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लघुकथाएँ

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1- सियासत का सुर

कुर्सी पर बैठे-बैठे सियासत कुछ गुनगुना रही थी।

“अकेले-अकेले ये क्या गुनगुना रही हो, ज़रा मुझे भी तो सुनाओ!” कुर्सी ने सियासत से कहा।

सियासत मुस्कुराई और बोली, “ले तू भी सुन!” सियासत ने फिर बुलंद आवाज़ में गाना शुरू किया, “मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना…” सियासत लहर-लहरके गाने लगी।

“वैसे एक बात है!” गीत की पंक्ति सुनने के बाद कुर्सी बोली।

“क्या!” सियासत ने पूछा।

“और कोई गीत आप इतने सुर में नहीं गा पाती हो!”

यह सुनते ही सियासत ज़ोर से हँसी। हँसी इतनी ज़ोर की थी कि कुर्सी को कंपन महसूस हुआ।

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2- सच्चा दोस्त

एक दिन निकोलस के घर एक परिचित उससे मिलने आया। जिसका नाम एंटोनियस था।

एंटोनियस ने वहाँ ख़ूब सारी किताबें देखीं। वह यह देखकर बहुत प्रभावित हुआ।

“किताबें ही सच्ची दोस्त होती हैं! क्यों निकोलस! क्या कहते हो!” एंटोनियस किताबों को उत्सुकतापूर्वक देखते हुए बोला।

“हाँ सच है, पर इनके साथ दिक्कत ये है कि ये बिन बताए ही कहीं चले जाते हैं!” निकोलस कुछ झुंझलाते हुए बोला।

“मैं कुछ समझा नहीं!” एंटोनियस एक किताब के पन्ने उलटे-पुलटे हुए बोला।

“पिछली दफ़ा तुम जैसा ही एक बुद्धिमान व्यक्ति यहाँ आया था, तब से मेरे चार सच्चे दोस्त लापता  हैं!” निकोलस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

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3-गदहे

जुलूस निकल रहा था। नारे तेज और तेज होते जा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो धरती डोल रही हो। देखते ही देखते भीड़ ने एक बुज़ुर्ग का फलों से लदा ठेला पलट दिया।

“यू का माजरा है!” गधे ने गधी से पूछा।

“श श श!” गधी ने चुप रहने का इशारा किया।

गधा कहाँ मानने वाला था। उसने फिर पूछा, “क्या हो रहा है!”

“चुप! कुछ मत पूछ! अब तो सोचना भी गुनाह है! धर लिए जाओगे!” गधी बोली।

थोड़ी देर चुप रहने के बाद गधे ने फिर पूछा, “यू चल क्या रहा है!”

“नए देश का निर्माण चल रहा है!” गधी ने खीजते हुए कहा।

“अच्छा, तो नये देश के निर्माण में कुछ अपना भी तो योगदान होना चाहिए!” गधा जोश में बोला।

“…तो जा कर न …”- गधी गुस्से से बोली।

गधा दौड़कर जुलूस में शामिल हो गया और जोर-जोर से रेंकने लगा।

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4-बमों की बातें

“हाय!” नया नवेला बम बोला।

“हैलो!” पुराने बम ने जवाब दिया।

“तो तैयार हो!”

“किस बात के लिए!”

‘‘फटने के लिए!”

“अगर तुम किसी अस्पताल, खलिहान, कारखाने पर गिरो, तो तुम्हें कैसा लगेगा!” पुराने बम ने पूछा।

“मुझे अपना काम करना है, उसका परिणाम नहीं देखना!” नए बम ने जवाब दिया।

“अच्छा, पहले यह बताओ कि तुम्हारे अंदर क्या-क्या है!” कुछ देर चुप रहने के बाद पुराने बम ने पूछा।

“बारूद, केमिकल और बहुत कुछ!” नए बम ने जवाब दिया।

“गलत!”

“फिर!”

