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Channel: लघुकथा
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सहेली

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सहेली/- देवेन्द्रराज सुथार

वृद्धा ने धीरे से दरवाज़ा खटखटाया।

सहेली/- देवेन्द्रराज सुथार

वृद्धा ने धीरे से दरवाज़ा खटखटाया।

‘‘कौन?” अंदर से आवाज़ आई।

 ‘‘मैं हूँ, काकी”-वृद्धा ने कहा।

 ‘‘नमस्ते काकी, आइए।” दरवाज़ा खोलकर युवती ने कहा।

कमरे में रखे एक पुराने सोफे पर बैठते हुए वृद्धा ने कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारी माँ कहाँ है?”

यकायक युवती के चेहरे पर मायूसी छा गई, ‘‘काकी, आपको नहीं पता? माँ तो… ”

वृद्धा बीच में ही टोकते हुए बोली, ‘‘अरे हाँ! मैं भूल गई।” फिर उन्होंने अपनी झोली में से एक पुराना फोटो निकाला- ‘‘ये देखो, तुम्हारी माँ और मेरी तस्वीर। कितनी अच्छी दोस्त थीं हम।”

युवती ने फोटो देखा और मुस्कुराई– ‘‘हां काकी, माँ अक्सर आपके बारे में बताती थीं।”

वृद्धा ने फोटो वापस अपनी झोली में रखते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटी, अब मैं चलती हूँ।”

‘‘अरे काकी, चाय तो पी जाइए।”

‘‘नहीं बेटी, फिर कभी।”कहते हुए वृद्धा ने विदा ली। युवती उन्हें दरवाजे तक छोड़ आई। जाते-जाते वृद्धा ने कहा, ‘‘कल फिर आऊँगी। तुम्हारी माँ से मिलने।”

युवती की आँखें भर आईं। वह जानती थी, काकी कल फिर आएँगी और फिर भूल जाएँगी कि उनकी सहेली अब इस दुनिया में नहीं है।

– देवेन्द्रराज सुथार
पता- गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। 343025
मोबाइल नंबर- 8107177196 


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