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Channel: लघुकथा
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निशानी

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सात आठ दिन ऊपर हो गए थे। वह माँ बनने वाली है, जब वह यह खबर अपने पति को देगी तो वह भी खुशी से झूम उठेगा। लेकिन यह ‘गुड-न्यूज’ वह अपने पति को दे तो कैसे? वह तो हस्पताल के आई.सी.यू. में बेहोश और बेसुध पड़ा है। पाँच महीने हो गए थे उनकी शादी को। तब से उसका पति बीमार ही चल रहा था। कभी उल्टियाँ कभी पेट दर्द। कभी अस्पताल कभी घर। उसे समझ नहीं आ रहा था उसके पति को आखिर ऐसी कौन सी बीमारी है? पूछने पर घरवाले कहते – पेट में कुछ गड़बड़ है। बाकी तो डॉक्टरों की बातें डाक्टर ही जाने। कुछ बताते तो हैं नहीं। घर भर के चेहरे रवि की बीमारी की चिन्ता से लटके हुए थे। वह उन्हें खुशी की यह खबर देगी तो सब के चेहरे कैसे खिल उठेंगे?

यह आस उम्मीद दी है ईश्वर ने तो आगे भी भली ही करेगा। रवि की बीमारी ठीक हो जाएगी तो खुशी चौगुनी हो जाएगी। पति ना सही सास को तो यह खुशखबरी दे ही देनी चाहिए। हर महीने ही तो अम्मा जी पूछ रही हैं – बहू कोई खुशखबरी? कोई आस उम्मीद? वह शरमाकर रह जाती पर इस बार उसे कम से कम अम्मा जी को तो बता ही देना चाहिए। यही सोचकर वह अम्मा जी के कमरे की ओर चल दी।

अम्मा जी अपने कमरे में कानपुर से आई अपनी बहन से बातें कर रही थी। वहीं ठिठक गई वह। मौसी जी कह रही थीं – रवि की बीमारी का सुना, तो मैं पता करने चली आई। हिम्मत रख बहन बाकी तो ऊपरवाले को जो मंजूर! भगवान न करे रवि के साथ कुछ ऊँच-नीच हो जाए…….! बहन मैं तो कहूँ सयाना वो जो सारी बात पहले से सोच के रखे। तू ऐसा कर बहाने से बहू से गाँठ-गहने सब लेकर अपने कब्जे में कर ले, वर्ना बाद में बात क्या से क्या बन जाए।

– वो सब तो मैंने रवि की शादी के दस-बारह दिन बाद ही बहू से सब कुछ लेकर अपने लॉकर में रखवा दिया था।

– डॉक्टर बताते क्या हैं? आखिर रवि को ऐसी क्या बीमारी हो गई है?

रुँधे से स्वर में अम्मा जी ने कहा – अब तो बस दो तीन दिन का मेहमान बता रहे हैं। कह रहे हैं – कोई फायदा नहीं। इसे घर ले जाओ। डॉक्टरों ने तो छह महीने पहले कह दिया था – इसके पेट में कैन्सर है। छह महीने से ज्यादा नहीं जी पाएगा। मैंने ही बात छुपाकर जल्दी से गरीब घर की लड़की देखकर रवि की शादी करवा दी। बड़ा बेटा और बहू तो मना करते रहे, पर मैं नहीं मानी। सोचा था रवि को चला ही जाना है। जाते-जाते इसकी बीवी के बच्चा रह जाएगा, तो रवि के बाद उसकी निशानी रह जाएगी। पर अभी तक तो बहू के कुछ रुका नहीं। अब तो रवि आजकल पर है। लगता है उसकी निशानी भी नहीं मिल पाएगी। ऊपर से ये मनहूस विधवा बहू गले पड़ जाएगी।

तड़फकर रह गई वह। उसके दिलो-दिमाग पर कई विस्फोट एक साथ हुए। अपनी इच्छापूर्ति के लिए किसी अजगर की तरह मेरी जिन्दगी को समूचा ही निगल गई यह धोखेबाज बुढ़िया? निशानी तो इसे नहीं ही देनी। उसने पैर मारकर दरवाजा भड़ाक से खोल दिया। सामने बहू को खड़ा देख बुढ़िया थर-थर काँपने लगी।


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