“तुम्हारे अंदर किसी मज़दूर के हिस्से की चुराई गई रोटी, किसी बुज़ुर्ग की ख़त्म की गई पेंशन, किसी बच्चे के हाथ से छीनी गई किताब, कीटनाशक पिया हुआ कोई किसान, प्रसव वेदना से दम तोड़ती हुई किसी महिला की एंबुलेंस की प्रतीक्षा, बड़े सेठ की गहरी अय्यारी, अंतर्राष्ट्रीय नेता की नई चाल की तैयारी और तो और किसी नवजात की ली गईं किलकारी है …”

“तुम तो बहुत भरे बैठे हो यार! कहीं बैठे-बैठे ही न फट जाना!” नए बम ने व्यंग्य किया।

“मगर एक्सपर्ट तो मुझे सीला हुआ कहते हैं!” पुराने बम ने अपना हाल बताया।

“तुम सीले नहीं हिले हुए हो!” नया बम मस्ती में बोला।

“मैं हिला हुआ कैसे!” पुराने बम ने पूछा।

“क्योंकि मेरे अंदर केमिकल है और तुम्हारे अंदर केमिकल लोचा है!” नया बम यह कहकर अकड़ा।

“तो मैं हिला हुआ हूँ!”

“हाँ,कोई शक!”

“अगर मैं हिला हुआ हूँ, तो तुम पूरे ठस्स हो ठस्स!”

“कैसे!!!”

“तुम फटकर हुक्म बजाते हो!”

“और तुम सीले रहकर क्या करते हो बे!” नए बम ने गुस्से से पूछा।

“मैं फर्ज निभाता हूँ!” पुराने बम ने विनम्रता से जवाब दिया।

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5- माटी

कल रात से ही कसाईबाड़े में हलचल मची हुई है। सुबह होते ही गली के आखिरी मकान के सामने मजमा लग गया था। अधिकतर के मुँह पर मास्क थे। जिनके मुँह मास्कविहीन थे, वे रुमाल से ढके हुए थे।

“क्या ज़माना आ गया है!”

“जमाना तो छोड़िए जनाब, कमबख्त यह बीमारी कौन-सी आ गई!”

“बताते हैं कि यह वायुरस दवाई से भी नहीं मरता!”

“मैं तो कहता हूँ कि हमें इस सब में पड़ना नहीं चाहिए, ख़ुदा न खास्ता कुछ कोर-कसर रह गई तो वही बात होगी कि गए थे नमाज बख्शवाने, गले पड़ गए रोज़े!”

“यह वक़्त है! ऐसी बातें करने का!” फारुख मियाँ ने सख्त लहजे में कहा।

“यहाँ जनाजा रखा हुआ है और आप लोग इधर-उधर की बातें कर रहे हैं!” फारुख मियाँ फिर बोले। फारुक मियाँ के इस रुख को देखकर वहाँ शान्ति छा गई।

“कोई रिश्तेदार आ रहा! सबको ख़बर करवा दी!” फारुख मियाँ ने एक नज़र सबको देखते हुए कहा।

“कोई मिट्टी छूने को तैयार नहीं चचा… जबकि बार-बार बताया गया है कि मरहूम को किरौना नहीं हुआ था, अफवाह थी, पर कोई मानने को तइयार ही नहीं…” किशोर फैजान ने सारी बात एक साँस में कह डाली।

“अब ज्यादा देर करना मुनासिब नहीं। मिट्टी खराब होगी!” कलीम मियाँ बोले जो फैजान के अब्बू थे।

“ज़िन्दगी भर अकेला रहा, अब देखो अकेला चल दिया!”- फारुख मियाँ का यह कहते-कहते गला भर आया।

“उठाइए भाई जान!” आमिर बोला। सब आगे बढ़े। फारुख मियाँ ने भी अपनी उम्र की परवाह न करते हुए जनाजे को कन्धा दिया, पर थोड़ी देर बाद ही जिया साहब ने उनकी जगह ले ली।

फारुख मियाँ जनाजे के आगे चल रहे थे। वे चहुके। जैसे उन्हें सहसा कुछ याद आ गया हो!

वे भर्राई आवाज में बोले, “राम नाम!”

पीछे से आवाज आई, “सत्य है!”

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6-अन्धकार

“हम तीन बहनें हैं। वो दोनों अपने-अपने घरों में हैं, बस मैं ही बाहर हूँ!” आग ने पत्थर से कहा।

“तुम्हारी दोनों बहनें कहाँ रहती हैं!” पत्थर ने पूछा।

“मेरी एक बहन तो गरीब के पेट में रहती है। और दूसरी बहन वाइज की जुबान में रहती है।” आग ने अपनी दोनों बहनों के बारे में बताया।

“और तुम कहाँ रहती थीं!” पत्थर ने पूछा।

“मैं… मैं शायर की शायरी में रहती थी!”

