गुलामी
(अनुवाद: सुकेश साहनी) राजसिंहासन पर सो रही बूढ़ी रानी को चार दास खड़े पंखा झल रहे थे और वह मस्त खर्राटे ले रही थी। रानी की गोद में एक बिल्ली बैठी घुरघुरा रही थी और उनींदी आँखों से गुलामों की ओर टकटकी...
View Articleज़रूरत
रंग–बिरंगे सजे पंडाल ,सफेद और लाल–हरी–गुलाबी रोशनियों से नहाई हुई कनातें, एकदम असली लगने वाले प्लास्टिक के फूल और गुलदस्तों से सजा स्टेज, बारातियों के लिए सजाई गए स्टाल, जहाँ तरह–तरह के पकवान थे हर...
View Articleਚਮਤਕਾਰ- चमत्कार
ਬੱਚੇ ਦੀ ਬੀਮਾਰੀ ਕਾਰਨ ਗਰੀਬੂ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ ਦਿਹਾੜੀ ਕਰਨ ਨਹੀਂ ਸੀ ਜਾ ਸਕਿਆ। ਅੱਜ ਬੱਚਾ ਕੁੱਝ ਠੀਕ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਘਰ ਵਿਚ ਰਾਸ਼ਨ ਪਾਣੀ ਮੁਕ ਗਿਆ ਸੀ। ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਪਿਆਉਣ ਲਈ ਘਰ ਵਿਚ ਇਕ ਤੁਪਕਾ ਦੁੱਧ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ। “ ਜਾਓ, ਹੱਟੀ ਆਲੇ ਨੂੰ ਆਖੋ...
View Articleलघुकथाओं की लोकप्रियता
साहित्य की विविध विधाओं में लघुकथा का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। दरअसल लघु कलेवर में भावों, मुद्दों, संवेदनाओं और संबंधों के अथाह सागर को सँजोए रखने के कारण आज लघुकथाओं की लोकप्रियता बढ़ गई है। आज...
View Articleचौबीसवाँ अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन
चौबीसवाँ अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन 25 अक्टूबर को कोटकपूरा (पंजाब) में।
View Articleशृंखला
मैं स्टेज पर बुलाना चाहूँगा नए डायमंड को, पहले इनकी साधारण परचून की दूकान थी लेकिन अब दस लाख रूपये महीने कमाते हैं । तालियाँ ….। स्टेज पर एक के बाद एक अलग अलग टाइटल के चेहरे बुलाए जा रहे थे और प्रति...
View Articleलघुकथाओं की लोकप्रियता और उसका प्रभाव
समय परिवर्तन के साथ समाज बदलता है और उसी के अनुसार कला और साहित्य का स्वरूप भी बदलता है। सामंती समाज में जब लोगो के पास अवकाश का समय था ,तब महाकाव्यों एवं प्रबंध काव्यों की रचनाएँ हुईं। लम्बे समय तक...
View Articleआँसुओं की महक
बहुत दिनों के बाद वसुधा को फुर्सत रे पल मिले थे,जो उसे बिल्कुल अच्छे नहीं लग रहे थे…मन तो पाखी बन उड़ चला और जा बैठा उन पलों की मुंडेर पर, जब उसका इकलौता दुलारा बिन खबर किये…पूरे तीन बरस बाद विदेश से...
View Articleफामूर्लाबद्ध लेखन से परे युगल की समर्थ लघुकथाएँ
लघुकथा समकालीन साहित्य की एक अनिवार्य और स्वाया विधा के रूप में स्थापित हो गई है। नई सदी में यह सामाजिक बदलाव को गति देने में महवपूर्ण भूमिका निभा रही है। विशेष तौर पर मूल्यों के क्षरण के दौर में अनेक...
View Articleदूध का गिलास
” मैं खाना लगाती हूँ इतने आप हाथ-मुँह धो लो ” रमेश मुँह धोकर गुसलखाने से निकला तो खाना परोस लाई । थाली में से रोटी का टुकड़ा तोड़ते हुए रमेश बोला : ” गीता , क्या बाबू जी गए थे आज अस्पताल में डॉक्टर को...
