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Channel: लघुकथा
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डायन

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सुनहले बाल, गोरा रंग, कजरारी आंखें तिस पर ममता भरी मुस्कान…………. । आयु के छठे दशक में जी रही दुर्गा मौसी का आकर्षण बेमिसाल था । मोहल्ले की औरतें उसे डायन कहती और अपने बच्चों को उससे दूर रखती । कई संतानों को जन्म देने और उनमें से एक का भी ना जी पाना अथवा जीवन के मध्याह्न में वैधव्य का लिखा हुआ लिखा हुआ अभाग………………. । कारण जो भी हो सारे औलाद वाले उसकी परछाई से घबराते । मैं जिले में स्कूल मास्टर की नई- नई नौकरी में अपनी गर्भवती पत्नी के साथ दुर्गा मौसी के मकान में किराएदार अनजाने में बन गया । अन्य मकानों का किराया मेरी सामर्थ्य से बाहर था । मोहल्ले वालों की बातें सुनकर हम दोनों अपने निर्णय पर पछता रहे थे लेकिन अब कुछ दिन वहां गुजराने ही थे ।

               मौसी अपने  पति के इस मकान और अल्प विधवा पेंशन के सहारे एकाकी जीवन बिता रही थी । हिंदू स्त्री होते हुए भी उन्हें हम उम्र औरतों की तरह पूजा -पाठ या व्रत-त्योहार करते किसी ने नहीं देखा; लेकिन कभी-कभी मिशनरी अस्पताल के नि:सहाय मरीजों को भोजन वगैरा लेकर जाते देखा जाता था। इसी अस्पताल में उनके कैंसर पीड़ित पति ने आखिरी साँस ली थी। उसे नर्सिंग का भी कुछ ज्ञान हो गया था। पार्क में बैठे रिटायर्ड पुरुषों की आँखें चमक जातीं, जब वह उधर से गुजरती और वह अपनी स्वाभाविक मुस्कान बिखेरती आगे बढ़ जाती ।

               जनवरी की एक हाड कँपाती सर्द रात में मेरी पत्नी के पेट में असहनीय दर्द उठा । प्रसव का समय अभी दूर था । अस्पताल ले जाने का कोई साधन नहीं । मरीज को तुरंत सहायता की जरूरत थी ।  मैं पूरी तरह असहाय होकर समय को कोसने लगा तभी पत्नी की चीत्कार सुनकर मौसी आ गई । उसकी बच्चेदानी से एम्नियोटिक फ्लयूड, जिसमें बच्चा जीवित रहता है, बह चुका था और तुरंत प्रसव कराना अनिवार्य था । मौसी ने मुझे कुछ निर्देश दिए और पत्नी को सँभाल लिया । कुछ ही पलों में उन्होंने अपने अनुभवी हाथों से सुरक्षित प्रसव करा दिया । कमरे से बाहर मेरे कानों में नन्हे पुत्र की फर्स्ट क्राई सुनाई पड़ी ।  कुछ देर में पत्नी को होश आ गया । दुर्गा मौसी ने डॉक्टर, आया और माँ तीनों का काम अकेले पूरा किया। ऐसा चमत्कार एक डायन ही कर सकती है ।

-0- डिप्टी मैनेजर (इफ्को आँवला),बरेली


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