“मगर उसने तुम्हें निकाल क्यों दिया!”

“वो कहता है, बादशाह बहुत जालिम है! ऐसा बादशाह तवारीख में पहले कभी न हुआ!”

“तुमने फिर गलत कहा!”

“क्या!”

“वह शायर नहीं कायर है!”

आग कुछ न बोली।

“तुम्हारे बिना उसकी शायरी किस काम की!” पत्थर ने आग का हौसला बढ़ाया।

“मेरे निकलते ही जनाब बादशाह के दरबारी बन गए!”

“अब तुमने क्या सोचा है!”

“ऐसे ही दर-ब-दर भटकते-भटकते खत्म हो जाऊँगी एक दिन!” आग मायूस होकर बोली।

“न! न! ऐसा न कहो! तुम्हारी रोशनी और तुम्हारी तपिश दोनों जरूरी हैं  इन्कलाब के लिए।”

आग खामोश रही।

“तुम चाहो तो मुझमें रह लो!” पत्थर का दिल पसीजा।

और देखते ही देखते आग पत्थर में समा गई।

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7-सवाल

काफी देर तक उन्होंने झिकझिक की। फिर फल लेने के बाद कार मैं बैठकर घर की ओर चल दिए।

“पापा फल वाले अंकल कितने वीक हैं न!” बगल की सीट पर बैठा उनका दस वर्षीय बच्चा बोला।

वह सोचने लगे। अरे हाँ! फल वाला सूखा हुआ ठूँठ था! बेजान-सा!

“वाह! काफ़ी तेज निगाहें है तुम्हारी!” उन्होंने अपने बच्चे को शाबाशी दी।

“पापा हमसे ज़्यादा फल तो उन अंकल को खाने चाहिए!” बच्चा बोला।

वे कुछ न बोले।

“हैं न पापा!” अपनी बात की पुष्टि के लिए वह फिर बोला।

मगर वह चुपचाप कार चलाते रहे, जैसे उन्होंने कुछ सुना न हो!

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 8-डमी

बाजार की रौनकें सिमट रहीं थीं। दुकान बढ़ाने का समय हो चला था। दोनों डमियों को दुकान के अन्दर रखा जा चुका था। यह एक अंडरगारमेंट की दुकान थी और दोनों डमी अंडरगारमेंट पहने दुकान के सामने खड़ी रहतीं थीं।

“आज तो मैं बोल कर ही रहूँगी!”

“पक्का!”

“तू साथ देगी कि नहीं!”

“हम दोनों एक ही नाव पर सवार हैं बहन!”

दुकान मालिक जब चलने को हुआ तो एक डमी बोली, “हमें कुछ कहना है!”

दुकान मालिक ठिठका।

“आपका स्टाफ हमारे साथ जब-तब बदतमीजी करता है!” पहली डमी गुस्से से बोली।

“कभी हमारे नितम्ब पर तो कभी हमारे वक्ष पर तो कभी…” दूसरी डमी कहते-कहते रुक गई।

“जानता हूँ मैं!”

“आप जानते हैं!” पहली डमी चौंकी।

“ये कोई बड़ी बात नहीं है!” दुकान मालिक आराम से बोला।

“बड़ी बात नहीं!” दूसरी डमी चीखी।

“अब हमें यहाँ एक पल भी नहीं रुकना!”

“आप से यह उम्मीद नहीं थी!” दूसरी डमी बोली।

“सोच लो!” दुकान मालिक मुस्कुराया।

“अब सोचने-समझने का वक्त गया!”

“कोई बड़ी बात नहीं!” दूसरी डमी ने दुकान मालिक की कही हुई बात दोहराई!

“ज्यादा नखरे मत कर! बिना बात के नुमाइश कर रही है!” अचानक यह बात उस कर्मचारी के मुँह से निकली जो उनको झाड़ता, पोंछता और उन्हें इधर से उधर उठाकर रखता था।

“चल हट!”

“कुत्ता कहीं का!”

दोनो डमियाँ उसे दुत्कारते हुए दुकान से बाहर चली गईं।

          अगले दिन दुकान मालिक जब अपनी दुकान पहुँचा, तो दोनों डमियाँ वहाँ पहले से मौजूद थीं। उन्हें वहाँ देखकर उसे कोई हैरत नहीं हुई। सहायक जब दुकान का शटर उठा रहा था तो दुकान मालिक मुस्कुराते हुए बोला, “बड़ी जल्दी आ गईं तुम दोनों! अभी तो चौबीस घंटे भी न हुए!”

