सब तरफ केवल जल ही जल था, जो धीरे-धीरे उसके पांव से होता हुआ उसकी कमर तक पहुँच रहा था। धरती जल समाधि लेने की तैयारी में थी और अपने ही सलीब को हाथों में थामें डूबने को आतुर थी, मानों उससे भी अब यह सब सहन नहीं हो रहा था। आसमान भी अजीब से काले पक्षियों से भर गया था। उसने अपनी पत्नी शतरूपा का हाथ कसकर पकड़ा और आस-पास देखा। कॉन्क्रीट के जंगल में दूर दूर तक एक भी पेड़ नहीं था, जिसके तने को काटकर एक अदद नाव बन पाती। नई दुनिया बसाने के लिए नाव में साथ किसे रखे देखने के लिए नजर घुमाई तो एक भी पशु-पक्षी-वनस्पति, फूल पत्ते कुछ भी नहीं दिख रहा था। शतरूपा की कलाई पर उसकी पकड़ कसती चली गई।
अचानक से पत्नी ने कहा “मेरा हाथ तो छोड़ो, पार्टी खत्म हो गई है, रात में चैन से सोने तो दो।”
आँखें खोलकर देखा तो सारे घर भर में प्लास्टिक की पन्निया, गुब्बारे, चमकीले कागदों में लिपटे उपहार, पानी की और ठन्डे की छोटी बड़ी बोतलें बिखरी पड़ी थी। घर में ऊपर से नीचे तक सभी बल्ब, पंखे,एसी अपनी पूरी क्षमता से चले जा रहे थे। फ्रीज़ बड़े से केक, ढेर सारे खाने को आसरा देने के बावजूद अपना दरवाजा खोले खड़ा हुआ था। सामने रखे हुए बड़े बड़े स्पीकर्स जैसे उन्ही काले काले पक्षियों की तरह कोलाहल कर रहे थे।
टिश्यू पेपर से भरे बेसिन से बहता पानी उसके घर भर में धीरे-धीरे फैलने लगा था।
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