View Articleसमय का पहिया : अपने समय का लघुकथा संग्रह
कथाकार मधुदीप जी कथा साहित्य की तीनों विधाओं, उपन्यास, कहानी और लघुकथा में सृजन कर्म से जुड़े रहे हैं। लघुकथा में उन्होंने सम्पादन और विमर्श में पर्याप्त काम किया है। जब कोई रचनाकार सृजन के साथ...
View Articleहालात
उसने अपनी फैक्टरी में कई बाल मजदूर रखे हुए थे। उन बाल मजदूरों के साथ गुलामों से भी बदतर व्यवहार हुआ करता था। उस दिन एक नन्हा लड़का खुद ही उस फैक्टरी मालिक के पास आया और काम माँगने लगा। मालिक को बड़ी...
View Articleसामाजिक सरोकरारों की छवियाँ
लघुकथा और कहानी में पर्याप्त अन्तर है। यह अंग्रेजी साहित्य के आधार पर हिन्दी में विकसित हुई विधा है–केवल यही बात नहीं है। असल में, मुझे लगता है कि लघुकथा प्रतीकात्मक शैली में गम्भीर संवेदना को व्यक्त...
View Articleलघुकथाएँ
1.भय रामप्रसाद पल्लेदार के पोते ने बहुत जिद की। वह कहीं से चॉक का टुकड़ा और छोटी–सी पेन्सिल ले आया। कहने लगा, ‘‘मैं भी स्कूल जाऊँगा। मुझे किताब दिलाओ। कॉपी लाओ, बस्ता लाओ।’’ रामप्रसाद इन बातों को रोज...
View Articleमौन
रघुराज सिंह बहुत खुश थे । उनके लड़के से अपनी लड़की का रिश्ता करने की इच्छा से अजमेर से एक संपन्न एवं सुसंस्कृत परिवार आया था । रघुराज सिंह का लड़का सेना में अधिकारी है । उनके तीन अन्य लड़के उच्च शिक्षा...
View Articleलक्ष्य
प्रसव-पीड़ा से गुजरती हुई वह उस क्षण को छूने लगी, जहाँ सृष्टि होती है। नर्स ने हुलस कर कहा, ’बेटा हुआ है’। परिजनों के बीच ख़बर आग की तरह फैल गई, एक-दूसरे को बधाई देने के स्वर हवा में तैरने लगे।अचानक...
View Articleभाई–भाई
(अनुवाद-सुकेश साहनी) ऊँचे पर्वत पर चकवा और गरुड़ की भेंट हुई। चकवा बोला, ‘‘शुभ प्रभात, श्रीमान!’’ गरुड़ ने उसकी ओर देखा और रुखाई से कहा, ‘‘ठीक है–ठीक है।’’ चकवे ने फिर बात शुरू की, ‘‘आशा है, आप सानन्द...
View Article24 अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन 15 नवम्बर -2015 को
चर्चा में: 24 अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन अपरिहार्य कारणों से 25 अक्तुबर को आयोजित नहीं हो सका । अब यह सम्मेलन 15 नवम्बर -2015 को कोटकपूरा में होगा।
View Articleहृदय के झरोखें से
जहाँ तक श्रेष्ठ लघुकथाओं में ‘मेरी पसंद’ की बात आती हैं, हृदय के झरोखें से एक साथ कई लघुकथाएँ ताकने–झाँक करने लगती हैं। चाहे वह सुकेश साहनी की ‘ठंडी रजाई’, ‘इमिटेशन’, ‘डरे हुए लोग’ हों या सतीश राज...
View Articleसामाजिक विद्रूपताओं की गाथा
एक सार्थक रचना के सृजन की पहली शर्त है सम्बन्धित विधा की सही समझ होना।विधा की शक्ति और सीमा की जानकारी होना । उससे की जाने वाली अपेक्षाओं की भी । यदि कोई कानून–कायदे हों तो उनकी भी । मसलन दोहा, ग़ज़ल...
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