Quantcast
Channel: लघुकथा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2485

फर्ज़ अदायगी

$
0
0

जीवन के पैंसठ वसंत देख चुके कुमार साहब, जिनकी बातों से फूल झरते थे, वे अब सदा के लिए मुरझा गए थे। वे लेटे थे आँखें मूँदे हुए। कुछ औरतें जोर- जोर से रो रही थीं, जिन्हें पहले तो कभी नहीं देखा, शायद दूर के रिश्तेदार होंगे, उनके बेटे को खबर दी है किसी ने या नहीं? मैं सोच रहा था, किससे पूछूँ?

कुमार साहब अपने बेटे पर जान छिड़कते थे। माँ के बचपन में ही गुज़र जाने पर उसे खुद ही माँ की ममता दी। सौतेलेपन के डर से दूसरी पत्नी का सोचा भी नहीं। बेटे को पढ़ाया- लिखाया, विदेश भेजा, उसका हर सपना पूरा किया। कुमार साहब जब भी मिलते तो मुझसे उसी की बात करते। कहते- “वही मेरे जीने की इकलौती आस है।”

मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे। उनसे रिश्ता एक पड़ोसी का, एक इंसान का नहीं, आत्मा का था, वे हमेशा ये अहसास दिलाते रहे कि वे मेरे अपने हैं। मेरे सुख- दुख में हमेशा साथ रहे।

बेटा अगली दोपहर तक भी नहीं आया था। शव को बहुत देर तक नहीं रख सकते थे। अर्थी सजाई जाने लगी। उस देवपुरुष की शवयात्रा में घर से श्मशान जाने तक मेरा मन किया कि रोककर कहूँ कि थोड़ी देर और राह देख लो! बेचारे बेटे को अपना ये आख़िरी फर्ज़ तो पूरा कर लेने दो!

उन्हें अग्नि दे दी गई। सब घर लौट आए। उस घर की सारी रौनक कुमार साहब अपने साथ ले गए। घर वीरान हो गया।

शुद्धता के दिन मैं गया। बाल मुँडवाए जा रहे थे। “सौरभ”- मेरे नाम लेते ही वह अनजान शख़्स पलटा।

“अरे तुम कौन हो?” मैंने पूछा।

पास खड़े एक व्यक्ति ने कहा- “इनको हमने बुलाया है।”

“यह उनका बेटा तो नहीं है, फिर यह अपने बाल…”

मेरा सवाल पूरा होने से पहले ही वह व्यक्ति बोला- “हम एक संस्था से हैं। हमारी संस्था जिनके बच्चे विदेश में रहते हैं, उन माँ- बाप को जरूरी सुविधा प्रदान करती है। मृत्यु से पहले कुमार जी ने हमें फोन किया था। हमारे यहाँ पहुँचने पर वे शरीर छोड़ चुके थे। हमने उनके बेटे को यह बात बताई कि तुम्हारे पिता अब नहीं रहे, तुम आ जाओ, उनके बेटे ने कहा कि आप ही उनका अंतिम संस्कार और तेरहवीं कर दीजिए। कुछ रोने वालों का इंतजाम कर देना, बाल मुँडवाने के लिए किसी का इंतजाम कर देना। और भी जो रीति- रिवाज मरने पर होते हों, सब करवा देना। जितने पैसे खर्च होंगे, मैं यहाँ से भिजवा दूँगा। जब मैंने कहा कि ये सब तो तुम्हें ही करना होगा, उसने कहा- मुझे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलेगी। मैंने इंसानियत के नाते फिर भी उतने वक्त तक उसका इंतजार किया, जिस वक्त तक वो आ सकता था। जब वो नहीं आया, तब मैंने ये सब इंतजाम किया।”

उस व्यक्ति की बात सुनकर मैं काँप गया।

उसी बीच गेट के अंदर दो लोग दाखिल हुए। संस्था वाले व्यक्ति ने पूछा- “किससे मिलना है।  अब यहाँ कोई नहीं रहता।”

उनमें से एक बोला- “बाबू जी। हमका साहब बिदेस से फोन किए। कहा कि जाओ हवेली मा रहो जाके। कोई कब्जा भी नहीं करेगा और हवेली की देखभाल भी होती रहेगी। बंद मकान जल्दी टूट जाता है ना।”

मुझसे खड़ा नहीं रहा गया। मैं बैठने को था, तब तक मेरा बेटा आ गया। उसके कन्धे पर मैंने अपना सर रख दिया।

-0-


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2485


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>