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Channel: लघुकथा
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फ़र्क

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तीसरा पुरस्कार

 राम प्रसाद जी एक बात अक्सर अपने मिलने वालों से कहा करते थे,”परिवार हो या फिर बगीचा उसकी देखभाल बड़े जतन से करनी पड़ती है तब जाकर वे हरे-भरे और खुशहाल बनते हैं।

 उनकी इस सोच का प्रत्यक्ष प्रमाण था कि उनका भरा पूरा परिवार और पिछवाड़े में लगाया हुआ बाग हर समय खुशियों से महकता-चहकता, गुलजार नजर आता था। पर तभी लोगों ने देखा कि पिछले कुछ समय से बगीचा तो पूरी तरह से हरा-भरा और खिला-खिला दिखाई दे रहा था परंतु उनका परिवार बिखरा-बिखरा नजर आने लगा था।

आए दिन के झगड़े झंझट होते देखकर एक दिन पड़ोसियों से रहा नहीं गया और उन्होंने रामप्रसाद जी से पूछ ही लिया,”हमें लग रहा है कि आप अपने परिवार की इतनी अच्छे से देखभाल नहीं कर पा रहे जितनी अपने बगीचे की कर रहे हो। इसकी क्या वजह है?”

 उनका सवाल सुनकर रामप्रसाद जी कुछ पलों के लिए शून्य में ताकते रहे और फिर धीमी आवाज में बोले,”बंधुवर, देखभाल तो मैं दोनों की बराबर ही कर रहा हूँ। फर्क बस इतना है कि काश, जितनी संवेदनशीलता बगीचे के पौधों ने दिखलाई वैसी परिवार के लोग भी दिखाते।” कहते हुए उनकी आंखों का गीलापन सब कुछ बयान कर रहा था।

ijkaushik1963@gmail.com


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