Quantcast
Channel: लघुकथा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

पिण्ड दा भ्रा

$
0
0

पिंड दा भ्रा/ प्रतिभा पाण्डे 

“डज़ एनी बडी नो हिम?’’गोरा पुलिस वाला कड़क आवाज़ में पूछ रहा था।

रिनी धीरे से उसके कान में फुसफुसाई  “चलो, चलो यहाँ से।’’

उसके दिमाग़ में पिछले महीने की घटना घूम रही थी।

उस दिन वो सुबह से ही बाऊजी से खुलकर बात करने की हिम्मत जुटा रहा था । रिनी ने रात को उसे बताया था कि सामने वाली स्ट्रीट में गेरेज चलाने वाले एक पाकिस्तानी के  पिता के साथ आज कल बाऊजी की गहरी छन  रही है। बाऊजी टेबल पर थपकियाँ देते हुए पंजाबी गाना गुनगुना रहे थे ।

‘“आज ये इतना पुराना गाना कैसे याद आ गया आपको? बचपन में माँ सुनाया करती थी ।” बातों का सिरा पकड़ते हुए वो डाइनिंग टेबल में उनके पास बैठ गया ।

“तुझे याद है! शुक्र है! मुझे तो लग रहा है कि इन दस सालों में तू और रिनी, गोरों से भी दस कदम आगे वाले गोरे बन गए हो।’” बाऊजी धीरे से  मुस्कुराए।

“ऐसा नहीं है। पर यहाँ के तौर तरीके अलग हैं ।” -उसे समझ नहीं आ रहा था बात कैसे उठाए ।

“खूब देख लिए तेरे लन्दन के तौर तरीके इस एक महीने में। मेरा अगले महीने इंडिया लौटने का टिकट करवा दे। घर की याद आ रही है । वैसे मुहम्मद के साथ पार्क में समय अच्छा कटता है आज कल।’’ बाऊजी टेबल पर थपकियाँ देकर फिर गुनगुनाने लगे।

“आप उन लोगों के साथ ज्यादा दोती मत बढ़ाओ बाऊजी। कई बार इन लोगों के धोखे में हम लोगों पर भी यहाँ के लोगों का गुस्सा निकल जाता है । पिछले सात आठ सालों में माहौल ऐसा बन गया है।” एक साँस में बोल गया वो बाऊजी से आँखें मिलाये बगैर।

“कौन इन लोग ! क्या कह रहा है पुत्तर ! वो पंजाब का है,हमारे गाँव का। पार्टीशन के समय आठ नौ साल का था । खूब बातें याद हैं उसे पिंड की।”  बाऊजी का चेहरा तमतमा गया था।

” वो आप न्यूज मे सुनते तो हैं सब।”

” हाँ सुनता हूँ। उस मुल्क के गलत लोगों को सबक सिखा तो रहे हैं हम। पर उसमें इसका क्या दोष? होशमंद बात कर पुत्तर। ” बाऊजी उसकी तरफ देखे बिना अन्दर चले गए थे।

उस दिन वो बाऊजी को बताना चाह रहा था कि उस गाने का मतलब भी याद है उसे। गाने में  माँ अपने बेटे से कह रही है कि बुजदिली का काम करके अपना कायर चेहरा लेकर घर लौटा तो मै घर के दरवाज़े बंद कर दूँगी । पर बाऊजी के गुस्से के कारण वो आगे कुछ बात नहीं कर पाया था । हफ्ते भर बाद दिल के दौरे से बाऊजी चल बसे थे।

बाहों में गड़ती रिनी की उँगलियों ने उसे अतीत से बाहर खींचा।  रिनी उसको कसकर पकड़े वहाँ से ले जाने की कोशिश कर रही थी।  सड़क में एक तरफ बुरी तरह घायल मुहम्मद पड़े हुए थे । कुछ अंग्रेज़ मवाली अस्सी साल के इस वृद्ध को पीटकर भाग गए थे ।

“डज़ एनी बडी नो हिम?’” गोरे की आवाज़ इस बार और कड़क थी ।

“यस आई डू।” रिनी का हाथ झटककर वह अब गोरे की आँखों में सीधे झाँक रहा था।

-0– प्रतिभा पाण्डे , 2 सुयोग परिसर एक्सटेंशन, रतलाम ( मध्यप्रदेश)-457001

pandeprat।bha112@gma।l.com

9617012390

-0-


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2466

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>