गढ़वाली में अनुवाद-अनुवाद डॉ . कविता भट्ट
लबलबी दबीं–पिस्तौल बिटी झुँझलैक गोळी भैर निकळी ।
मोरी बिटी भैर जुळन्डी मन्न वळु आदिम वुक्खी मुं चित्त ह्वे गे।
लबलबी थोड़ी देर माँ फ़िर दबी–दूसरी गोली भिनभिनैक भैर निकळी।
सड़क माँ माशकी की मश्क फटी, वा टुटगा पोड़ी अर वीं कु ल्वे मश्का पाणी दगड़ बगण लग्गी गे।
लबलबी तीसरी बगत दबी–निसाणु चुकी गे, गोळी एक गिल्ली दिवाली माँ डुबी गे।
चौथी गोळी एक दानी जननी की पीठ माँ लगी, वह किलकी बि नि सकी अर वुक्खी मुं मरी गे।
पाँचौं अर छयों गोळी बेकार ग्यायी, न क्वे मरी च अर न घैल।
गोळ्यों चलाण वळु भिन्नै गे।
अचाणचक सड़क मुं एक छोटू- सी बाळू दौड़दु दिखे।
गोळयों चलाण वळन पिस्तौलौ कु मुक वेकि तर्फा मोड़ी।
वेका दगड़ीया न बोली, “यु क्य कन्नी छै ?”
गोळी चलाणवळ न पूछि, “किलै?”
“गोळी त ख़त्म ह्वे गिन !”
“तु चुप्प ह्वे जा…इतरा-सि बाळा तैं क्य पता?”