने के विभिन्न आयाम।लघुकथा को लेकर आपके समर्पण की कुछ घटनायें मुझे अभी भी याद है।मैं अपने क्लीनिक पर थी और आपका फोन आया “उपमा फ्री हो क्या?नहीं भी हो तो दो मिनट का समय दो । इट्स वैरी अर्जेन्ट.”

मैं सच में डर गई कि क्या हुआ?आप प्राय: ही किसी परिचित के या अपने बीमार होने पर मुझसे सलाह लेते थे। मैं चेयर पर थी।एक दाँत निकालना था।मैंने पेशेंट को बैठाया और आपको कॉल बैक की।आपका जबाब आया सुनो उपमा! सपने में एक लघुकथा का कथानक आया कि कब्र बिज्जू है वो शहर आ गया है।

मैंने कहा “क्या सर आप भी? मैं कितना डर गई थी क्या अर्जेन्ट हो गया ?पेशेंट बाहर बैठाया है मैंने।”

बोले- “ये ज्यादा जरूरी था मैं भूल जाता न।”

मैंने कहा “नहीं भूलते। लघुकथा को लेकर आप इतने डिवोटी हो चुके हैं आपको सपने में भी लघुकथा दिखती है।लिख लिया कथानक कि नहीं फिर भूल गये तो दुखी होंगे।

‘’बोले” हाँ दिमाग में तो पूरी कथा है अभी लेकिन सही कह रही हो अभी लिख ही लेता हूँ। तुम फ्री होकर फोन करो पूरी कथा सुनाऊँगा जितनी सपने में लिखी है मैंने।”

मैंने कहा- “ठीक है सर।मिलती हूँ फ्री होकर।’’

बोले- “शीर्षक भी तो सुन लो।या फोन करोगी तब  बताऊँगा। ”

“मैंने कहा बता ही दीजिए,मुझे समय लग जाएगा।आप इतनी देर यही सोचते रहेंगे । ”

हँसने लगे फिर बोले” हाँ !सुन ही लो अभी।किसी दूसरे को पकने से बचाओ। तुम पता नहीं कितनी देर में फ्री हो।शीर्षक है ‘मुर्दों का शहर’

मैंने किसी और को इतना समर्पित नहीं देखा।

ऐसा ही किस्सा उनकी कुकनूस कथा के साथ हुआ था।

“उपमा कॉल करो दो मिनट के लिए। ”

मैंने पूछा क्या हुआ?

बोले -“रात कबूतर फँस गये।” ये कथा उन्होंने काफी दिन के ब्रेक के बाद लिखी थी।

मैंने कहा “मैं समझी नहीं सर। ”

बोले- “कबूतर को दाना चुगाते वक्त जो कथानक दिमाग में आया, वो तुम्हें कुछ दिन पहले सुनाया था न।वो रात लिख लिया।अब तुम्हें भेज रहा हूँ। पढ़ कर राय दो।फोन पर ज्यादा सुनाऊंगा तो कहोगी सर कितना पकाते हैं आप।”

मैंने कथा पढ़ी।बहुत देर उस पर चर्चा हुई।उनकी कथाओं के शीर्षक बड़े सटीक हैं।कहते कि सुकेश साहनी सर को पढ़ा करो, शीर्षक चयन सीखोगी।

मैंने कहा- ” सर इतनी शिद्दत से शायद ही कोई और कथा गढ़ता बुनता होगा।

बोले- “बस यही मेरा इकलौता शौक है। विधा के लिए ईमानदारी से कुछ कर पाऊँ बस यही चाह है।”

मैंने कहा -“एक बात तो रह ही गई सर। ”

“क्या? कथा में क्या कमी है तो बोलो? ईमानदार राय के लिए ही तुम्हें भेजता हूँ। ”

मैंने कहा- “सर!कथा पर चर्चा हम कर चुके लेकिन आपकी भाषा में मेरा मुरादाबादी एसेंट नहीं आ गया है।”

” जैसे।”

मैंने कहा जैसे, “तुम्हें सुनाया था न।, और सर ये पकाना शब्द कोई आपको बोलता नहीं ये मुरादाबादी एसेंट कैसे? ”

बस देर तक हँसते रहे।

ऐसे ही साहनी सर ने एक जगह चंदौसी नाम लिखा है।वो नाम पढ़ कर उनका फोन आया था।बोले”तुम इसी चंदौसी की हो क्या? ”

“मैंने कहा ” जी सर। इसी चंदौसी का मायका है मेरा और इस रेलवे स्टेशन के छोले भटूरे बड़े फेमस हैं।कभी आइये सर अवश्य खिलाऊंगी।”

बोले -“डॉक्टर मैं सर की कथाओं की समीक्षा कर रहा हूँ। अब इसमें ये चन्दौसी नाम अवश्य लिखूंगा। मैं चाहता हूँ तुम थोड़ी और सीरियस हो जाओ विधा के लिए।समझ तो तुम्हें काफी है विधा की।”

उनकी कितनी ही स्मृतियों से मेरा संसार अटा पड़ा है।उनका लघुकथा कलश और गुसइया में कुशल संपादन,उनका नम्र धीर गम्भीर स्वभाव, अच्छी कथा होने पर वो कथाकार को व्यक्तिगत फोन अवश्य करते।

एक डॉक्टर होने के नाते आपके वैक्सीन न लगवाने पर मेरे गुस्सा होने पर आपका वो अंतिम व्हाट्सअप स्टेटस हर पल मुझे दुखी करता है। क्या पता था आपका वो लिखा सच हो जायेगा।ईश्वर सच में आपको अपने पास बुला लेगा।काश आपने अपनी इस डॉक्टर की बात मान ली होती सर तो सम्भवतः आज आप सदेह भी हमारे बीच होते।मेरी कितनी ही लघुकथा आपकी सलाह की प्रतीक्षा में हैं। मेरा संग्रह देवशीला प्रकाशन से आना था सर।आपने जाने की बहुत जल्दी कर दी।दुर्भाग्यवश एक चमकता सितारा अपनी पूरी चमक बिखेरे बिना ही आसमान में खो गया। लिखने को कितना कुछ है मेरे पास लेकिन कलम अब चल नहीं रही। मेरी आँखे नम है।जहाँ भी रहिए सर बहुत खुश रहिए।

डा.उपमा शर्मा, बी-1/248, यमुना विहार,दिल्ली-110053

8826270597


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