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Channel: लघुकथा
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आग

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मार्निंग कान्फ्रेंस से निपटकर हाकिम हुक्काम चाय कॉफी की चुस्कियाँ ले चुके थे। जितनी देर इनकी कांन्फ्रेंस चलती, मातहत इधर उधर घूम टहल लेते। एक दूसरे की राजी- खुशी भी जानने का सबसे मुफीद समय। इनके वैचारिक विनिमय को गप्प सड़ाका कहने की परंपरा अभी तक ज्यों की त्यों चली आ रही थी। सतपाल चपरासी ने साहब को राम राम कही, बैग पकड़ा और दिन भर के लिए आश्वस्त हो गया कि साहब की किरपा बनी रहैगी। कभी कभार साहब राम राम का जवाब दे देते थे और जिस दिन ‘हाउ इज इवरी थिंग?’ तो सतपाल की बाँछें खिल जातीं। दोपहर एक बजे का समय। ‘फायर फायर फायर।’ सतपाल दौड़ा।
“साहब आग..‌।”
“हाँ देख रहा हूं।”
आग सार्ट सर्किट से लगी थी। कहाँ किसको याद रहता है कि कौन सी मशीन से झाग निकलेगा, किसमें बालू है, और कौन सी से पानी। जिसको जो समझ आया, सब आग बुझाने लगे। सतपाल को तो आग लगने पर पानी डालने आता था, सो डाल दिया बाल्टी भर पानी। छटपटाया और..!
दमकल की गाड़ियाँ पहुँची अपने सिस्टम के अनुसार। बची खुची आग शांत हो रही थी। फोटोबाजी और प्रेस रिलीज।
“कॉफी ठंडी हो गई सतपाल। दूसरी लाओ। ये स्सा..आग।”
सतपाल के परिजन सुबह का इंतजार कर रहे थे; क्योंकि रात में आग नहीं दी जाती।

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