सुरम्य जंगल का पाँच किलो मीटर रास्ता पार कर दुर्गा, स्कूल पहुँची तो टेबल पर रोज़ की तरह एक गिलास पानी रखा मिला, ठण्डा और मीठा।
सारी थकान दूर हो गई।
वह अक्सर सोचती है- इस पानी में, बच्चों का कितना प्यार समाया हुआ है। पानी की तरह इनका भी कोई रंग रूप नहीं है, जिसमें मिलाओ उस जैसे बन जाते हैं? निर्मल,अबाध…बहते हुए।
स्कूल से नीचे पानी का प्राकृतिक स्रोत है, जहाँ उच्च जाति के दबंगों ने गैरकानूनी तरीके से पानी के टैंक बना रखे हैं।
रोज़ की तरह दोपहर का भोजन कर, बच्चे थाली धोने और पीने के लिए पानी के स्रोत पर गए ही थे कि अचानक उनके करुण क्रंदन से पेड़ों पर बैठे पंछी डर से इधर-उधर उड़ने लगे। घबराकर देखा तो ऊपर से सनसनाते हुए पत्थर बरस रहे थे। बच्चे जान बचाने की असफल कोशिश में इधर -उधर भाग रहे थे। अब ऊपर से गन्दी-गन्दी गालियों की आवाज़ें भी आने लगीं।
“एक -एक को जान से मार दूँगा?”
“क्या हो रहा है?”
उसने कुछ गुस्से और कुछ अचंभे से पूछा, तो डरी हुई भोजन माता, चन्नो बोली-“मैडम, जीत सिंह है। बच्चों ने उसका पानी छू लिया है। स्कूल के ज्यादातर बच्चे अनुसूचित जाति के हैं ना? ”
” उसका पानी?”
सुनते ही दुर्गा की आँखों के सामने से देश,काल,परिस्थिति …सब लोप हो गए। वह ढाल बनकर बच्चों और जीत सिंह के बीच आ गई।
“आपको जो कुछ कहना है मुझसे कहिए। मेरे बच्चों को न मारे, न ही गाली दीजिए?अगर उन्हें कुछ हुआ तो ?…” बात अधूरी छोड़कर फुँफकारती हुई दुर्गा की साँसें तेज़ चलने लगीं।
“मैडम उसके हाथ में राइफल है?”
चन्नो, की आँखें डर से फैल गईं।
” तो क्या? ये किसी को भी मार सकते हैं ? प्रकृति का दिया पानी है ? विद्या के मन्दिर में कोई ऊँचा -नीचा नही है? सब एक हैं। ”
आँखों से आँखें टकराई …चिंगारियाँ दोनों ओर थीं।
तभी जीत सिंह मुड़ा और आँखों से ओझल हो गया।
बच्चे भागते हुए आए और दुर्गा से लिपट गए।
“अब आप जंगल से अकेले कैसे घर लौटेंगी? ” चन्नो डरकर बोली।
धड़कते दिल को सम्भालते हुए दुर्गा बोली-“चन्नो, जैसे पानी का कोई रंग नहीं होता, वैसे ही बच्चों की भी कोई जाति ,धर्म नहीं होता…ये बच्चे भी पानी की तरह ईश्वर का वरदान हैं। आगे जो होगा,वो देखा जाएगा।
-0–Jani Bisht Wahie c/o Subhash Chand Wahie,B-150 , First floor , B block , Noida sec 15,Noida -201301 ( Uttar Pradesh)