कथाकार मधुदीप जी कथा साहित्य की तीनों विधाओं, उपन्यास, कहानी और लघुकथा में सृजन कर्म से जुड़े रहे हैं। लघुकथा में उन्होंने सम्पादन और विमर्श में पर्याप्त काम किया है। जब कोई रचनाकार सृजन के साथ संपादन-विमर्श से भी जुड़ा होता है, तो उसके सामने लेखन की कई चुनौतियां खड़ी होती हैं, जिन्हें स्वीकार करके लेखन के साथ न्याय करना कठिन हो जाता है। यदि आपके सृजन में कमजोरियां हैं तो आप संपादन व विमर्श में कई प्रश्नों से जूझेंगे और यदि आप संपादन और विमर्श में विधागत मापदंडों के साथ चल रहे हैं, समझौते नहीं कर रहे हैं, तो आपको अपने सृजन पर भी उसी तरह ध्यान देना पड़ेगा, जैसी दूसरों से अपेक्षा करते हैं अन्यथा सृजन कर्म से हटना पड़ेगा। मधुदीप जी ने दोनों ही क्षेत्रों में न सिर्फ पर्याप्त कार्य किया है, अपितु पूरा न्याय भी किया है। उनकी साहित्य साधना एक लम्बे मध्यान्तर के साथ दो पारियों में बँटी हुई है, लेकिन उनकी दोनों पारियों के बीच का मध्यान्तर उनके लेखन-संपादन-विमर्श में से किसी में भी किसी तरह की शिथिलता का कारण नहीं बना है। दूसरी पारी में ‘पड़ाव और पड़ताल’
संकलन को एक ऐतिहासिक शृंखला में बदलकर जो काम उन्होंने किया है, उसे दोहरा पाना किसी अन्य के लिए शायद ही संभव हो पाये। लेकिन समान रूप से उन्होंने लघुकथा सृजन में भी महत्वपूर्ण काम किया है, जो ‘समय का पहिया’
के रूप में हमारे सामने है।
उनके इस संग्रह में उनकी पहली पारी यानी 1995 तक की 30 तथा इक्कीसवीं सदी, संभवतः पिछले कुछेक वर्षों में ही लिखी गईं 41 लधुकथाएं दो अलग-अलग खंडों में शामिल की गई हैं। दोनों खण्डों की लघुकथाओं को पढ़ने से दो बातें अत्यंत स्पष्ट हैं- पहली यह कि लम्बे अन्तराल, का उनके सृजन की गुणात्मकता पर न तो कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और न ही ऐसा आभास मिलता है कि वह लघुकथा से उनकी कोई दूरी रही है। दूसरी बात, जो कुछ वरिष्ठ लघुकथाकार लघुकथा सृजन के पैटर्न को बदलते दृष्टिगोचर हो रहे हैं, उनमें मधुदीप जी भी शामिल दिखाई देते हैं। उन्होंने न सिर्फ अपने-आपको नई जमीन से जोड़ा है, नई जमीन की तलाश में भी स्वयं को शामिल किया है। नाट्य शैली में लिखी ‘समय के पहिया’ जैसी लघुकथा के माध्यम से उन्होंने लघुकथा में काल दोष की समस्या के समाधान की ओर ध्यान खींचा है। संभवतः लघुकथा में इस तरह का यह दूसरा उदाहरण है। चैटकथा, पिंजरे में टाइगर, ऑल आउट, मेरा बयान जैसी कई लघुकथाएं लघुकथा के लिए नई ज़मीन तोड़ती दिखाई देती हैं। अबाउट टर्न, अवाक्, मजहब, वजूद की तलाश, विषपायी, शोक उत्सव, सन्नाटों का प्रकाश पर्व, साठ या सत्तर से नहीं, हाँ, मैं जीतना चाहता हूँ जैसी सशक्त लघुकथाएँ मधुदीप जी की दूसरी पारी को पहली पारी से जोड़ती हैं। निसंदेह ‘समय का पहिया’ कथा साहित्य में लघुकथा की उपस्थिति दर्ज कराता अपने समय का संग्रह है। समय का पहिया: लघुकथा संग्रह: मधुदीप। प्रकाशक: दिशा प्रकाशन, 138/16, त्रिनगर, दिल्ली। मूल्य: रु.300/-मात्र। पृष्ठ: 152। संस्करण: 2015।
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समय का पहिया ( लघुकथा-सग्रह): मधुदीप ; प्रकाशक : दिशा प्रकाशन,138/16,त्रिनगर दिल्ली-110035 ; पृष्ठ : 152 (सज़िल्द); मूल्य : 300 रुपये; संस्करण -2015)
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समय का पहिया : अपने समय का लघुकथा संग्रह
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