दोनों डमियाँ शान्त खड़ी रहीं। मालिक ने उन्हें ऊपर से नीचे ध्यान से देखा। एक डमी के चेहरे और छाती पर खरोंचों के निशान थे। दूसरे डमी के पेट और जाँघों पर।

“ये निशान कैसे! ”दुकान मालिक ने पूछा।

दोनों डमियाँ एक दूसरे को देखने लगीं।

“क्यों… क्या हुआ!” दुकान मालिक ने फिर पूछा।

“वो… वो…” पहली डमी हकलाई।

“वो कुछ नहीं… रात को कुत्ते पीछे पड़ गए थे बस!” दूसरी डमी झट से बोली।

यह सुनते ही दुकान मालिक जोर से हँसा। हँसते हुए बोला, “वाकई!”

दोनों डमियाँ खड़े-खड़े काँपने लगीं।

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9- पोस्टमार्टम

पोस्टमार्टम के लिए ताज़ा लाश पड़े-पड़े कब की बासी हो चुकी थी। अब उसका इन्तज़ार खत्म होने को था।

“देख लो सही से! मरा है कि जिन्दा है!” सीनियर डॉक्टर बोला।

यहाँ डॉक्टर का कथन आपको अमानवीय लग सकता है। लेकिन इससे पहले जिसे लाश समझकर भेजा गया था। वह जीवित निकला था और यह बात पूर्णतः सच थी, इस ख़बर को एक समाचारपत्र ने प्रकाशित भी किया था।

लाश का पोस्टमार्टम शुरू हो गया।

थोड़ी देर बाद लाश खुल चुकी थी। व्यक्ति जो जीते जी खुलकर नहीं कह सका होगा, अब उसकी लाश कह रही थी।

उसकी छाती से राख निकली! उसकी आँखों से नमक!  उसके कानों में से जमे खून का थक्का!  आँतों में से ढेर सारे शब्द!

“बॉस यह लाश किसकी होगी!” जूनियर डॉक्टर ने पूछा।

“मजदूर की!”

“आप ये कैसे कह सकते हैं बॉस!”

“मेरे पिता जी भी एक मजदूर थे!” सीनियर डॉक्टर का जवाब सुनकर उसे झटका लगा।

“ज्यादा सोचो मत! बस ऐसे ही बोल दिया! हाँ तो तुमने अभी देखा न! इसके शरीर से क्या निकला!” यह सुनकर जूनियर डॉक्टर चुप हो गया।

“सुनते-सुनते कान पक गए थे, इसके ये खून का थक्का बता रहा है…”

“बहते बहते आँसू सूख चुके इस बात की दुहाई नमक दे रहा है…”

सीनियर डॉक्टर ने जूनियर डॉक्टर का संशय दूर करने की कोशिश की।

“चेस्ट से एशेज का मिलना यानी यह सिगरेट पीता होगा!” जूनियर डॉक्टर उत्साहित होकर बोला।

“नो नो नो ये इंडस्ट्रियल एरिया में काम करता होगा या किसी ईंट के भट्टे पर… कहने को तो यह भी कहा जा सकता है, बट फैक्ट इज दैट..  सीने में इसके जले हुए अरमान हैं!”

“और बॉस व्हाट अबाउट इंटेस्टाइन…”

“इसने रोटी से ज्यादा गालियाँ खाई होंगी… दैट इज वाई…”

“भूख से मरा!”

“नहीं! इसकी मौत भूख से नहीं, इनफ़ेक्ट सिस्टम पर विश्वास करने से हुई है!” सीनियर डॉक्टर ने जवाब दिया।

कुछ ही देर में पोस्टमार्टम पूरा हो चुका था। डॉक्टर ने फाइनल रिपोर्ट में लिखा- इमिडिएट कॉज : शॉक!

फाइनल कॉज : डीहाईड्रेशन लीडिंग टू डेथ यानी पानी की कमी से मौत।

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10- रावण

“रावण देखने में भयानक नहीं लग रहा है.”

“तो!”

“बल्कि देखकर उसे हँसी आ रही है।”

“हाँ, तो”

“तो, तो, क्या तोते! रावण है तो क्रूर, निर्दय, भयानक दिखना चाहिए न!”

“तुम दिखते हो क्या?”

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